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कुलभूषण जाधव मामले पर PAK के खिलाफ मोदी ने दिए सख्त निर्देश, अब भी हैं ये 4 ऑप्शन

प्रधानमंत्री मोदी ने विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय को निर्देश दिया है कि पाकिस्तान की इस हरकत का कड़ा जवाब दिया जाए. विदेश मंत्रालय भी कह चुका है कि अगर जाधव को फांसी होती है तो भारत इसे सोचा-समझा कत्ल मानेगा. लेकिन ये सवाल बरकरार है कि क्या ऐसा कोई रास्ता है जिससे जाधव की जान बच सके?

क्या कुलभूषण जाधव को फांसी से बचा पाएगी मोदी सरकार? क्या कुलभूषण जाधव को फांसी से बचा पाएगी मोदी सरकार?
संदीप कुमार सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 11 अप्रैल 2017,
  • अपडेटेड 11:12 AM IST

दुनिया के सियासी मंच पर कई देश अदावत भले ही निभाएं लेकिन इस दुश्मनी के भी कुछ उसूल होते हैं. खासकर जहां सवाल इंसानी जान का हो. लेकिन सेना और जेहादियों की जकड़ वाले पाकिस्तान पर ये बात लागू नहीं होती. यही वजह है कि कुलभूषण जाधव को बगैर पुख्ता सबूत, बंद दरवाजों के पीछे सेना के जनरलों ने मौत का फरमान सुना दिया. हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय को निर्देश दिया है कि पाकिस्तान की इस हरकत का कड़ा जवाब दिया जाए. विदेश मंत्रालय भी कह चुका है कि अगर जाधव को फांसी होती है तो भारत इसे सोचा-समझा कत्ल मानेगा. लेकिन ये सवाल बरकरार है कि क्या ऐसा कोई रास्ता है जिससे जाधव की जान बच सके?

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एक नजर ऐसे ही कुछ विकल्पों पर:

अंतर्राष्ट्रीय अदालत में गुहार?
सभी अंतर्राष्ट्रीय रिवायतों को दरकिनार करते हुए कुलभूषण जाधव को भारतीय दूतावास अधिकारियों से मिलने की इजाजत नहीं दी गई. हालांकि पिछले एक साल में भारत इसके लिए पाकिस्तान से दर्जनों बार अनुरोध कर चुका है. प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के विदेशी मामलों के सलाहकार सरताज अजीज ने पिछले साल पाकिस्तानी सीनेट को बताया था कि जाधव के खिलाफ पुख्ता सबूत नहीं हैं, इसलिए सरकार इस मसले पर डोजियर को पूरा नहीं कर पा रही है. इतना ही नहीं, पाकिस्तान में ईरान के राजदूत इस दावे को 100 फीसदी झूठ बता चुके हैं कि जाधव रॉ के जासूस थे. ये कुछ ऐसे नुक्ते हैं जिन्हें लेकर भारत हेग की अंतर्राष्ट्रीय अपराध अदालत में इस मसले को ले जा सकता है. लेकिन ये पाकिस्तान के साथ आपसी रिश्तों को अंतर्राष्ट्रीय दखल से दूर रखने की भारतीय नीति से मेल नहीं खाएगा. लिहाजा इस बात की संभावना कम है.

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कैदियों में अदला-बदली?
शीत युद्ध के चरम पर एक दूसरे को फूटी आंख ना सुहाने वाले सोवियत रूस और अमेरिका भी जासूसों की अदला-बदली करते रहे हैं. भारत और पाकिस्तान भी इसी तर्ज पर कैदियों को रिहा करते रहे हैं. ट्रैक-टू डिप्लोमेसी के जरिये दिल्ली और इस्लामाबाद ऐसी ही किसी सहमति तक पहुंच सकते हैं. लेकिन नवाज शरीफ सरकार अगर इस बात के लिए राजी हो भी जाए तो पाकिस्तानी सेना उसे इस बात की इजाजत देगी, ऐसा नहीं लगता.

लंबी कानूनी प्रक्रिया का सहारा?
पाकिस्तानी कानून के मुताबिक कोर्ट मार्शल के जरिये सजायाफ्ता मुजरिम सिविल कोर्ट में फैसले पर पुनर्विचार की अपील कर सकते हैं. उनके पास आखिरी विकल्प राष्ट्रपति के पास गुहार लगाने का होता है. कुलभूषण जाधव के पास ये विकल्प खुला है. भारत भी इसके लिए वकील मुहैया करवा सकता है.

काम करेगा अंतर्राष्ट्रीय दबाव?
पाकिस्तानी सेना भले ही अपनी सरकार की ना सुनती हो, लेकिन अमेरिका और साउदी अरब जैसे मध्य-पूर्व के देशों का दबाव पाक जनरलों पर अक्सर काम करता है. भारत के संबंध इन देशों के साथ मजबूत हैं. सरकार के पास एक विकल्प इन सरकारों के जरिये पाकिस्तानी सेना को इस फैसले को पलटने के लिए मजबूर करना भी है.

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