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खामोश से कांग्रेस मुख्यालय में आजकल होती है खास दो ही बातों की चर्चा!

सत्ता के वक़्त गुलज़ार रहने वाले 24,अकबर रोड कांग्रेस मुख्यालय में आजकल दोपहर के सन्नाटे के बीच दो चीजों पर खास चर्चा होती है. सोनिया और राहुल अरसे से आए नहीं हैं.

24,अकबर रोड कांग्रेस मुख्यालय 24,अकबर रोड कांग्रेस मुख्यालय
कुमार विक्रांत
  • नई दिल्ली,
  • 22 अप्रैल 2017,
  • अपडेटेड 7:56 AM IST

सत्ता के वक़्त गुलज़ार रहने वाले 24,अकबर रोड कांग्रेस मुख्यालय में आजकल दोपहर के सन्नाटे के बीच दो चीजों पर खास चर्चा होती है. सोनिया और राहुल अरसे से आए नहीं हैं. महासचिवों के नाम पर एक वक्त में एक या दो से ज़्यादा महासचिवों का एक साथ मुख्यालय में होना बमुश्किल ही नज़र आता है. सचिवों के दर्शन भी कम ही होते हैं. आजकल अमूमन मीडिया विभाग ही सक्रिय दिखता है, जिसके बिना शायद पार्टी बिल्कुल ही ठंडी दिखाई पड़े.

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राहुल नेताओं से कांग्रेस मुख्यालय में शायद मिलना पसंद नहीं करते हैं. वो कम संख्या होने पर अपने 12 तुग़लक़ रोड वाले बंगले पर ही बंद कमरे में मिलते हैं और अगर नेताओं की संख्या ज्यादा हो तो पार्टी के वॉर रूम यानी 15, गुरुद्वारा रकाबगंज में मुलाकात कर लेते हैं. अब भला यूपी चुनाव की भारी हार के बाद जब सोनिया-राहुल कांग्रेस मुख्यालय नहीं आए, तो भला कार्यालय की खामोशी का अंदाज़ा लगाना ज़्यादा मुश्किल नहीं है.

दरअसल, चुनाव दर चुनाव हार, राहुल से नाराजगी जताकर छोड़ कर जाते नेताओं के बीच पार्टी संगठन में फेरबदल और राहुल की ताजपोशी के सवालों ने कांग्रेस नेताओं को भी परेशान कर दिया है. नेता सोच रहे हैं कि, आखिर राहुल की नई टीम कब बनेगी, बनेगी तो उसमें उनकी जगह होगी या नहीं, और तब क्या पार्टी एक बार फिर उभरेगी. इसी उधेड़बुन में संगठन में नेता बस बने हुए हैं, जो काम दिया गया है और जो जरूरी है, वहीं कर रहे हैं. लेकिन अपने मन से कोई नई शुरूआत नहीं करता दिखता, कोई ज़्यादा तेज़ चलना नहीं चाहता है. आखिर पार्टी की हालत खराब है, ऊपर से भविष्य में होने वाले बदलाव ने नेताओं को बेचैन कर रखा है.

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ऐसे हालात में कांग्रेस दफ्तर में काम करने वाला स्टाफ ही है जो रोज मुख्यालय आता है. लेकिन आपसी चर्चा दो बातों की ही होती है. आपस में भी वहीं चर्चा करते हैं और अगर कोई जानकारी लेने आए पत्रकार से मुखातिब हुए तो भी वो दो बातें तो कर ही लेते हैं.

आपको बता दें, वो दो बातें कौन सी हैं, पहली- पार्टी में कुछ होगा, तो कब होगा, और दूसरी- अब कौन छोड़कर जा रहा है, कहीं हमारे वाले तो नहीं. आखिर हो भी क्यों ना, ऐसा लगता है जिस जगह चुनाव आता है वहां पार्टी चुनाव लड़ लेती है. लेकिन लांग टर्म प्लान अब तक नज़र नहीं आता, संगठन ठंडा पड़ा है. क्या होगा, कब होगा ,किसी को कोई अंदाजा नहीं. ऊपर से बार-बार चुनावी हार.

कांग्रेस मुख्यालय में लोगों का हाल ठीक वैसा ही है जैसे एक कहावत है कि, खाली बैठा बनिया क्या करे , बस बांट(वजन तौलने वाला) इधर से उधर करे !

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