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सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- हिंदू धर्म नहीं करता फर्क तो फिर मंदिर में महिलाओं को एंट्री क्यों नहीं?

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक के मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि जब हिंदू धर्म में महिलाओं और पुरुषों में किसी तरह का भेदभाव नहीं होता तो फिर मंदिर के अंदर दाखिल होने के लिए महिलाओं के साथ भेदभाव क्यों?

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर है रोक सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर है रोक
मोनिका शर्मा/अहमद अजीम
  • नई दिल्ली,
  • 13 अप्रैल 2016,
  • अपडेटेड 7:21 PM IST

सबरीमाला मंदिर में तरुण अवस्था में पहुंच चुकी महिलाओं के प्रवेश पर रोक के मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फिर से सख्त टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि हिंदू धर्म में महिलाओं और पुरुषों में किसी तरह का भेदभाव नहीं होता. एक हिंदू सिर्फ हिंदू होता है तो फिर मंदिर के अंदर दाखिल होने के लिए महिलाओं के साथ भेदभाव क्यों?

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कोर्ट ने मंदिर ट्रस्ट से सवाल किया कि क्या महिलाओं को मंदिर में प्रवेश के लिए मना किया जाना चाहिए?

संविधान पीठ को ट्रांसफर करने की मांग ठुकराई
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को संविधान पीठ को ट्रांसफर करने की मांग को भी ठुकरा दिया. कोर्ट ने कहा कि फिलहाल उन्हें इसकी जरूरत महसूस नहीं होती और अगर भविष्य में इसकी जरूरत महसूस हुई तो इसे कभी भी पांच जजों की बेंच को ट्रांसफर कर दिया जाएगा.

संविधान से ऊपर नहीं परंपरा
सोमवार को भी सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि इस देश में मां को सबसे ऊपर माना जाता है. कोर्ट ने कहा था, 'अगर एक कमरे में मां, पिता, गुरु और कुलपुरोहित हों तो सबसे पहले मां, फिर पिता, फिर गुरू और पुरोहित को नमस्कार (ग्रीट)किया जाता है.' जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि कोई भी परंपरा संविधान से ऊपर नहीं है और परंपरा के नाम पर अधिकारों का अतिक्रमण नहीं किया जा सकता.

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मामले की अगली सुनवाई 18 अप्रैल को होगी.

शनि शिंगणापुर जैसा मामला
इससे पहले शनि शिंगणापुर मंदिर में भी महिलाओं को प्रवेश न मिलने के मामले ने भी जबरदस्त तूल पकड़ा था. तृप्ति देसाई के नेतृत्व वाली भूमाता ब्रिगेड ने इसके खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. मामला बॉम्बे हाईकोर्ट तक पहुंचा, जहां से महिलाओं को मंदिर में न सिर्फ प्रवेश करने की अनुमति मिल गई बल्कि शनि की मूर्ति की पूजा करने की भी रोक हटा दी गई.

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