
रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने भारतीय रेलवे को हाई-स्पीड पर सरपट दौड़ाने का इरादा जाहिर करते हुए कहा कि भारत को अत्यधिक हाई स्पीड की रेल परिवहन तकनीक का मुख्य स्रोत बनाना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि यह रेलवे का सपना है कि भारत के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक की यात्रा में 12 घंटे से ज्यादा समय न लगे, जिसके लिए सभी रेलगाड़ियों की औसत स्पीड को बढ़ाने का इरादा है, ताकि सभी लोग इससे लाभान्वित हो सकें.
जहां तक अल्ट्रा हाई स्पीड तकनीक का मसला है, भारतीय रेलवे इसे ‘मेक इन इंडिया’ के तहत विकसित एवं लागू करना चाहती है, ताकि इसका इस्तेमाल देश में हो सके और इसके साथ ही रेलवे इसका निर्यात करने में भी समर्थ हो सके. अल्ट्रा हाई स्पीड रोलिंग स्टॉक का केन्द्र बिन्दु यात्रियों को बेहतर अनुभव एवं सुरक्षा प्रदान करना, तीव्र गति सुनिश्चित करना और क्षमता बढ़ाना है. उन्होंने यह भी कहा कि ‘मेक इन इंडिया’ अभियान पर फोकस करते हुए रेलवे एक ऐसी तकनीक विकसित करना चाहती है, जिससे आगे चलकर रेलवे को काफी मदद मिलेगी.
विकसित की जा रही है अल्ट्रा हाई स्पीड तकनीक
रेलमंत्री ने राजधानी दिल्ली में अल्ट्रा हाई स्पीड रोलिंग स्टॉक पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा कि विश्वभर में परिवहन प्रौद्योगिकी में तेजी से बदलाव हो रहा है. लोगों की अपेक्षा है कि उन्हें यात्रा में कम से कम समय लगे. रेलवे को यातायात के सबसे अहम साधनों में से एक माना जाता है. इसकी मांग हमेशा रहती है. यात्रियों की अपेक्षा बेहतर सुविधाएं, सुरक्षा और गति को लेकर होती हैं. इस अवसर पर रेल मंत्री ने कहा कि उन्नत तकनीक देश के विकास में हमेशा ही अहम भूमिका निभाती है. उन्होंने कहा कि रेलवे का आधुनिकरण मुख्य रूप से उन्नत तकनीक पर निर्भर करता है और इस तरह भारतीय रेलवे, जो देश की जीवन रेखा है, देश के लोगों के हित में अल्ट्रा हाई स्पीड तकनीक विकसित करने में जुटी हुई है.
टैल्गो के अगले चरण का होगा परीक्षण
उन्होंने कहा कि विश्वभर के अनुसंधानकर्ताओं के साथ भारत में संयुक्त रूप से तकनीक का विकास किया जाएगा और नई गाड़ियों का निर्माण भी होगा जिन्हें निर्यात किया जाएगा. उन्होंने वैश्विक अनुसंधानकर्ताओं का आह्वान किया कि वे भारतीय रेल के साथ मिल कर दुनिया की सबसे आधुनिक रेल तकनीक के अगुवा बने. रेल मंत्री ने यह भी कहा कि स्पेन की हाई स्पीड ट्रेन कंपनी टैल्गो के अत्याधुनिक रैकों को अगले चरण का भी परीक्षण किया जाएगा.
जमीन से ऊपर उठ कर हवा में ही चलेगी
सम्मेलन में भारतीय रेलवे में चुंबकीय लेविटेशन (मैगलेव) तकनीक को अपनाने की रूप रेखा प्रस्तुत की गई. अमेरिका की कंपनी क्वॉडलेव के एक अधिकारी ने मैगलेव-2 तकनीक के बारे में प्रस्तुतीकरण दिया जो 500 किलोमीटर से अधिक की गति से चलती है. वहीं अमेरिकी कंपनी ने सम्मेलन में हाइपरलूप कैप्सूल तकनीक के बारे में भी बताया. हाइपरलूप तकनीक इस साल अमेरिका के कैलिफोर्निया में शुरू की जाएगी. इस तकनीक में पाइपनुमा चारों ओर से ढकी हुई लाइन बिछाई जाएगी और वह मैगलेव, प्रोपल्शन और इवैकुएशन तकनीक को मिलाकर बनाई गई है. इसमें ट्रेन जमीन से ऊपर उठ कर हवा में ही चलेगी,पर इसमें निर्वात पैदा करके एक तरफ से वायुदाब लगाया जाएगा जिससे ट्रेन बहुत अधिक गति से चल सकेगी.
हाइपरलूप से 2000KM के स्पीड से दौड़ेगी ट्रेन
उन्होंने बताया कि अनुसंधानकर्ताओं का दावा है कि हाइपरलूप तकनीक वाली गाड़ी की अधिकतम गति एक हजार से दो हजार किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार पर भी चल सकेगी. उल्लेखनीय है कि यात्री वायुयान की गति 800 किलोमीटर प्रतिघंटा ही होती है. कंपनी ने मुंबई से बरास्ता पुणे, हैदराबाद के बीच 800 किलोमीटर की दूरी तक इस लाइन को बिछाने की संकल्पना पेश की. इसकी मालवहन की लागत दो रुपये प्रति किलोमीटर प्रति टन तथा यात्री परिवहन की लागत में चार रुपये प्रति किलोमीटर प्रतियात्री की दर से आएगी. यानी मुंबई के जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट से हैदराबाद के बीच यात्री किराया 3200 रुपये के आसपास होगा. दोनों शहरों के बीच की दूरी 90 मिनट में पूरी की जाएगी. कंपनी का कहना है कि इसके बनने के अगले 25 साल तक इस मार्ग पर 10 फीसदी सालाना की वृद्धि होगी. इससे मालवहन को भी भारी लाभ होगा.
टेक्नोलॉजी लीडर बनेगा भारतीय रेल
रेलवे के अधिकारियों के मुताबिक जहां तक लागत का सवाल है तो मैगलेव-2 की लाइन बिछाने में बुलेट ट्रेन की लाइन से कम ही लागत आएगी. एक सवाल के जवाब में उन्होंने साफ किया कि यह गाड़ी रेलवे की अन्य परियोजनाओं के साथ-साथ चलेगी और इसे निजी क्षेत्र के सहयोग से एक विशेष संयुक्त उपक्रम संचालित करेगा. रेलवे बोर्ड में सदस्य (रोलिंग स्टॉक) हेमंत कुमार का कहना है कि हम विकसित देशों से तकनीक आयात करके दूसरे दर्जे की रेल सेवा देने के सिंड्रोम से उबर कर टेक्नोलॉजी लीडर बनने जा रहे हैं. भारतीय रेलवे ने ‘मिशन 350 प्लस’ के तहत अल्ट्रा हाई स्पीड ट्रेन के बारे में सोचना शुरू कर दिया है. रेलवे बोर्ड ने विश्वभर की आधुनिक रेल प्रणालियों से इस बारे में अभिरुचि पत्र आमंत्रित किये जिसे छह सितंबर को खोला जाएगा. इसके बाद प्रस्ताव आमंत्रित किए जाएंगे. उन्होंने बताया कि अभी तक चार कंपनियों ने अभिरुचि पत्र जाहिर किए हैं.
अल्ट्रा हाई स्पीड में बड़ी कंपनियों की रुचि
हेमंत कुमार ने बताया कि अभी तक स्विस रैपिड, क्वाडरालेव, ईटी3 ग्लोबल एलॉयन्स और हाइपरलूप ट्रांसपोर्ट तकनीक, इन चार कंपनियों ने अभिरुचि पत्र यानी ईओआई भेजे हैं जो मुख्यत: मैगलेव-2 तथा हाइपरलूप तकनीक पर काम कर रहीं हैं. उन्होंने बताया कि मैगलेव-1 तकनीक पर अभी जापान, जर्मनी, दक्षिण कोरिया और चीन में गाड़ियां चल रही हैं. प्रति घंटे 500 किलोमीटर एवं उससे ज्यादा की अधिकतम गति पर परिचालन के लिए अल्ट्रा हाई स्पीड रोलिंग स्टॉक हेतु तकनीक पर पहली बार एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन भारत में आयोजित किया गया. इस सम्मेलन के आयोजन से अत्यंत तेज गति (अल्ट्रा हाई स्पीड) के क्षेत्र में सभी प्रमुख कंपनियां रुचि दिखा रही हैं. अनेक अग्रणी कंपनियां जैसे कि अमेरिका की हाइपरलूप ट्रांसपोर्ट टेक्नोलॉजी, अमेरिका की क्वाडरालेव, स्पेन की टैल्गो, जापान की आरटीआरआई, जर्मनी की सीमेन्स, जर्मनी की नॉर ब्रेम्जे और स्विट्जरलैंड की प्रोज इसमें हिस्सा ले रही हैं. रेलवे, भारतीय उद्योग जगत, राजनयिक समुदाय, अंतरराष्ट्रीय उद्योग जगत, रेलवे की यूनियनों के महासंघ के लगभग 500 प्रतिनिधि इसमें शिरकत कर रहे हैं.