दिल्ली की जहरीली आबोहवा सड़ा रही है आपके बच्चों के फेफड़े!
दिल्ली में प्रदूषण के कारण छाई धुएं की परत अब चिंता का विषय बन रही है. सरकार ने भी बुधवार तक स्कूल बंद कर दिए हैं. लेकिन आपके बच्चों के फेफड़ों पर प्रदूषण का जो असर है, क्या वह इससे कम हो पाएगा...
कई शोध ऐसे हैं जो यह दर्शाते हैं दिल्ली में प्रदूषण के कारण बच्चों में सांस संबंधी दिक्कतें, जन्म लेने वाले शिशुओं का कम वजन, फेफड़ों से संबंधित बीमारी और वयस्कों में कैंसर, हृदय संबंधी बीमारियां और स्ट्रोक का खतरा कई गुना बढ़ गया है.
ऐसा ही एक शोध वर्ष 2010 में भारत के प्रमुख हवा प्रदूषण विशेषज्ञों में से एक माने जाने वाले डॉक्टर सरथ गुट्टिकुंडा ने किया था. उन्होंने पाया था कि दिल्ली में PM2.5 के स्तर के कारण एक साल के भीतर ही 7 से 16 हजार मौतें हुई हैं. इसके कारण करीबन 6 मिलियन यानी 60 लाख लोगों को अस्थमा के दौरे पड़े हैं.
दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों जैसे दिल्ली या बीजिंग में रहने का मतलब है कि आप हर रोज कई पैकेट सिगरेट पी रहे हैं. इसलिए जो लोग धूम्रपान करते हैं उनके लिए ये खतरा दोगुना हो जाता है.
खतरे की बात यह है कि विशेषज्ञ अब दिल्ली शहर को बच्चों के रहने के लिहाज से उपयुक्त नहीं मानते हैं.
डॉक्टर्स का भी कहना है कि पिछले दो सालों से दिल्ली में ब्रोनकाइटिस के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ी है. यही नहीं जो लोग दिल्ली में लंबे समय से रह रहे हैं वे खतरे के जद में कहीं ज्यादा हैं.
बच्चों के लिए खतरनाक विशेषज्ञ कहते हैं कि माता-पिता बच्चों के लिए चाहे कितने अच्छे भोजन और स्कूल की व्यवस्था कर लें, प्रदूषित हवा सब बराबर कर देती है.आपको जानकर हैरानी होगी कि बच्चे किसी वयस्क की तुलना में अपने शारीरिक वजन के अनुसार पर किलो अधिक सांस लेते हैं. इसलिए उनकी सांस में ज्यादा टॉक्सिंस भी जाते हैं. यही नहीं बच्चे बड़ों की तुलना में ज्यादा देर घर से बाहर समय बिताते हैं.
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2015 में HEAL फाउंडेशन और ब्रीद ब्ल्यू ने एक अध्ययन किया था जिसमें पाया गया कि दिल्ली में हर दस में चार बच्चे सीरिसय लंग प्रॉब्लम के शिकार हैं.
आंकड़े और भी हैं. भारत के प्रमुख कैंसर इंस्टीट्यूट्स में से एक चित्तरंजन नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट यानी CNCI ने दिल्ली के 36 स्कूलों में से 4 से 17 साल के 11000 स्कूली बच्चों पर तीन साल तक अध्ययन किया. इसमें पाया गया कि दिल्ली के बच्चे फेफड़ों से संबंधित बीमारी के खतरे में आने की जद में उत्तरांचल और पश्चिम बंगाल के बच्चों की तुलना में दो से चार गुना अधिक थे.
यही नहीं दिल्ली के बच्चे, दूसरे राज्यों के बच्चों की तुलना में साइनस, सर्दी-जुखाम और सांस संबंधी बीमारियों की चपेट में आने में 1.8 प्रतिशत अधिक खतरे में थे.