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हाल ही में सेंट्रल ब्यूरो ऑफ हेल्थ इंटेलिजेंस ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी की है. रिपोर्ट के मुताबिक, भारत से कम आय वाले पड़ोसी देश पब्लिक हेल्थ सेक्टर में भारत से ज्यादा रकम खर्च करते हैं जिसमें भूटान अपनी जीडीपी का 2.5 फीसदी, श्री लंका 1.6 फीसदी और नेपाल 1.1 फीसदी खर्च करते हैं.
इसके मुकाबले भारत अपनी कुल GDP का केवल 1 फीसदी ही पब्लिक हेल्थ सेक्टर में खर्च करता है.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के साउथ ईस्ट एशियन रीजन में दुनियाभर के 10 देश शामिल हैं. इनमें से हेल्थ सेक्टर में सबसे कम खर्च करने की लिस्ट में भारत आखिर के दूसरे पायदान पर है. जबकि, बांग्लादेश सबसे आखिर पायदान पर है. बांग्लादेश अपनी कुल GDP का केवल 0.4 फीसदी ही हेल्थ सेक्टर में खर्च करता है.
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इसके अलावा मालदीव अपनी GDP का कुल 9.4 फीसदी पब्लिक हेल्थ सेक्टर में खर्च करता है जिसके चलते मालदीव ने टॉप पर अपनी जगह बना ली है.
भारत की 2017 की नेशनल हेल्थ पॉलिसी ने साल 2025 तक पब्लिक हेल्थ सेक्टर में खर्च होने वाली रकम को अपनी कुल GDP के तहत 2.5 फीसदी तक बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है.
रिपोर्ट की मानें तो, डॉक्टरों की कमी एक गंभीर समस्या है. देश के कई गांवों में लगभग 11,082 लोगों के लिए केवल एक ही एलोपैथी डॉक्टर है.
इसके अलावा रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि, मलेरिया, मच्छर से होने वाली बीमारी के कारण मरने वालों की तदाद में काफी कमी देखी गई है. जहां पहले सालभर में मलेरिया और मच्छर से फैली बीमारी की वजह से 331 मौतें होती थीं वहीं साल 2017 में केवल 104 मौतें ही सामने आई हैं.
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यूनियन हेल्थ मिनिस्टर जगत प्रकाश नड्डा ने कहा, 'हम इस पर काम कर रहे हैं और जल्द ही इसे पूरा करने की कोशिश करेंगे. अगर आप मां और नवजात शिशु की मृत्यु दर देखें तो इसमें काफी हद तक सुधार आया है.'