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जनलोकपाल से निकली आम आदमी पार्टी उसी जनलोकपाल के लिए एक बार फिर आंदोलन की राह पकड़ सकती है. आप ने समाजसेवी अन्ना हजारे से मुलाकात के बाद फिर आंदोलन की चेतावनी दी है. कुमार विश्वास और संजय सिंह अन्ना से मिलने रालेगण सिद्धि गए थे. उनसे मुलाकात के बाद अन्ना ने बताया कि दोनों नेताओं ने उनसे कहा कि यदि केंद्र सरकार अबकी बार फिर बाधा डालती है तो वह दोबारा आंदोलन के लिए तैयार रहें. इस पर अन्ना ने दोनों नेताओं से कहा कि देखते हैं, आप अपना काम कीजिए. इसके बाद प्रशांत भूषण भी अन्ना से मिले.
अन्ना बोले बिल अच्छा, पर तीन सुझाव भी दिए
आप नेताओं की सफाई सुनने के बाद अन्ना ने कहा कि बिल अच्छा है, लेकिन यह वह नहीं जिसकी संकल्पना रामलीला मैदान में की गई थी. अन्ना ने इस बिल को लेकर तीन सुझाव भी दिए हैं.
1. लोकपाल की चयन समिति में कम से कम सात सदस्य शामिल हों, जैसा कि 2011 के मसौदे में कहा गया था.
2. लोकपाल की जांच का अधिकार हाईकोर्ट के जज को हो. जांच कमेटी की रिपोर्ट विधानसभा में दो तिहाई बहुमत से पारित होने पर लोकपाल को हटाया जा सके.
3. यदि शिकायत झूठी या गलत हो तो शिकायत करने वाले को एक साल की जेल हो. यह प्रावधान उत्तराखंड में है.
विवादः यह आंदोलन वाला बिल नहीं
कुमार विश्वास और संजय अपने जनलोकपाल बिल पर अन्ना को सफाई देने पहुंचे हैं. केजरीवाल सरकार ने सोमवार को ही यह बिल विधानसभा में पेश किया था. लेकिन आप के पूर्व नेता प्रशांत भूषण इस पर सवाल उठा रहे हैं. उन्होंने कहा है कि इस बिल में वे प्रावधान नहीं हैं, जिनके लिए रामलीला मैदान में आंदोलन हुआ था. कुछ ही दिन पहले अन्ना ने भी कहा था- अच्छा हुआ मैं केजरीवाल से अलग हो गया. यह वह बिल नहीं है जिसकी बुनियाद रामलीला मैदान में पड़ी थी.
वजहः केंद्र क्यों डाल सकता है बाधा
केंद्र सरकार इसलिए बाधा डाल सकती है क्योंकि इस बिल में लोकपाल को भ्रष्टाचार के मामलों में सांसदों, विधायकों समेत केंद्र सरकार के अफसरों के खिलाफ भी जांच के अधिकार दिए गए हैं. माना जा रहा है कि इस प्रावधान पर केंद्र शायद ही राजी हो. यह बिल अभी उपराज्यपाल के पास जाएगा. वह इसे लौटा भी सकते हैं और सहमत होने पर गृह मंत्रालय को भी भेज सकते हैं. गृह मंत्रालय इसे मंजूर कर राष्ट्रपति को भेजेगा, जिसके बाद यह कानून बन पाएगा.
वादाः यह वही बिल है, विवाद फिजूल
आप ने इस बिल को अपने चुनावी वादे के मुताबिक बताया है. आप ने कहा है कि इसके प्रावधान वही हैं, जिनकी भूमिका 2011 के जनलोकपाल आंदोलन में तैयार की गई थी. यह लोकपाल को दिल्ली में नौकरी कर रहे किसी भी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ जांच करने का अधिकार देता है. फिर भले ही वे केंद्र के ही अफसर क्यों न हों. 2011 के जनलोकपाल आंदोलन से उठी प्रमुख मांग यही थी.
2011 से क्या अलग, जिस पर विवाद है
1. लोकपाल के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती. उसे हटाने के लिए महाभियोग लाया जा सकता है और विधानसभा में दो तिहाई बहुमत से हटाया जा सकता है. जबकि 2011 के प्रस्ताव में था कि सुप्रीम कोर्ट दोषी करार दे तो उसे हटाया जा सकता है.
2. लोकपाल को नियुक्त करने वाली चयन समिति पर सवाल है. इसमें मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, विपक्ष के नेता और दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शामिल हैं. जबकि 2011 में सात सदस्यों वाली चयन समिति का प्रस्ताव था.
3. जांच समिति पर भी विवाद है. क्योंकि 2011 में तैयार मसौदे में कहा गया था कि यह पूरी तरह स्वतंत्र होगी. नए बिल में प्रावधान है कि अलग से एक विंग बनेगा, जिसमें सरकार से ही अधिकारी नियुक्त किए जाएंगे.