
अयोध्या पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर 33 साल तक इस मामले से जुड़े रहे और सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने आजतक से खास बातचीत की. उन्होंने एक बार फिर फैसले वाले दिन का बयान को ही दोहरा होते हुए कहा, "पूरा फैसला पढ़ने के बाद असंतुष्टि अभी भी कायम है. जो राय मेरी उस दिन थी वही राय आज भी है कि हमें रिव्यू पिटीशन फाइल करनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट को उसमें जो गड़बड़ियां हैं वह बताना जरूरी है".
गौरतलब है कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आ चुका है. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन का असल मालिक रामलला विराजमान को माना है. इसके साथ ही सरकार को 6 महीने के भीतर एक ट्रस्ट बनाकर मंदिर निर्माण की रूपरेखा तय करने को भी कहा गया है. जबकि सुन्नी वफ्फ बोर्ड को कोर्ट ने अयोध्या में ही दूसरी जगह 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया है.
केस से जुड़ा इतिहास बताते हुए जिलानी ने कहा, "1961 में जब यह दावा दायर हुआ था तो एक रिप्रजेंटेटिव सूट की तरह दायर हुआ था. कोर्ट से यह परमिशन ली गई थी कि इसे इंटायर मुस्लिम कम्यूनिटी की तरफ से इंटायर हिंदू कम्यूनिटी के खिलाफ दावा माना जाए, कोर्ट ने यह परमिशन प्रदान कर दी थी. उस समय सुन्नी वक्फ बोर्ड के साथ 9 दूसरे मुसलमान फरीक बने थे और उन्होंने यह मुकदमा लड़ा है".
उन्होंने आगे कहा, "सुन्नी वक्फ बोर्ड 1961 से लेकर 86 तक अपने हिसाब से लड़ा. 86 के बाद सुन्नी वक्फ बोर्ड ने न तो इसमें इंटरेस्ट दिखाया और न पैरवी की. 86 से 92 तक हम लोग इसे करते रहे अपनी एक्शन कमेटी की तरफ से. 93 से ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसे टेकअप किया और 93 से लेकर अक्टूबर 2019 तक पर्सनल लॉ बोर्ड इसके तमाम खर्चे उठाता रहा है".
सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू-पिटीशन पर अपना पक्ष साफ करते हुए उन्होंने कहा, "अभी फिलहाल जो सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन का बयान आया है और उनकी मीटिंग 26 नवंबर को होने वाली है. अगर वे यह तय भी कर लेते हैं कि वे रिव्यू-पिटीशन नहीं डालेंगे तो भी चूंकि यह इंटायर कम्यूनिटी का मामला है तो बाकी जो फरीक हैं उनके लिए ओपन है. जिन्होंने पहली अपील डाली थी उनके लिए यह ओपन है या फिर कम्यूनिटी के कोई भी जिम्मेदार व्यक्ति के लिए भी ओपन है और वे सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं. इसमें मेरा कोई व्यक्तिगत मामला नहीं है".
फैसले पर टिप्पणी करते हुए जिलानी ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है और हाई कोर्ट ने भी कहा है कि 22/23 दिसंबर की रात जो मूर्तियां रखी गईं वो गलत थीं और गैरकानूनी थीं. हाई कोर्ट ने उसको बुनियाद बनाकर सूट नंबर 5 के प्लैंटिफ नंबर 1 भगवान श्री रामलला को डिइटी नहीं माना है. सुप्रीम कोर्ट ने उसी डिइटी को प्लेंटिफ नंबर 1 को यह तो माना कि 1949 में यह मूर्तियां गलत रखी गईं लेकिन उसके बाद भी प्लेंटिफ नंबर 1 को सूट डिक्री कर वह जमीन दे दी जो मस्जिद की जमीन है".
फैसले पर अपनी नाराजगी बताते हुए उन्होंने कहा, "सुप्रीम कोर्ट से हमारा पहला ऐतराज यह है कि अगर वह डिइटी जो हो ही नहीं सकती है हिंदू लॉ के तहत, यह पूरी तरह लीगल सवाल है जिसको हम सुप्रीम कोर्ट के सामने ले जाना चाहते हैं."
अपना दूसरा तर्क पेश करते हुए उन्होंने कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने यह माना है और हाई कोर्ट ने भी माना था कि मुसलमानों के एविडेंस कम से कम 1857 के बाद से 1949 तक उस मस्जिद को यूज करने की और उस मस्जिद में नमाज पढ़ने की है. तकरीबन इसको 90 साल होते हैं. तो अगर 90 साल तक हमने किसी मस्जिद में नमाज पढ़ी है तो उस मस्जिद की जमीन हमारी मस्जिद को न देकर मंदिर को देने का क्या जवाज है यह हमारी समझ से बाहर है. हम सुप्रीम कोर्ट में इस पर भी जाना चाहते हैं".