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क्या चीन की सलाह मानकर BRICS समिट में PAK पर 'चुप्पी' साधे रहेंगे मोदी?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 9वें ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए चीन के श्यामन शहर में हैं. चीन, भारत, रूस, ब्राजील और साउथ अफ्रीका के इस सम्मेलन की थीम 'ब्रिक्स- स्ट्रांगर पार्टनरशिप फॉर बेटर फ्यूचर' यानी बेहतर भविष्य के लिए मजबूत गठजोड़ है.

पीएम नरेंद्र मोदी और चीनी प्रधानमंत्री शी जिंनपिंग पीएम नरेंद्र मोदी और चीनी प्रधानमंत्री शी जिंनपिंग
केशवानंद धर दुबे/राहुल मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 04 सितंबर 2017,
  • अपडेटेड 12:15 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 9वें ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए चीन के श्यामन शहर में हैं. चीन, भारत, रूस, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के इस सम्मेलन की थीम 'ब्रिक्स- स्ट्रांगर पार्टनरशिप फॉर बेटर फ्यूचर' यानी बेहतर भविष्य के लिए मजबूत गठजोड़ है. चीन में होने वाले इस सम्मेलन में जहां वैश्विक अर्थव्यवस्था, ग्लोबल इकोनॉमिक गवर्नेंस और नेशनल सिक्योरिटी डेवलपमेंट समेत कई अहम मुद्दों को उठाया जाएगा वहीं सवाल यह खड़ा है कि क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ब्रिक्स के इस मंच पर उन बातों को उठाएंगे जो चीन को नागवार गुजरती हैं.

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गौरतलब है कि ब्रिक्स सम्मेलन शुरू होने से ठीक पहले चीन ने सदस्य देशों को साफ-साफ कहा है कि कोई भी देश इस मंच से पाकिस्तान और इस्लामिक आतंकवाद का मुद्दा नहीं उठाएगा. चीन का यह फरमान भारत को  लेकर है. वह नहीं चाहता कि उसके देश में लगे इस मंच से उसके मित्र देश पाकिस्तान पर किसी तरह की कोई टिप्पणी की जाए.

वहीं दूसरा अहम मुद्दा उत्तर कोरिया का है. ब्रिक्स सम्मेलन से पहले न्यूयार्क टाइम्स में व्लादिमीर पुतिन के लेख में कहा गया है कि इस सम्मेलन के दौरान उत्तर कोरिया मामले में अमेरिका की भूमिका पर चर्चा की जाएगी. गौरतलब है कि भारत का उत्तर कोरिया से सामान्य संबंध है और अभीतक वह उत्तर कोरिया के विषय में कुछ भी बोलने से बचता रहा है. लेकिन रूस की तरफ से यदि उत्तर कोरिया का मुद्दा उठाया जाता है तो देखने की बात होगी कि क्या भारत इस मंच से उत्तर कोरिया पर अपना रुख साफ करने अथवा स्पष्ट करने की कोशिश करेगा.

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लिहाजा, दो दिनों तक चीन में चलने वाले इस सम्मेलन में दुनियाभर की नजर प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति पुतिन की इस जुगलबंदी पर रहेगी. यदि मोदी पाकिस्तान और आतंकवाद के मुद्दे पर अपनी बात रखते हैं तो जाहिर है कि चीन को यह रास नहीं आएगा. इसके साथ ही ऐसा करने पर सम्मेलन के इतर दोनों देशों की द्विपक्षीय वार्ता पर भी इसका गंभीर असर पड़ सकता है. वहीं यदि पुतिन उत्तर कोरिया का मुद्दा उठाते हैं तो प्रधानमंत्री मोदी पर एक और दबाव पड़ेगा कि वह उत्तर कोरिया पर अपना रुख स्पष्ट करें. ऐसा करने पर संभव है कि भारत का रुख अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप और जल्द भारत की यात्रा पर आने वाले जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे को रास न आए.

 

 

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