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तीन तलाक के नियम पर मनीष तिवारी ने पूछा- क्या मोहम्मडन लॉ संविधान से ऊपर है?

कांग्रेस प्रवक्ता और पेशे से वकील मनीष तिवारी ने ट्वीट कर पूछा, 'जो मोहम्मडन लॉ तीन बार तलाक की अनुमति देता है, क्या वह भारतीय संविधान से भी ऊपर है?'

कांग्रेस नेता मनीष तिवारी कांग्रेस नेता मनीष तिवारी
स्‍वपनल सोनल
  • नई दिल्ली,
  • 25 मार्च 2016,
  • अपडेटेड 12:01 PM IST

कांग्रेस के दिग्गज नेता मनीष तिवारी ने ट्विटर के जरिए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) पर तीखा हमला किया है. तीन बार तलाक के मुद्दे पर बोर्ड के रवैये को लेकर उन्होंने सवाल किया है कि क्या मुस्लि‍म पर्सनल लॉ संविधान से भी ऊपर हैं. तिवारी का यह सवाल एआईएमपीएलबी के उस बयान पर आया है, जिसमें उसने कहा कि उसके नियम कुरान पर आधारित हैं और यह सुप्रीम कोर्ट के दायरे में नहीं आते.

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कांग्रेस प्रवक्ता और पेशे से वकील मनीष तिवारी ने ट्वीट कर पूछा, 'जो मोहम्मडन लॉ तीन बार तलाक की अनुमति देता है, क्या वह भारतीय संविधान से भी ऊपर है? क्या मुस्लिम महिलाओं की एकतरफा तलाक में सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जानी चाहिए?'

मनीष तिवारी ने कहा कि भारतीय संविधान के आर्टिकल 25 और 26 में दिया गया धर्म की स्वंतत्रता का अधिकार तथ्यों को छुपा पतनशील प्रथाओं के औचित्य को साबित करने का जरिया बन गया है. हालांकि तिवारी इसके बाद इस ओर कुछ कहने से बचते दिखे. यही नहीं, ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी के जनरल सेक्रटरी और मीडिया प्रभारी रणदीप सूरजेवाला ने भी इस मामले में कुछ कहने से इनकार कर दिया.

गौरतलब है कि एआईएमपीएलबी भारत में यूनिफॉर्म सिविल कोड के औचित्य पर सवाल खड़ कर रहा है. उसका तर्क है कि हिन्दू सिविल कोर्ड 1956 में पास किया गया, लेकिन हिन्दुओं के बीच जातियों को लेकर भेदभाव खत्म नहीं हुए.

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मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने क्या कहा
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने देश की सर्वोच्च अदालत के निर्देश को न सिर्फ मानने से इनकार कर दिया है, बल्कि‍ उसे उसके अधि‍कार क्षेत्र से बाहर बताया है. सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए मुस्लिम पर्सनल लॉ में तीन बार तलाक कहकर रिश्ते खत्म करने की प्रथा की कानूनी वैधता जांच करने का निर्देश दिया था. जबकि एआईएमपीएलबी ने कहा है कि यह कोर्ट के क्षेत्राधि‍कार में नहीं है.

लॉ बोर्ड का कहना है कि समुदाय के पर्सनल लॉ कुरान पर आधारित हैं, ऐसे में यह सर्वोच्च अदालत के क्षेत्राधिकार में नहीं है कि वह उसकी समीक्षा करे. एआईएमपीएलबी ने कहा कि यह कोई संसद से पास किया हुआ कानून नहीं है. बोर्ड ने यूनिफॉर्म सिविल कोड की उपयोगिता को भी चुनौती देते हुए कहा कि यह राष्ट्रीय अखंडता और एकता की कोई गारंटी नहीं है. इनका तर्क है कि एक साझी आस्था ईसाई देशों को दो विश्व युद्धों से अलग रखने में नाकाम रही. एआईएमपीएलबी ने कहा कि इसी तरह हिन्दू कोड बिल जातीय भेदभाव को नहीं मिटा सका.

क्या रहा है अब तक कांग्रेस का रवैया
यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर कांग्रेस अक्सर खामोश रहती है. जबकि बीजेपी के लिए यह बड़ा मुद्दा रहा है. 1986 में राजीव गांधी की सरकार मुस्लिम पर्सनल लॉ के साथ डटकर खड़ी हुई थी. सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो तलाक मामले में भरण-पोषण के लिए मुआवजा मुहैया कराने का निर्देश दिया था, लेकिन राजीव गांधी ने संसद से कानून पास कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदल दिया था.

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