
छत्तीसगढ़ में राजनादगांव से कांग्रेस के पूर्व सांसद देवव्रत सिंह ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है. उनके मुताबिक कांग्रेस में उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं था . AICC के प्रवक्ता और पूर्व सांसद देवव्रत सिंह के बारे में काफी दिनों से अटकलें लगाई जा रही थीं कि वो कांग्रेस छोड़ सकते हैं.
देवव्रत सिंह के मुताबिक, जिस तरह से कांग्रेस में उनकी उपेक्षा हो रही थी, ऐसा लग रहा था कि अब पार्टी को उनकी जरूरत नहीं है. उन्होंने कई बार आपत्ति जताई थी, लेकिन कांग्रेस से लगातार उनकी उपेक्षा हो रही थी. इसलिए उन्होंने पार्टी छोड़ने का ऐलान किया है. बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस लेकर उन्होंने पार्टी से नाता तोड़ने की घोषणा की.
देवव्रत सिंह खैरागढ़ राज परिवार और रियासत के साथ-साथ राजघराने की राजनीति से जुड़े रहे हैं. उनके परिजनों का भी कांग्रेस से करीबी नाता रहा है. वे खुद खैरागढ़ विधानसभा सीट से तीन बार कांग्रेस के विधायक रहे हैं. वे राजनादगांव संसदीय सीट से एक बार सासंद भी चुने गए. फिलहाल वो कांग्रेस के महामंत्री भी थे.
देवव्रत करीब 22 साल तक विभिन्न पदों पर रहे और उनके अचानक पार्टी छोड़ देने से कांग्रेसी हैरान हैं. साल 2009 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस ने ना तो उन्हें विधायक का टिकट दिया ना ही सांसद का. हालांकि प्रदेश कांग्रेस की सिफारिश के बाद वो AICC के राष्ट्रिय प्रवक्ता के रूप में पैनल में शामिल रहे.
नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव ने हैरानी जाहिर करते हुए कहा कि देवव्रत को ऐसा क्यों लगा कि उनकी उपेक्षा हो रही है. वो पीढ़ियों के कांग्रेस के नेता रहे हैं. उन्होंने कहा कि देवव्रत का पार्टी में स्थान भी है और पार्टी उनका सम्मान भी करती है, और अगर कोई बात उन्हें आहत कर गई थी तो उन्हें बताना चाहिए था. पार्टी से इस्तीफा दे देना सही नहीं है. वहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने कहा कि उन्हें अभी इस्तीफा नहीं मिला है. उन्होंने यह भी कहा कि उनकी उपेक्षा जैसी कोई बात नहीं रही. वे कांग्रेस के सभी कार्यक्रमों में शामिल होते रहे हैं.
फिलहाल ऐसे कोई संकेत नहीं मिले हैं कि देवव्रत सिंह किसी और पार्टी का दामन थामने वाले हैं. बताया जा रहा है कि प्रदेश कांग्रेस कमिटी ने उन्हें पहले समन्वय समिति से हटाया फिर अनुशासन समिति से. मामला यही नहीं थमा. उनके विधानसभा और संसदीय क्षेत्रों में उनके धुर विरोधियों को संगठन में जगह देकर प्रोत्साहित किया गया. प्रदेश कांग्रेस के इन कदमों को लेकर उन्होंने दिल्ली में पार्टी आलाकमान के पास अपना पक्ष रखा. वहां भी जब सुनवाई नहीं हुई तो उन्होंने पार्टी से इस्तीफा देने जैसा कदम उठाया.