
शौचालय बनाने में देश के विभिन्न राज्यों में सामने आ रहे घोटालों ने भी लोगों को हैरान कर दिया है. बिहार में हाल ही में करीब 13.5 करोड़ रु. का शौचालय घोटाला सामने आया. पटना के जिलाधिकारी संजय कुमार अग्रवाल ने विभागीय समीक्षा बैठक में इस फर्जीवाड़े को पकड़ा.
अधिकारियों के मुताबिक, मई, 2016 में लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग (पीएचईडी) के तत्कालीन कार्यकारी अभियंता विनय कुमार सिन्हा ने शौचालय निर्माण की सरकारी राशि को चार एनजीओ और कुछ व्यक्तियों के खाते में स्थानांतरित करवा दिया.
इस रकम से पटना जिले में दस हजार से अधिक शौचालय बनाए जाने थे. पटना पुलिस को एक डायरी मिली, जिसमें यह दर्ज है कि पीएचईडी के लेखपाल बटेश्वर प्रसाद सिंह ने बाकायदा रेवन्यू स्टॉप पर आदि सेवा संस्थान नामक एनजीओ की सचिव सुमन सिंह से पांच फीसदी कमिशन देने की शर्त पर राशि स्थानांतरित करने का करार किया था. इसमें कई बैंक खाते ऐसे निकले जो असल में किसी बैंक में थे ही नहीं.
खुले में शौच मुक्त फिर भी...
वैसे, स्वच्छ भारत मिशन के घोटाले केवल बिहार तक ही सीमित नहीं हैं. अब तक उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र, हरियाणा जैसे कई राज्यों में ऐसे मामले सामने आ चुके हैं (देखें बॉक्स). केंद्रीय पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के सचिव परमेश्वरन अय्यर कहते हैं, ''जहां भी ऐसे घोटाले सामने आ रहे हैं, हम राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगते हैं. कुछ मामले छत्तीसगढ़ के हैं.’’
महाराष्ट्र के मुंबई में भी शौचालय निर्माण में भारी अनियमितता के संकेत मिलते हैं. आरटीआइ कायकर्ता अनिल गलगली ने सूचना के अधिकार के तहत पिछले साल 27 जुलाई को बृह्नमुंबई नगर पालिका (बीएमसी) के सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट डिपार्टमेंट की आंतरिक रिपोर्ट हासिल की है.
स्लम स्वच्छता कार्यक्रम के तत्कालीन डिप्टी चीफ इंजीनियर ने सामुदायिक शौचालय ब्लॉक की मरम्मत में अनियमितताओं पर एक आंतरिक रिपोर्ट तैयार की, जिसे उन्होंने पिछले साल जनवरी में ही बीएमसी आयुक्त अजोय मेहता के पास भेज दिया था. गलगली कहते हैं, ‘‘इससे करीब 200 करोड़ रु. की कथित अनियमितता सामने आई है.
अगस्त में मुख्यमंत्री कार्यालय ने मुझे जवाब दिया था कि मेरी जांच की मांग को संबंधित विभाग को भेज दिया गया है लेकिन अब तक इसकी कोई जानकारी नहीं दी गई है.’’ गलगली के मुताबिक, कम-से-कम चार वार्डों में शौचालय सीटों के निर्माण और रखरखाव के लिए बीएमसी ने 3 लाख रु. से 10 लाख रु. खर्च किए, जिसकी कीमत 1.78 लाख रु. से अधिक नहीं होनी चाहिए.
इस अनियमितता को लेकर बीएमसी और महाराष्ट्र गृहनिर्माण एवं क्षेत्र विकास प्राधिकरण (म्हाडा) एक-दूसरे पर जिक्वमेदारी डालते हैं. म्हाडा के सीईओ अनंत दहीपडे कहते हैं, ''बीएमसी ने म्हाडा के शौचालयों की मरम्मत के नाम पर अपनी मर्जी से खर्च किया था, इस गड़बड़ी की जांच बीएमसी को करनी है न कि म्हाडा को.’’ गलगली का आरोप है कि इस गड़बड़ी की जांच को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है.
इसी तरह मध्य प्रदेश में भोपाल जिले की कालापानी पंचायत में ठेकेदार सैयद कबीर ने कथित तौर पर 400 शौचालयों को कागजों में बनाया दिखाकर पैसा ग्रामीणों के नाम पर निकाल लिया. गुना जिले के एडिशनल डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट नियाज अहमद खान ने यहां स्वच्छ भारत मिशन के तहत बने करीब 42,000 शौचालयों के दरवाजों के निर्माण में अनियमितता पकड़ी.
उनके मुताबिक, कम-से-कम दो करोड़ रु. का नुक्सान हुआ. विस्तृत जांच के बाद यह घोटाला 100 करोड़ रु. तक जा सकता है. जिले के करीब डेढ़ सौ गांव ओडीएफ घोषित हो चुके हैं पर खान ने वहां अब भी खुले में शौच का खुलासा किया है.
भोपाल में लक्ष्य पूरे करने की हड़बड़ी में आनन-फानन मॉड्यूलर टॉयलेट की मनमाने दामों पर खरीद की गई. अंदेशा है कि इन मॉड्यूलर टॉयलेट की खरीद में करोड़ों के वारे-न्यारे किए गए. भोपाल नगर निगम ने करीब छह करोड़ रु. की लागत से 1,800 मॉड्यूलर टॉयलेट खरीद का प्रस्ताव रखा था, जिसमें एक ही कंपनी से 12,000 रु. औसत कीमत वाले टॉयलेट 32,500 रु. में खरीदे गए.
इस मामले में आवाज उठाने वाले भोपाल नगर निगम के पार्षद दिनेश यादव कहते हैं, ‘‘भोपाल नगर निगम ने 1,800 मोबाइल टॉयलेट की खरीद का प्रस्ताव किया था. इसमें 32,500 रु. की दर से 600 टॉयलेट खरीद भी लिए गए. लेकिन जब बाजार भाव 12,000 रु. का था तो प्रति टॉयलेट 20,000 रु. अधिक क्यों दिए गए?’’
छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा में पामगढ़ के ग्राम पंचायत धनगांव में स्वच्छ भारत मिशन के तहत 387 शौचालयों के नाम पर करीब 29 लाख रु. निकाल लिए गए, जबकि हकीकत में वे बने ही नहीं.
उत्तर प्रदेश में बांदा की ग्राम पंचायत कुरुहूं की शौचालय निर्माण 2015-16 की सूची में राकेश कुमार पटेल का नाम मौजूद है. उनके नाम से शौचालय निर्माण का पैसा भी निकाल लिया गया है.
लेकिन उन्होंने न पैसे लिए और न उनका शौचालय बना. राकेश अकेले नहीं हैं. गांव के दर्जनों लोगों का पैसा निकाला जा चुका है और उन्हें पता तक नहीं है. यहां शौचालय बनवाने के लिए 2016-17 में सूची जारी हुई. 95 लोगों के नाम इस सूची में थे. लेकिन अब तक एक दर्जन शौचालय भी नहीं बन पाए हैं. इस बारे में यहां के एक ग्रामीण कोदूराम ने प्रधानमंत्री कार्यालय को चिट्ठी लिखी.
इसी साल 18 जनवरी को प्रधानमंत्री कार्यालय ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव से शौचालय में गड़बड़ी की जानकारी देने को कहा. शिकायतकर्ता कोदूराम ने इंडिया टुडे को बताया कि पीएमओ से चिट्ठी आने के बाद ग्राम प्रधान ने अफरा-तफरी में कागजों में दर्शाए गए शौचालय का निर्माण शुरू तो करा दिया लेकिन घटिया पाइप और महज दो-दो फुट के गड्ढे खोदकर जल्दबाजी में निबटाया जा रहा है.
कोदूराम ने अगर चिट्ठी नहीं लिखी होती तो 95 शौचालयों का पैसा हजम हो गया था. लेकिन बांदा के डीएम दिव्य प्रकाश कहते हैं, ‘‘मुझे इसकी जानकारी नहीं है. हो सकता है, सीडीओ को हो.’’
बांदा के ही नरैनी ब्लॉक के गांवों में करीब 18,000 शौचालयों के निर्माण पर 5.84 करोड़ रु. खर्च कर महज कागजों में निर्माण दिखाए जाने का आरोप है. इसी ब्लॉक में सांसद भैरों प्रसाद मिश्र का गोद लिया हुआ गांव कटरा कालिंजर भी है.
आरटीआइ कार्यकर्ता आशीष सागर कहते हैं कि उन्होंने इसकी शिकायत बहुत पहले की थी, लेकिन अधिकारी जांच पूरी नहीं होने के बहाने घोटाला करने वालों को बचाते रहे हैं. यह उस बांदा जिले की तस्वीर है जिसमें एक माह पहले तक डीएम रहे महेंद्र बहादुर प्रमुख सचिव से शौचालय निर्माण में बेहतर कार्य करने का प्रमाण पत्र हासिल कर लाए थे.
आगे की राह
हालांकि उम्मीद की किरणें भी हैं. उत्तर प्रदेश के ओडीएफ गांव बक्वहौरी में शौचालयों के निर्माण में अनियमितता की शिकायत है लेकिन पड़ोस के उदगुवां ग्राम पंचायत के भोपालपुरा के हालात अलग हैं. यहां शौचालय के साथ लोगों की सोच भी बदली है. ग्रामीण पूरन के यहां पिछले साल बरसात में शौचालय बना. उनकी पत्नी राधा बताती हैं, ''शौचालय बनने के बाद मैंने शौच के लिए बाहर जाना छोड़ दिया है. कुएं में पानी की कमी नहीं है, सो मुझे शौचालय की सफाई में भी कोई परेशानी नहीं होती है.ÓÓ जाहिर है, शौचालय सही तरीके से बनाए जाएं और पानी उपलब्ध हो तो स्वच्छ भारत मिशन कामयाबी की राह पकड़ सकता है.
—साथ में, अशोक कुमार प्रियदर्शी, महेश शर्मा, नवीन कुमार, संतोष पाठक, विमल भाटिया और अखिलेश पांडे
आंकड़ों में उलझी शौचालय कथा को लेकर केंद्र सरकार के पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के सचिव परमेश्वरन अय्यर से बातचीत के अंशः
‘शिकायत मिलते ही फौरन रिपोर्ट तलब कर रहे हैं’
बिहार, झारखंड, ओडिशा और यूपी काफी पिछड़े हैं, तो आप इस साल दिसंबर तक ओडीएफ का लक्ष्य कैसे हासिल कर पाएंगे?
ये कुछ सूबे हैं जहां कवरेज 50 फीसदी के आसपास है. पहले से ही इन राज्यों में सैनिटेशन कवरेज कम रहा है. मार्च तक करीब 18 राज्य ओडीएफ हो जाएंगे, हमारा पूरा ध्यान इन्हीं चार-पांच राज्यों पर होगा. अक्तूबर 2019 तक पूरी तरह ओडीएफ बना दिया जाएगा.
ग्रामीण विकास मंत्रालय की 2010 की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण सैनिटेशन कवरेज 65 फीसदी है. 2011 की जनगणना में इस आंकड़े को घटाकर 32 फीसदी बताया गया. 2014 में 38 फीसदी है. आंकड़ों में यह कैसा गोलमाल है?
2010 में मंत्रालय का आंकड़ा 65 फीसदी था. 2011 में यह 32 फीसदी था. इसके बाद विस्तृत बेसलाइन सर्वे 2012-13 में किया गया तो ग्रामीण सैनिटेशन करीब 34-35 फीसदी पाया गया.
यह जनगणना के आंकड़ों के आसपास ठहरता था. यह आंकड़ा ही हमारा आधार आंकड़ा बना. अब हम 76 फीसद से अधिक कवरेज पर हैं. करीब 4-5 महीने पहले क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया के करीब 1,00,000 घरों के सर्वे के आधार पर एमआइएस कवरेज का हमारा आंकड़ा 73 फीसद के आसपास था. थर्ड पार्टी सर्वे ने इस आंकड़े को 72 फीसद पाया. यानी हम काफी करीब थे. अब हमें पूरा भरोसा है कि एमआइएस के आंकड़े एकदम खरे हैं.बेसलाइन सर्वे 2012 का है, उस सर्वे के हिसाब से 100 फीसद ओडीएफ तो हैं लेकिन जमीनी सचाई कुछ और है?
कई मामलों में जैसे बिहार में बेसलाइन सर्वे में कुछ आंकड़े अतिशक्तिपूर्ण हैं. लेकिन आखिरी मंजिल तो गांव को ओडीएफ बनाने की है. छोटी-मोटी गड़बडिय़ां हो सकती हैं, जिनका ख्याल ओडीएफ सत्यापन के वक्त पर किया जाता है.
लेकिन महाराष्ट्र में चंद्रपुरा में स्वच्छता पुरस्कार पाए ओडीएफ गांव में एक भी शौचालय नहीं है?
मुझे इसके बारे में चेक करना होगा.
जैसलमेर के कई गांवों में टॉयलेट नहीं है, है भी तो पानी नहीं है?
ऐसे इलाकों में पानी की कम जरूरत वाले पैन लगाने चाहिए.
पूरे देश में शौचालय निर्माण में घोटाले हो रहे हैं?
देश में ऐसे छिटपुट मामले ही होंगे. जहां भी जानकारी मिलती है, हम फौरन राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगते हैं.
देश भर में बहुत सारे शौचालय खराब पड़े हैं, उनका इस्तेमाल नहीं होता. न आंकड़े उपलब्ध हैं कि कितनों को ठीक किया गया?
इनसैनिटरी टॉयलेट्स को सैनिटरी में विकसित करने के लिए सर्वे पूरा किया जा चुका है.
—साथ में, अशोक कुमार प्रियदर्शी, महेश शर्मा, नवीन कुमार, संतोष पाठक, विमल भाटिया और अखिलेश पांडे
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