
ताला नगरी के रूप में विक्चयात अलीगढ़ के जिला मुख्यालय से दो किलोमीटर दूर उत्तर में खड़ा है गाढ़े मैरून रंग का आलीशान बाब-ए-सैयद यानी सर सैयद गेट. मुगल शैली में बने 60 फुट ऊंचे इस दरवाजे के भीतर प्रवेश करते ही करीब 450 हेक्टेयर में फैले उस संसार के दर्शन होते हैं, जो पूरी दुनिया में मुसलमान छात्रों के बीच तालीम के मक्का के रूप में जाना जाता है. यह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) है. सर सैयद गेट से अंदर आने पर मुगल और ब्रितानिया स्थापत्य में ढली इमारतें विश्वविद्यालय की अलग ही पहचान से रू-ब-रू कराती हैं. इन्हीं इमारतों के बीच ठेठ ब्रिटिश स्थापत्य में बनी एक पुरानी-सी इमारत बाईं ओर दिखती है. यह एएमयू का प्रसिद्ध कैनेडी हॉल है, जो एक विरोधाभास भी पैदा करता है. इस हॉल में दीवार पेंटिंग से सजा एक बेहद खूबसूरत ''मूसा डाकरी म्युजियम" है.
नवंबर, 2014 में स्थापित इस म्युजियम में ध्यान मुद्रा में बैठे सभी जैन तीर्थंकरों की मूर्तियों से युक्त चारों तरफ से एक समान दिखने वाला देश का सबसे ऊंचा पत्थर का स्तूप है. इसके पीछे पहली शताब्दी में बनी भगवान बुद्ध की वह दुर्लभ प्रतिमा संरक्षित है, जिसमें बुद्ध को शेर और बोध गया मंदिर के ऊपर बैठा दिखाया गया है. बगल में नौवीं शताब्दी की लाल पत्थर की बनी गणेश की अनोखी प्रतिमा है, जिसमें उनकी सूंड़ बाईं ओर है. यहां वह लोहा भी है, मानव ने जिसका प्रयोग सभ्यता के शुरुआती समय में शुरू किया था. जाहिर है, विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक चेहरे और मुसलमान छात्रों के बोलबाले के बीच इस म्युजियम में हिंदू भावनाओं से जुड़े दुर्लभ प्रतीकों को जिस तरह से संरक्षित रखा गया है, उसकी मिसाल देश के किसी दूसरे विश्वविद्यालय में नहीं मिलती.
दूसरी मिसाल इस बात की भी नहीं है कि 13 फैकल्टी, 111 विभाग, 20,000 छात्र, 1,100 शिक्षकों वाले शिक्षा के इस मजबूत स्तंभ अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर आजादी के बाद से किस-किस तरह से दांव-पेच आजमाए जा रहे हैं. केंद्र की बीजेपी सरकार ने एक बार फिर एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे पर सवाल खड़े कर दिए हैं और पूरा मामला देश की सबसे बड़ी अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट से निबटारे के इंतजार में है.
स्वायत्तता पर सवाल
एएमयू विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) से अनुदान लेने के बावजूद स्वायत्त रूप से अपना कामकाज करता है. जहां दूसरे विश्वविद्यालयों की कार्यकारी परिषद नए कुलपति के चयन के लिए चयन समिति चुनती है, वहीं एएमयू की कार्यकारी परिषद कुलपति पद के लिए सीधे पांच दावेदारों के नाम चुनकर एएमयू कोर्ट भेजती है. एएमयू कोर्ट वोटिंग के आधार पर पहले तीन नामों को अपने विजिटर (राष्ट्रपति) के पास भेजता है. राष्ट्रपति आम तौर पर सबसे ज्यादा वोट पाने वाले नाम पर ही अपनी मुहर लगाते हैं. यूजीसी ने कुलपति पद पर तैनात होने वाले व्यक्ति के लिए 10 वर्ष प्रोफेसरशिप का अनुभव अनिवार्य कर दिया है. इससे इतर एएमयू द्वारा पूर्व डिप्टी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) जमीरुद्दीन शाह को कुलपति चुनने पर भी विवाद है. एएमयू इंतजामिया का तर्क है कि वह एक अल्पसंख्यक संस्थान है और अपने कामकाज में पूरी तरह स्वतंत्र है. हालांकि एएमयू में मुस्लिम छात्रों के लिए किसी प्रकार के आरक्षण की व्यवस्था नहीं है. यहां इंटरनल छात्रों (वे छात्र जो एएमयू के संस्थानों से पढ़कर इसी विश्वविद्यालय में आगे की पढ़ाई के लिए दाखिला लेते हैं) के लिए 50 फीसदी आरक्षण की ही व्यवस्था है. इसके बावजूद एएमयू के मेडिकल और तकनीकी विभागों को छोड़ दिया जाए तो पूरे विश्वविद्यालय में 75 फीसदी से ज्यादा छात्र मुसलमान हैं. विवि के शिक्षकों और कर्मचारियों की तैनाती में मुसलमानों का अनुपात 90 फीसदी से अधिक बैठता है. अलीगढ़ के बीजेपी सांसद सतीश गौतम सवाल उठाते हैं कि एएमयू ने अपनी स्वायत्तता का दुरुपयोग किया है. अगर यहां किसी खास वर्ग के लिए कोई आरक्षण नहीं है तो यहां एक वर्ग के ही छात्र, शिक्षक और कर्मचारी ही न्न्यों हैं? एएमयू के जनसंपर्क विभाग के प्रमुख डॉ. राहत अबरार कहते हैं, ''प्रसिद्ध अल्पसंख्यक संस्थान होने के कारण एएमयू में ज्यादातर मुसलमान ही शिक्षक और कर्मचारी के रूप में तैनाती के लिए आवेदन करते हैं. एक पारदर्शी प्रक्रिया के जरिए इनका चयन होता है."
संघ के निशाने पर एएमयू
2005 में स्नातकोत्तर मेडिकल पाठ्यक्रमों में मुस्लिम छात्रों के लिए 50 फीसदी आरक्षण के प्रावधान के विरोध में सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दर्ज कराने वाले अलीगढ़ के सुरेंद्र नगर निवासी मानवेंद्र सिंह थे. वे उस वक्त राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के आनुषंगिक संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के जिला उपाध्यक्ष थे. उन्होंने ''एएमयू क्या अल्पसंख्यक संस्थान है?" नाम से एक किताब लिखकर इसकी 5,000 प्रतियां पूरे अलीगढ़ में बंटवाई थीं. इसके बाद से एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा हिंदुत्ववादी संगठनों के निशाने पर आ गया. इसी वर्ष 18 जून को नई दिल्ली के सरदार वल्लभभाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट में सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल की मौजूदगी में एक सम्मेलन किया गया, जिसमें यूपी के करीब 100 सांसदों-विधायकों समेत संघ के कई वरिष्ठ पदाधिकारियों ने हिस्सा लिया. कार्यक्रम में संघ से संपर्क रखने वाले दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक प्रो. राजकुमार फलवारिया और दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय, गोरखपुर के डॉ. ईश्वर शरण विश्वकर्मा की पुस्तक राष्ट्रीय आरक्षण नीति एवं अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का विमोचन कर एएमयू में दलितों और पिछड़ों को आरक्षण दिलाने का शंखनाद किया गया.
सभी नेताओं को निशुल्क बांटी गई 103 पन्ने की इस किताब के 17 अध्यायों में लेखकों ने सिलसिलेवार ढंग से एएमयू के अल्पसंख्यक संस्थान न होने को कानूनी प्रावधानों के साथ समझाया है. संघ के पदाधिकारियों ने बैठक में मौजूद सभी नेताओं से इस किताब का गहन अध्ययन करने को कहा है ताकि तर्कों के सहारे एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के खिलाफ और दलित, पिछड़ा आरक्षण के पक्ष में एक जनमत तैयार किया जा सके. संघ की बढ़ती सक्रियता के खिलाफ एएमयू के छात्र परिसर में लामबंद हो रहे हैं. एक संघर्ष की पृष्ठभूमि तैयार होती देख एएमयू के कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) जमीरुद्दीन शाह ने 11 जुलाई को इंडिया टुडे टेलीविजन को दिए इंटरव्यू में कोर्ट के फैसले के बाद परिसर में अशांति की आशंका जताई है. इस बयान के बाद से एबीवीपी कार्यकर्ता कुलपति के खिलाफ सड़क पर उतर आए हैं.
ध्रुवीकरण की जमीन
लोकसभा चुनाव के बाद से बीजेपी ने एएमयू के मसले को गरमाना शुरू कर दिया था. इसकी शुरुआत 1 दिसंबर, 2014 को मुरसान रियासत के राजा महेंद्र प्रताप सिंह का जन्मदिन मनाने को लेकर हुई. बीजेपी का तर्क था कि राजा महेंद्र प्रताप ने अपनी जमीन एएमयू को दान दी थी और इसलिए विश्वविद्यालय को उनका जन्मदिन मनाना चाहिए. इस मुद्दे के तूल पकडऩे के बाद एएमयू प्रशासन ने अपने परिसर में उनके जन्म दिवस पर एक कार्यक्रम कर मामला शांत किया.
2017 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी मुस्लिम विरोधी मतों के ध्रुवीकरण का कोई भी मुद्दा हाथ से नहीं जाना देना चाहती. एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे पर सवाल खड़े कर वह एक तीर से दो निशाने साध रही है. पहला, गैर मुसलमान वोटों का अपने पक्ष में ध्रुवीकरण और दूसरा दलित आरक्षण की बात कहकर बीएसपी के दलित-मुस्लिम समीकरण में दरार डालने की रणनीति. पूर्व मानव संसाधन राज्यमंत्री और आगरा से बीजेपी सांसद रामशंकर कठेरिया कहते हैं, ''कांग्रेस ने अल्पसंख्यक विवि के रूप में एएमयू पर कानूनी मुहर नहीं लगाई थी. यह एक राष्ट्रीय संस्थान है, दलितों और पिछड़ों को भी आरक्षण मिलना चाहिए." हालांकि एएमयू में दलित आरक्षण के मुद्दे पर बीजेपी के लगातार भड़काने के बावजूद बीएसपी फिलहाल इससे दूरी ही बनाए हुए है. भले ही यह पूरा प्रकरण न्यायालय में है, लेकिन बीजेपी एएमयू से जुड़े कई और मसलों को संसद में उठाकर मुद्दे की तपिश बरकरार रखने की तैयारी में है.
एएमयू के तराने की पहली लाइनें हैं—ये मेरा चमन है मेरा चमन... सर शारे निगाहे नरगिस हूं, पाबस्ताए गेसुए सुम्बुल हूं. इस खींचतान में यह ध्यान रखना होगा कि कहीं यह सुम्बुल अपनी महक ही न खो दे.