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मैं अरविंद केजरीवाल को वोट दूंगा, क्योंकि...

दिल्ली से आम आदमी पार्टी के सीएम पद के उम्मीदवार अरविंद केजरीवाल 'जे' टाइप के नेता नहीं है. वह नेतागीरी के ग्लैमरस स्वरूप को ध्वस्त करते हैं. हमारे जैसे कपड़े पहनते हैं और हमारी तरह बोलते हैं. पेश हैं ऐसी बातें, जिनके आधार पर मैं अरविंद केजरीवाल को ही वोट दूंगा....

Arvind Kejriwal Arvind Kejriwal
कुलदीप मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 21 जनवरी 2015,
  • अपडेटेड 8:57 PM IST

दिल्ली से आम आदमी पार्टी के सीएम पद के उम्मीदवार अरविंद केजरीवाल 'जे' टाइप के नेता नहीं है. वह नेतागीरी के ग्लैमरस स्वरूप को ध्वस्त करते हैं. हमारे जैसे कपड़े पहनते हैं और हमारी तरह बोलते हैं. आगे पेश हैं ऐसी बातें, जिनके आधार पर मैं अरविंद केजरीवाल को ही वोट दूंगा....

1. समझ में आने वाली बात करते हैं केजरीवाल

'नेताजी' का इंतजार करता एक आलीशान तंबू और बाहर बंट रही मुफ्त कचौड़ी खाते दो स्कूली बच्चे. हेलीकॉप्टर उतरता है तो ढेर सारी धूल उड़कर बच्चों के दौनों में मिल जाती है. फिर उनमें से एक आंख मींचते हुए कहता है, 'समझे पप्पू. नेता जे होता, जे.' मैं दिल्ली में अरविंद केजरीवाल को चुनूंगा क्योंकि वह 'जे' टाइप का नेता नहीं है. वह नेतागीरी के ग्लैमरस स्वरूप को ध्वस्त करता है. हमारे जैसे कपड़े पहनता है, हमारी तरह बोलता है. वह कंपनियों के पीपीटी प्रेजेंटेशन वाली 'फोर पी' और 'फाइव एस' टाइप भाषा नहीं बोलता, बल्कि समझ में आने वाली सीधी-सरल बात करता है. क्यों गलत तो नहीं कह रहा जी? पढ़ें...मैं अजय माकन को वोट दूंगा, क्योंकि...

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2. रणनीतिक गलती थी, माफी भी मांगी
इस्तीफा देने जैसी गलती के सिवाय अरविंद के बहीखाते में कुछ भी बुरा नहीं है और ये गलती भी महज एक 'रणनीतिक' गलती है. एग्जाम की तैयारी में आपसे भी ऐसी गलतियां हो जाती हैं. फिर भी केजरीवाल जब जनता के बीच जाता है, तो दोनों हाथ जोड़कर माफी मांगता है. इस दौर में जहां सत्ता एक नशा है, आपने ऐसे कितने नेता देखे हैं? पढ़ें-मैं किरण बेदी को वोट दूंगा, क्योंकि...

3. हाशिये के सवालों को बहस में लाए
केजरीवाल की नीयत पर अविश्वास पैदा हो, इसकी कोई पुख्ता वजह नहीं है. दिल्ली ये जानती है कि बंदा कुछ भी करे, भ्रष्टाचार कभी नहीं करेगा, न होने देगा. आम आदमी के नाम पर पार्टी बनाई है तो पहले उसी का काम करेगा, नहीं तो जनता फिर पटक देगी. बरसों से हाशिये पर पड़े कुछ जरूरी सवालों को आम आदमी पार्टी राजनीति के केंद्र में लाई है. पारदर्शिता और राजनीतिक नैतिकता इनमें अहम हैं. 'इंसान का इंसान से हो भाईचारा, यही पैगाम हमारा' पार्टी का एंथम है, जो घरवापसी, लव जिहाद, साध्वी, साक्षी और योगी के दौर में सुकून देने वाला है.

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4. पैसे का देते हैं पूरा हिसाब
आम आदमी पार्टी डिनर, चाय पार्टी या कहीं से भी पैसा जुटाए, उसका ब्योरा अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक करती है. लेकिन कांग्रेस-बीजेपी को चुनाव लड़ने का पैसा कौन देता है, हमें नहीं मालूम. अगर कोई बैकडोर से पैसा देता है तो क्या बैकडोर से अपना काम नहीं करवाएगा? भारत में रिश्वत का पुरातन सिद्धांत तो यही कहता है कि करवाएगा और जरूर करवाएगा. अडानी की संपत्ति पिछले कुछ महीनों में कितनी बढ़ी है, गूगल करके देखिए. आम आदमी पार्टी चुनावी फंडिंग को आरटीआई के दायरे में लाने के पक्ष में है. अगर बीजेपी-कांग्रेस ईमानदार हैं तो वह इसके खिलाफ क्यों हैं? कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है?

5. दाग इन पर नहीं, औरों पर है...
रही कांग्रेस से समर्थन की बात, तो याद कीजिए कि AAP ने कांग्रेस से समर्थन मांगा नहीं था, कांग्रेस ने समर्थन की चिट्ठी एलजी को पहले ही सौंप दी थी. कांग्रेस ने AAP को बिना मांगे बाहर से समर्थन दिया था. ठीक वैसे ही, जैसे एनसीपी ने बीजेपी को महाराष्ट्र में किया. चुनाव से पहले मोदी ने जिस एनसीपी तो 'नेशनल करप्ट पार्टी' कहा, बाद में उसी के बाहरी समर्थन से बहुमत पास करवा लिया और संवैधानिक बारीकियों से बेखबर जनता को उल्लू बनाने के लिए 'ध्वनि मत' का पर्दा डाल दिया. वही बीजेपी अब जम्मू-कश्मीर में पीडीपी संग मिलकर सरकार बनाने पर विचार कर रही है.

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6. अनुभव से जरूरी है नीयत
क्या कहा, केजरीवाल को सरकार चलाने का कम अनुभव है? लेकिन हमारे सिस्टम की मूल समस्या 'अनुभव की कमी' कभी नहीं रही. क्या कांग्रेसियों के पास कम अनुभव था देश चलाने का? यह वह दौर है जब हमें साफ नीयत वाले नेता चाहिए. अनुभव से समझौता हम कर लेंगे. फिर भी अगर आप अनुभव को अहम आधार मानते हैं तो किरण बेदी को किस मुंह से वोट देंगे? जुम्मा-जुम्मा चार दिन उनको राजनीति में हुए हैं और उनका लिट्मस टेस्ट भी अभी बाकी है. ऐसा लगता नहीं है कि वह बीजेपी के पारंपरिक स्ट्रक्चर और तौर-तरीकों से हटकर कुछ करेंगी.

7. स्वस्थ संवाद भी है एक वजह
मैं स्वस्थ संवाद और खुली बहस में यकीन करने वाला नेता चुनूंगा, प्रतिद्वंद्वियों को ब्लॉक करने वाला नहीं. बंदा सबके सामने बहस को तैयार है, पर 'सबसे अच्छे वक्ताओं की पार्टी' मुंह चुरा रही है. बीजेपी को कुछ तो डर है? नहीं तो फिर आ जाए सामने, कर ले अमेरिका की तर्ज पर बहस.

8. 49 दिनों में बहुत कुछ दिया
अब कुछ 49 दिनों की बात. अरविंद केजरीवाल ने 666 लीटर पानी मुफ्त कर दिया और 400 यूनिट तक बिजली इस्तेमाल करने वालों के बिजली के बिल आधे कर दिए. इसमें सब्सिडी का खर्च आया 200 करोड़ से कुछ अधिक और एक बहुत बड़े तबके को फायदा हुआ. अब विडंबना देखिए, लोकसभा चुनाव में 714 करोड़ रुपये फूंकने वाली बीजेपी और 500 करोड़ बहाने वाली कांग्रेस कह रही है कि सब्सिडी देना गलत है. भाई हंसी आ रही मेरे को तो. सिलिंडर की सब्सिडी भी हटा लो फिर तो.

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9. चोरबाजारी के विरोध में था आंदोलन
अच्छा, ये बिजली पर सब्सिडी-व्यवस्था भी टेंपरेरी थी. बिजली कंपनियों के निष्पक्ष ऑडिट के बाद इसका स्थायी समाधान निकाला जाना था. इसीलिए केजरीवाल ने बिजली कंपनियों के ऑडिट के आदेश दिए, जो कांग्रेस 15 साल में नहीं कर पाई. केजरीवाल का आंदोलन यह नहीं था कि बिजली महंगी है. आंदोलन था कि बिजली में चोरी है. कंपनियां मुनाफे का बड़ा हिस्सा दबा जाती हैं और कागजों पर खुद को घाटे में दिखाकर दाम बढ़ाने का दबाव बनाती हैं. लेकिन 49 दिनों की सरकार में केजरीवाल ने बता दिया कि वह इन कंपनियों पर नकेल कसने की नीयत से आए हैं. दबाया गया मुनाफा कंपनियों के हलक से निकाला जाएगा और उसका फायदा जनता को मिलेगा. केजरीवाल ने शीला दीक्षित और मुकेश अंबानी के खिलाफ एफआईआर के आदेश दिए. इस देश में अंबानी और शीला जैसे ताकतवर लोगों पर हाथ डालने के लिए कलेजे की जरूरत होती है. काबिल-ए-जिक्र है कि बीजेपी ने चुनाव प्रचार में 'दामाद जी' पर बहुत आरोप लगाए, पर चुनाव बाद, नतीजा ढाक के पात.

10. संघर्ष का तो इनाम मिलना ही चाहिए
बीजेपी एक स्थापित पार्टी है, AAP अभी संघर्षरत है. बीजेपी को वोट देने के तो बहुत मौके रहेंगे. अगर AAP का शासन पसंद न आए तो पांच साल बाद फिर जिता देंगे बीजेपी या कांग्रेस को. पर सीमित संसाधनों में केजरीवाल और उनकी टीम ने जो संघर्ष किया है, उन्हें उसका इनाम अभी मिलना चाहिए. मैं यह नहीं कहता कि आम आदमी पार्टी मेरे सपनों की पार्टी है. लेकिन मैं इस बात को लेकर सुनिश्चित हूं कि वह बीजेपी और कांग्रेस से कहीं बेहतर है. पूरे देश में एक ही पार्टी का राज होता है तो निरंकुश सत्ता की गुंजाइश बनने लगती है. इसलिए बीजेपी के विजय रथ को दिल्ली में रोकने की जरूरत है, ताकि 'चेक एंड बैलेंस' बना रहे. गांधी के मुल्क में आंदोलनों के प्रति आशावाद को जिंदा रखने के लिए भी केजरीवाल को जिताना चाहिए. अगर वह नहीं जीता तो हमारे सपनों का 'बोझ' उठाने के लिए कोई सरफिरा भी कभी इस देश में खड़ा नहीं होगा. तब चुनते रहना बारी-बारी से, बीजेपी और कांग्रेस को.

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