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मैं किरण बेदी को वोट दूंगा, क्योंकि...

दिल्ली में चुनाव के ऐलान के बाद से ही मन में हर दिन एक ही सवाल उठता था कि इस बार किस पार्टी को वोट दूं. तीनों मुख्य पार्टियों ने सीएम उम्मीदवार के नाम का ऐलान करके कुछ हद तक मेरी इस मुश्किल को थोड़ा आसान कर दिया. फिर भी आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच वोट देने को लेकर असमंजस की स्थिति में फंसा था, लेकिन किरण बेदी का अंदाज ए बयां भा गया. उनकी चंद बातों ने सारी उलझनें खत्म कर दीं. मैं अपने मत को लेकर स्पष्टता के साथ सोचने लगा. इन चुनावों में मैं किरण बेदी और बीजेपी को वोट दूंगा, क्योंकि....

किरण बेदी किरण बेदी
संदीप कुमार सिन्हा
  • नई दिल्ली,
  • 21 जनवरी 2015,
  • अपडेटेड 9:01 PM IST

दिल्ली में चुनाव के ऐलान के बाद से ही मन में हर दिन एक ही सवाल उठता था कि इस बार किस पार्टी को वोट दूं. तीनों मुख्य पार्टियों ने सीएम उम्मीदवार के नाम का ऐलान करके कुछ हद तक मेरी इस मुश्किल को थोड़ा आसान कर दिया. फिर भी आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच वोट देने को लेकर असमंजस की स्थिति में फंसा था, लेकिन किरण बेदी का अंदाज ए बयां भा गया. उनकी चंद बातों ने सारी उलझनें खत्म कर दीं. मैं अपने मत को लेकर स्पष्टता के साथ सोचने लगा. इन चुनावों में मैं किरण बेदी और बीजेपी को वोट दूंगा, क्योंकि....

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1. सख्त छवि का असर प्रशासन पर
नो पार्किंग जोन से पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की गाड़ी उठवाने के कारण किरण बेदी की छवि एक सख्त महिला पुलिस अधिकारी की बनी. इसका वाकये का असर उनके पुलिसिया करियर में भी दिखा, शायद आने वाले दिनों में दिल्ली के प्रशासन पर भी दिखे. क्योंकि मौजूदा व्यवस्था में सफल होने की क्षमता तो है, बस उसे सख्त और सही दिशा देने वाला प्रशासक चाहिए. पढ़ें- मैं अजय माकन को वोट दूंगा, क्योंकि...

2. नौकरशाही का अनुभव
सत्ता चलाना बच्चों का खेल नहीं है. इसकी कुछ बारीकियां होती हैं, जैसे नौकरशाही का काम, कानून बनाने की प्रक्रिया, वगैरह-वैगरह... सबसे अच्छी बात यह है कि किरण बेदी उसी नौकरशाही का हिस्सा रही हैं, उनका अनुभव लगभग 40 सालों का है. इसलिए मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्हें व्यवस्था और प्रशासन को समझने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा. इसके अलावा उनका जोर वादों से ज्यादा डिलीवरी पर है, जैसा वह अपने करियर में करती आई हैं. पढ़ें-मैं केजरीवाल को वोट दूंगा, क्योंकि...

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3. एक चेहरा भरोसे वाला
दिल्लीवालों को एमसीडी ने सबसे ज्यादा निराश किया है. गली-मुहल्लों की बदहाल सिविक व्यवस्था, भविष्य की कोई प्लानिंग नहीं. इन सबके लिए सिर्फ और सिर्फ दिल्ली बीजेपी और उसका नेतृत्व जिम्मेदार है. एक पल के लिए दिल्ली बीजेपी से भरोसा उठने लगा था कि लेकिन बीजेपी आलाकमान ने एेन मौके पर किरण बेदी को पार्टी में शामिल कर एक बार फिर से भरोसा स्थापित कर दिया. भरोसा एक चेहरे का और एक कुशल प्रशासक का.

4. महिला सुरक्षा में सुधार
दिल्ली की पहचान रेप सिटी के तौर पर हो गई है. समाज की सोच के साथ लचर पुलिस व्यवस्था महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध के लिए जिम्मेदार है. सोच बदलने में तो काफी वक्त लगेगा, लेकिन पुलिस रिफॉर्म की शुरुआत तो हो ही सकती है. इस दिशा में किरण बेदी के काम से हर कोई वाकिफ है, अब उसे लागू करने का वक्त आ गया है.

5. मोदी के विजन ही हैं बेदी का विजन
लोकसभा में मैंने नरेंद्र मोदी को वोट दिया था. किरण बेदी अभी तक जिस प्रशासनिक सुधार और विजन की बात करती रही हैं, यह पीएम मोदी के बड़े एजेंडे का हिस्सा है. यानी हम बेदी के साथ चलेंगे तो कदम से कदम मोदी के साथ भी मिलाएंगे. इसके अलावा बेदी बार बार सरकार और जनता की साझेदारी से व्यवस्था को दुरुस्त करने और सुचारु ढंग से चलाने की बात करती हैं. आम आदमी को राजनीति के मुख्यधारा से जोड़ने का इससे बेहतर तरीका नहीं है.

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6. प्रधानमंत्री मोदी को है बेदी पर विश्वास
वोटर के तौर पर आज मैं स्पष्ट तौर पर जानता हूं कि मैं जिस सीएम उम्मीदवार के लिए वोट कर रहा हूं उसे प्रधानमंत्री का विश्वास प्राप्त है. वह तो उम्मीदवार भी मोदी द्वारा समझाने के बाद बनीं. मोदी ने इस देश को एक उम्मीद दी कि हम बेहतर कर सकते हैं, अब दिल्लीवाले को भी बेदी में एक उम्मीद नजर आ रही है.

7. संवाद है किरण बेदी की यूएसपी
कई पार्टियों को जनता से संवाद टूट के कारण भारी नुकसान उठाना पड़ा है. पर किरण बेदी के रहते ऐसा नहीं होने वाला. कभी बहन तो कभी मां, सिर्फ अंदाज बदलता है पर बड़ी ही साफगोई से उनकी जुबान से निकली बात दिमाग और दिल दोनों तक पहुंच जाती है.

8. तू खराब इसलिए मैं अच्छा की राजनीति नहीं
'तू खराब है इसलिए मैं अच्छा हूं', इस तरह की राजनीति ने देश का बेड़ा गर्क कर दिया है. कुछ हद तक दिल्ली का भी. आपके पास क्या अच्छा है? आप जनता को उसके बारे में बताएं. यही अब तक किरण बेदी ने किया है. बेदी का फोकस विजन और एजेंडे पर रहा है और हमें इसी सकारात्मक एप्रोच की जरूरत है.

9. 40 साल ईमानदारी के
किरण बेदी ने कभी खुद को ईमानदारी का ठेकेदार तो नहीं बताया पर 40 साल के करियर में उनकी निष्ठा पर भी कभी सवाल नहीं उठे. अगर राजनीतिक होतीं तो शायद दिल्ली के कमिश्नर पद से ही रिटायर करतीं, पर उन्होंने स्वैच्छिक रिटायरमेंट लेना ज्यादा मुनासिब समझा. 40 वर्ष लंबा वक्त होता है इसलिए दिल्ली को उनसे टिकाऊ तो नहीं मिलने वाला.

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10. महिलाएं ज्यादा संवेदनशील
घर चलाना तो महिलाओं को ही बेहतर आता है. दिल्ली भी तो अपना घर ही है. उनकी संवेदनशीलता अक्सर बड़े से बड़े से घावों पर मरहम लगाने का काम करती है. मैं ये नहीं कह रहा कि पुरुषों में ये गुण नहीं हैं, पर वक्त की जरूरत हैं किरण बेदी. 

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