केजरीवाल के 'स्पेशल 21' पर बड़ा संकट, जानें क्या कहता है कानून
दिल्ली की केजरीवाल सरकार यूं तो लीक से हटकर काम करने के लिए मशहूर है. लेकिन संसदीय सचिवों की नियुक्ति मामले में सरकार घिरती नजर आ रही है. क्योंकि दिल्ली में संसदीय सचिव मुख्यमंत्री के ऑफिस में तो हो सकता है, मंत्रियों के नहीं.
दिल्ली की केजरीवाल सरकार यूं तो लीक से हटकर काम करने के लिए मशहूर है. लेकिन संसदीय सचिवों की नियुक्ति मामले में सरकार घिरती नजर आ रही है. क्योंकि दिल्ली में संसदीय सचिव मुख्यमंत्री के ऑफिस में तो हो सकता है, मंत्रियों के नहीं. यही कानून चुनाव आयोग की इंटरनल रिपोर्ट में केजरीवाल के संसदीय सचिवों के लिए मुसीबत बन रहा है और 21 विधायकों की सदस्यता भी खतरे में हैं.
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कानून क्या कहता है यहां पढ़ें: 1. दिल्ली के कानून में लिखा है कि संसदीय सचिव हो सकता है, लेकिन मुख्यमंत्री के ऑफिस को ये अधिकार है. बाकी मंत्रियों के ऑफिस में संसदीय सचिव का कोई प्रावधान नहीं है. 2. केजरीवाल सरकार ने बिल में ये जोड़ दिया कि संसदीय सचिव मुख्यमंत्री के साथ-साथ मंत्री के साथ भी हो सकते हैं. 3. दिल्ली में 10 फीसदी मंत्री हो सकते हैं, अगर 21 संसदीय सचिव बना दिए तो ये संविधान के खिलाफ होगा. 4. 1997 में एक डिसक्वालिफिकेशन को दूर करने के लिए जो बिल पास हुआ था, उसमें केवल दो ऑफिस को 'ऑफिस ऑफ प्रॉफिट' के ग्राउंड पर इसका छूट दिया गया था, ये छूट एक खादी बोर्ड के चेयरमैन और दूसरे महिला कमेटी की चेयरमैन को मिला था. 5. 2006 में जो संशोधन किया गया, उसके बाद मुख्यमंत्री को संसदीय सचिव रखने का अधिकार है लेकिन मंत्रियों के पास ये अधिकार नहीं है. 6. केजरीवाल सरकार ने नए संशोधन के साथ की मंत्रियों को भी संसदीय सचिव रखने का अधिकार दिलवाने के लिए राष्ट्रपति के पास ड्राफ्ट भेजा था. लेकिन राष्ट्रपति ने इसे खारिज कर दिया. लिहाजा ये कानून नहीं बन पाया. 7. इसको लेकर संविधान की धारा 192 में NCT एक्ट के लिए खास प्रावधान है. अगर कोई ऑफिस ऑफ प्रॉफिट होल्ड करता है तो वो विधानसभा से अपनी सदस्यता खो सकता है. अब इस मामले में इलेक्शन कमीशन के राय के बाद राष्ट्रपति कदम उठाएंगे. अगर वो संविधान के हिसाब से काम करेंगे तो 21 संसदीय सचिव अपनी सदस्यता खो देंगे और फिर दोबारा चुनाव होंगे. 8. कई राज्यों में मंत्रियों ने भी संसदीय सचिव रखे हुए हैं, लेकिन इसकी मंजूरी मिलने और कानून बनने के बाद ऐसा हुआ है. लेकिन दिल्ली सरकार ने मंजूरी मिलने से पहले ही संसदीय सचिव रख लिए और कानून न बनने के कारण अब इनकी सदस्यता असंसदीय और गैरकानूनी है. 9. कई राज्यों में सरकारों ने हाई कोर्ट में इससे चुनौती भी दी. लेकिन कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया. 10. सदस्यता रद्द होने और दोबारा चुनाव होने मे कितना समय लगेगा ये निर्वाचन आयोग के विवेक पर है.