
गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को श्रीनगर में कहा कि सरकार कश्मीर में पैलेट गन के इस्तेमाल और उस पर ऊपजे विवाद से वाकिफ है. उन्होंने सीएम महबूबा मुफ्ती के साथ साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि जल्द ही इसका विकल्प हमारे पास होगा, वहीं अब खबर है कि गृह मंत्रालय का एक एक्सपर्ट पैनल पैलेट गन की जगह PAVA शेल्स के इस्तेमाल पर विचार कर रहा है. पावा शेल मिर्ची के गोले हैं, जिससे ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचता.
घाटी में बीते 49 दिनों से जारी अशांति और हिंसा के दौर में पत्थरबाजी और प्रदर्शनकारियों पर काबू पाने के लिए सुरक्षाबल पैलेट गन का इस्तेमाल कर रहे हैं. ये छोटे-छोटे धातु के छर्रे होते हैं, जो शरीर में जाकर चुभ जाते हैं. इस ओर विवाद तब गहराया जब पैलेट गन से घायल कई लोगों के आंखों की रोशनी तक खोने की बात सामने आई.
सात सदस्यों की कमेटी तलाश रही विकल्प
अंग्रेजी अखबार 'टाइम्स ऑफ इंडिया' की खबर के मुताबिक, गृह मंत्रालय की एक्सपर्ट कमेटी मिर्ची के गोलों को धातु के छर्रे के विकल्प के तौर पर देख रही है. हालांकि अभी इस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है. सरकारी सूत्रों के हवाले से अखबार ने लिखा है कि गृह मंत्रालय के कुछ अधिकारियों, बीएसफ, सीआरपीएफ, जम्मू-कश्मीर पुलिस, आईआईटी-दिल्ली और ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड के 7 सदस्यों वाली कमेटी भीड़ को नियंत्रित करने के लिए विकल्प की तलाश रही है.
एक साल से ट्रायल पर है पावा शेल
गृह मंत्री के मुताबिक, यह पैनल जल्द ही एक अपनी रिपोर्ट सौंपेगा, जिसके बाद इस ओर आखिरी फैसला किया जाएगा. इन पावा शेल्स को साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) के तहत लखनऊ स्थित प्रयोगशाला में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च ने विकसित किया था. अधिकारियों ने बताया कि पावा गोले IITR में एक साल से भी ज्यादा समय से ट्रायल में हैं.
बीएसएफ ने सुझाया ये उपाय
पावा यानी पेलागॉर्निक एसिड वनीलल अमाइड को नॉनिवमाइड के नाम से भी जाना जाता है. यह प्राकृतिक काली मिर्च में पाया जाने वाला कार्बनिक यौगिक है. इसका इस्तेमाल सामने वाले व्यक्ति के शरीर में जलन पैदा कर देता है और वह कुछ न कर पाने की हालत में पहुंच जाता है. इन गोलों से ज्यादा हानि नहीं पहुंचती. हालांकि, इसके अतिरिक्त बीएसएफ के टीएसयू द्वारा बनाया गया 'स्टन ग्रेनेड' भी एक विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है. यह टारगेट को बेहोश कर देता है और कुछ मिनट के लिए अंधा कर देता है.