
गवना कराइ सैंया घर बइठवले से,
अपने लोभइले परदेस रे बिदेसिया।।
चढ़ली जवानियां बैरन भइली हमरी रे,
के मोरा हरिहें कलेस रे बिदेसिया।।
भोजपुरी जनजीवन का यह राग है, भोजपुरी लोक संगीत की आत्मा ऐसे गीतों में बसती है. इसके सर्जक हैं भिखारी ठाकुर. 'भोजपुरी के शेक्सपियर' कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर की आज जयंती है. साहित्य आजतक अपने पाठकों के लिए आज उनसे जुड़ी हुई 10 बड़ी बातें बता रहा है...
भिखारी ठाकुर का जन्म
1- भिखारी ठाकुर का जन्म 18 दिंसबर साल 1887 को बिहार के छपरा के गांव कुतुबपुर में एक हज्जाम परिवार में हुआ था.
भिखारी ठाकुर को रामचरित मानस कंठस्थ था
2- भिखारी ठाकुर के व्यक्तित्व में कई आश्चर्यजनक खासियतें थीं. महज अक्षर भर के ज्ञान के बावजूद उन्हें पूरा रामचरित मानस कंठस्थ था.
नौकरी छोड़ रामलीला मंडली बनाई
3- शुरुआती जीवन में भिखारी ठाकुर रोजी रोटी के लिए अपना घर-गांव छोड़कर खड्गपुर चले गए. कुछ वक्त तक वह रोजी रोटी में लगे रहे. कहते हैं इस दौरान तकरीबन तीस साल तक उन्होंने अपना पुश्तैनी पारंपरिक पेशा भी नहीं छोड़ा, पर बाद में भिखारी ठाकुर अपने गांव लौट आए और लोक कलाकारों की एक नृत्य मंडली बनाई और उनके साथ रामलीला करने लगे.
चित्रा मुद्गल, जिनकी लेखकीय संवेदना में झलका किन्नरों का दर्द
4- भिखारी ठाकुर बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे. वह एक लोक कलाकार के साथ कवि, गीतकार, नाटककार, नाट्य निर्देशक, लोक संगीतकार और अभिनेता थे. उनकी मातृभाषा भोजपुरी थी और उन्होंने भोजपुरी को ही अपने काव्य और नाटक की भाषा बनाया. उनकी प्रतिभा का आलम यह था कि महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने उनको 'अनगढ़ हीरा' कहा, तो जगदीशचंद्र माथुर ने कहा 'भरत मुनि की परंपरा का कलाकार'.
भोजपुरी के नाटक 'बेटी बेचवा', 'गबर घिचोर' आज भी प्रचलित
5- उनके निर्देशन में भोजपुरी के नाटक 'बेटी बेचवा', 'गबर घिचोर', 'बेटी वियोग' का आज भी भोजपुरी अंचल में मंचन होता रहता है. इन नाटकों और फिल्मों के जरिए भिखारी ठाकुर ने सामाजिक सुधार की दिशा में जबरदस्त योगदान दिया.
गौरवशाली अतीत की परंपरा हैं बिहार के सांस्कृतिक उत्सव
करीब 29 पुस्तकों के लेखक
6- भिखारी ठाकुर कई कामों में व्यस्त रहने के बावजूद भोजपुरी साहित्य की रचना में भी लगे रहे. उन्होंने तकरीबन 29 पुस्तकें लिखीं, जिस वजह से आगे चलकर वह भोजपुरी साहित्य और संस्कृति के संवाहक बने.
फिल्म विदेशिया ने दिलाई पहचान
7- हंसि हंसि पनवा खीऔले बेईमनवा कि अपना बसे रे परदेस।
कोरी रे चुनरिया में दगिया लगाई गइले, मारी रे करेजवा में ठेस!
फिल्म विदेशिया ने भिखारी ठाकुर को खासी पहचान दिलायी. उस फिल्म की ये दो पंक्तियां आज भी भोजपुरी अंचल में मुहावरे की तरह गूंजती रहती हैं.
बिदेसिया शैली के आविष्कारक
8- बिहार में उस खांटी नाच शैली की मौत हो चुकी है, जिसके लिए भिखारी को पहचाना जाता है. सभ्य नाच या बिदेसिया शैली के आविष्कारक भिखारी ठाकुर ही थे. औरतों की ड्रेस पहन लडक़ों या पुरुषों के नाचने की परंपरा यानी लौंडा नाच भी अब स्वतंत्र रूप से खत्म हो चुका है.
रायबहादुर की उपाधि
9- जिस अंग्रेजी राज के खिलाफ नाटक मंडली के माध्यम से वह जीवन भर जनजागरण करते रहे, बाद में उन्हीं अंग्रेजों ने उन्हें रायबहादुर की उपाधि दी.
83 साल की उम्र में निधन
10- भिखारी ठाकुर ने भरपूर उम्र जी. 83 साल की उम्र में 10 जुलाई, 1971 को 'भोजपुरी के शेक्सपियर' भिखारी ठाकुर ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.