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वीडियोकॉन को कर्ज देने के मामले की जांच अब बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) भी कर सकता है. सेबी आईसीआईसीआई बैंक के पिछले कुछ साल के वित्तीय खुलासों और बयानों की फॉरेंसिक जांच करने पर विचार कर रहा है. यही नहीं, सेबी इस मामले में भारतीय रिजर्व बैंक की भी सलाह ले सकता है.
आईसीआईसीआई बैंक की प्रमुख चंदा कोचर वीडियोकॉन को लोन देने के मामले में सवालों के घेरे में है. अब सेबी भी इस मामले में जांच की तैयारी कर रहा है. इस जांच में बाजार नियामक यह देखेगा कि पिछले कुछ सालों के दौरान आईसीआईसीआई बैंक की तरफ से किए गए खुलासों और वीडियोकॉन समूह को दिए विवादित ऋण को लेकर शेयर बाजार को क्या जवाब दिए गए हैं.
वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि सेबी की जांच में उन खुलासों को भी शामिल किया जाएगा जो बैंक ने तब किए थे, जब चंदा कोचर 2009 में पहली बार सीईओ एवं एमडी नियुक्त हुई थी.
जरूरत पड़ने पर सेबी कथित हितों के टकराव की जांच के लिए चंदा कोचर समेत बैंक के शीर्ष अधिकारियों के कारोबारी सौदों को लेकर जानकारी मांग सकती है.
चंदा कोचर पर वीडियोकॉन ग्रुप को 4000 करोड़ रुपये का लोन देने के मामले में कथित ‘भाई-भतीजावाद’ दिखाने और हितों के टकराव के आरोपों को लेकर उंगली उठ रही है. आईसीआईसीआई बैंक और वीडियोकॉन ग्रुप के निवेशक अरविंद गुप्ता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिख कर बैंक के ऋण देने के तौर तरीकों पर सवाल उठाया. उन्होंने चंदा कोचर पर वेणुगोपाल धूत के वीडियोकॉन कारोबारी समूह को अनुचित लाभ पहुंचाने का आरोप लगाया है.
अरविंद गुप्ता ने प्रधानमंत्री को 15 मार्च 2016 को ये चिट्ठी लिखी थी. गुप्ता का आरोप है कि चंदा कोचर ने वीडियोकॉन को कुल 4000 करोड़ रुपये के दो ऋण मंजूर करने के बदले में गलत तरीके से निजी लाभ लिया. गुप्ता ने चंदा कोचर पर मॉरिशस और केमेन आइलैंड जैसे टैक्स हैवेन देशों में स्थित कंपनियों के जरिये वीडियोकॉन को लोन देने का आरोप लगाया है.
आईसीआईसीआई बैंक ने अपनी सीईओ का बचाव किया. बैंक ने कहा है कि बैंक का कोई भी व्यक्ति अपने पद पर इतना सक्षम नहीं है कि बैंक के क्रेडिट से जुड़े फैसलों को प्रभावित कर सके. शेयर बाजार को भेजी सूचना में बैंक ने कहा कि बोर्ड ने ऋण मंजूरी की बैंक की आंतरिक प्रक्रियाओं की भी समीक्षा की है और उन्हें ठोस पाया है. बैंक ने कहा, 'बोर्ड इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि कथित अफवाहों में लाभ के लिए कर्ज देने या हितों के टकराव का जो आरोप लगाया गया है, उसका सवाल ही नहीं उठता.'