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Conclave 15: जब दीपक चोपड़ा ने नर्स से मांगी टॉर्च और...

मशहूर मोटिवेटर और आध्‍यात्मिक गुरु दीपक चोपड़ा ने शुक्रवार को इंडिया टुडे कॉनक्‍लेव में अपने शुरुआती करियर के कुछ दिलचस्‍प किस्‍से साझा किए. दिल्‍ली के सेंट कोलंबस स्‍कूल से पढ़ाई करके एम्‍स से MBBS करने वाले चोपड़ा के करियर की शुरुआत बहुत दिलचस्‍प रही.

इंडिया टुडे कॉनक्‍लेव में दीपक चोपड़ा इंडिया टुडे कॉनक्‍लेव में दीपक चोपड़ा
रोहित गुप्‍ता
  • नई दिल्ली,
  • 13 मार्च 2015,
  • अपडेटेड 7:42 PM IST

मशहूर मोटिवेटर और आध्‍यात्मिक गुरु दीपक चोपड़ा ने शुक्रवार को इंडिया टुडे कॉनक्‍लेव में अपने शुरुआती करियर के कुछ दिलचस्‍प किस्‍से साझा किए. दिल्‍ली के सेंट कोलंबस स्‍कूल से पढ़ाई करके एम्‍स से MBBS करने वाले चोपड़ा के करियर की शुरुआत बहुत दिलचस्‍प रही.

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खाली जेब
दीपक चोपड़ा ने बताया कि 1969 में एमबीबीएस करने के बाद उन्‍हें अमेरिका में न्‍यू जर्सी के हॉस्पिटल में नौकरी मिली. उस वक्‍त नियमों के चलते आप 8 डॉलर से ज्‍यादा लेकर देश से बाहर नहीं जा सकते थे. मैंने अपने अंकल से 100 डॉलर और लिए. मेरे पास कुल 108 डॉलर हो गए, लेकिन वो सारे पैसे होटल में खर्च हो गए. जब मैं न्‍यूयॉर्क पहुंचा तो मेरे पास एक भी डॉलर नहीं था. मैंने हॉस्पिटल में फोन किया तो मुझे लाने के लिए हेलिकॉप्‍टर भेजा गया. इस तरह मैं हॉस्पिटल पहुंचा.

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पहला मरीज
दी‍पक चोपड़ा ने बताया कि हॉस्पिटल में उन्‍हें सबसे पहले मरीज के तौर पर एक लाश मिली. जब वो कमरे में पहुंचे तो उस लाश के आसपास कोई नहीं था. भारत में लाश हो तो उसके पास परिजनों की भीड़ लगी रहती है. मैंने नर्स से पूछा कि जब ये मर ही चुका है तो आप मुझसे क्‍या चाहती हैं? उन्‍होंने कहा कि मुझे उसकी मौत की पुष्टि करनी है. अमेरिका में डेड बॉडी को लोग तभी घर लेकर जाते हैं, जब डॉक्‍टर उसकी मौत की पुष्टि कर दे.

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जब मांगी टॉर्च
मैंने डेड बॉडी को चेक करने के लिए नर्स से टॉर्च मांगी तो वह उसका मतलब ही नहीं समझ पाई. टॉर्च शब्‍द का इस्‍तेमाल वहां नहीं होता था. दूसरी नर्स को टॉर्च सुनकर लगा कि मैं मरीज के अंतिम संस्‍कार की बात कर रहा हूं.

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पहली किताब खुद छपवाई
दीपक चोपड़ा के मुताबिक, उनकी पहली किताब छापने के लिए कोई प्रकाशक तैयार नहीं था. आखिरकार उन्‍होंने खुद अपनी पहली किताब छपवाई, जिसमें दिमाग और शरीर का कनेक्‍शन बताया गया था. मेरी किताब नेशनल बेस्‍ट सेलर बन गई और इस तरह लेखक के तौर पर मेरा सफर शुरू हुआ.

महर्षि योगी से पहली मुलाकात
महर्षि योगी से वॉशिंगटन में पहली बार मिला. उनसे मिलने से पहले मेरे अंदर भाव थे कि एक गुरु मुझे क्‍या सिखा पाएगा.

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