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भारत के शिक्षाविद् , स्वतंत्रता सेनानी और हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) के पितामाह के नाम से पहचाने जाने वाले मदन मोहन मालवीय की आज पुण्यतिथि है. राष्ट्र प्रेम, राष्ट्र भाषा के समर्थक पंडित मदन मोहन मालवीय का निधन 12 नवंबर 1946 को बनारस में हुआ था. उनका जीवन देश और शिक्षा को समर्पित था. साल 1884 में उन्होंने बीए की डिग्री हासिल की और उसी साल कुमारी देवी से मिर्जापुर में शादी भी की.
जानें उनके बारे में खास बातें...
मालवीय बचपन से अपने पिता की तरह भागवत की कहानी कहने वाले यानी कथावाचक बनना चाहते थे, लेकिन गरीबी के कारण उन्हें 1884 में सरकारी विद्यालय में शिक्षक की नौकरी करनी पड़ी. वह पूरे भारत में अकेले ऐसे शख्स हैं जिन्हें 'महामना' की उपाधि दी गई है.
मदन मोहन मालवीय के परिवार में संपत्ति विवाद सतह पर
हिंदू यूनिवर्सिटी का जिक्र
जब भी मदन मोहन मालवीय के बारे में बात की जाती है तो बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) का जिक्र जरूर किया जाता है. उन्होंने इसकी स्थापना साल 1916 में की थी. वह 20 साल तक बीएचयू के वाइस चांसलर भी रहे. साथ ही साल 1924 से 1946 तक हिंदुस्तान टाइम्स के चेयरमैन भी रहे.
उन्होंने साल 1907 में 'अभ्युदय' हिंदी साप्ताहिक की शुरुआत की. फिर 1909 में 'द लीडर' अंग्रेजी अखबार की स्थापना की थी. यह अखबार इलाहाबाद से प्रकाशित होता था. मदन मोहन मालवीय एक मात्र ऐसे थे, जो कांग्रेस के 4 बार अध्यक्ष चुने गए. वह उस दौर के लोकप्रिय नेता कहलाए जाते थे.
जब महात्मा गांधी ने की तारीफ...
मदन मोहन मालवीय से गांधी से मिले, तब मिलने के बाद उन्होंने कहा था कि 'मालवीय जी मुझे गंगा की धारा जैसे निर्मल और पवित्र लगे, मैंने तय किया कि मैं गंगा की उसी निर्मल धारा में गोता लगाऊंगा'.
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भारत रत्न' से सम्मानित
भारत सरकार ने महामना मदन मोहन मालवीय को 2015 में सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया था. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में मालवीय के परिजनों को भारत रत्न प्रदान करने के साथ ही बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी सहित कई लोगों को पद्म पुरस्कारों से भी सम्मानित किया था. आपको बता दें कि 'सत्यमेव जयते' नारे को लोकप्रिय बनाने वाले मालवीय जी ही थे.
जब मदन मोहन ने यूं सिखाया था निजाम को सबक
बीएचयू विश्वविद्यालय के निर्माण के समय मालवीय जी दान के लिए हैदराबाद के निजाम के पास गए तो, निजाम ने मदद करने से साफ इंकार कर दिया. उन्होंने निजाम को सबक सिखाने की ठानी. कहा जाता है जब वह वापस लौट रहे तो निजाम की चप्पल उठाकर ले गए और बाजार में बेचने की कोशिश करने लगे. निजाम को इस बात की भनक लगी पर महामना ने दान लिए बगैर चप्पल नहीं लौटाई.
तीनों भाषाओं के विद्वान
मालवीय जी संस्कृत, हिंदी तथा अंग्रेजी तीनों ही भाषाओं के ज्ञाता थे. महामना जी का जीवन विद्यार्थियों के लिए एक महान प्रेरणा स्रोत है. जनसाधारण में वे अपने सरल स्वभाव के कारण ही सबके प्रिय थे, कोई भी उनके साथ बात कर सकता था.