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शिवसेना की BJP को नसीहत- पहले 6 महीने काम करने दें, फिर आलोचना करें

महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे कैबिनेट का सोमवार को विस्तार हो गया. हालांकि इस शपथ ग्रहण समारोह का भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने बहिष्कार किया था. बीजेपी के इस रवैये पर शिवसेना भड़क गई है. सामना का कहना है कि सरकार को कम-से-कम 6 महीने शासन करने दीजिए फिर विरोधी अपने अस्त्र बाहर निकालें.

शपथ लेने के बाद CM उद्धव ठाकरे से मिलते आदित्य ठाकरे (PTI) शपथ लेने के बाद CM उद्धव ठाकरे से मिलते आदित्य ठाकरे (PTI)
विद्या
  • मुंबई,
  • 31 दिसंबर 2019,
  • अपडेटेड 10:01 AM IST

  • मंत्रिमंडल विस्तार में देरी की बात करना निरर्थकः सामना
  • दिलदारी और धैर्य नहीं होगी तो जनता माफ नहीं करेगी

महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे कैबिनेट का सोमवार को विस्तार हो गया. हालांकि इस शपथ ग्रहण समारोह का भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने बहिष्कार किया था. बीजेपी के इस रवैये पर शिवसेना भड़क गई है.

शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में लिखा, 'सरकार को कम-से-कम 6 महीने शासन करने दीजिए फिर विरोधी अपने अस्त्र बाहर निकालें, ऐसा जनता को लग रहा था, लेकिन पहले दिन से ही देवेंद्र फडणवीस और उनकी पार्टी ने विरोध हेतु विरोध शुरू करके अपनी ही हंसी करवाई. विरोधी दल पहले सरकार को काम करने दे. इतनी दिलदारी और धैर्य राजनीति में नहीं होगी तो जनता उन्हें माफ नहीं करेगी.'

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'लंबे-चौड़े मंत्रिमंडल की जरूरत ही क्या'

सामना ने मंत्रिमंडल विस्तार के बाद अपने संपादकीय में लिखा कि महाराष्ट्र के रुके हुए मंत्रिमंडल विस्तार को मुहूर्त मिल गया है. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में ‘छह’ लोगों का मंत्रिमंडल पिछले महीनेभर से काम कर रहा था. इन छह की ‘कैबिनेट’ने नागपुर अधिवेशन को अच्छे से सफल बनाया.

अखबार मंत्रिमंडल विस्तार में हुई देरी पर सफाई देते हुए लिखता है कि किसानों की कर्जमाफी से लेकर दस रुपए में पेट भर थाली तक के कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए. इसके लिए लंबे-चौड़े मंत्रिमंडल की जरूरत ही क्या है? लोगों के जहन में ऐसा सवाल उठ रहा था. उसने आगे कहा कि पूरे देश में नागरिकता संशोधन विधेयक पर अशांति फैली हुई है और आग लगी हुई है, ऐसे में मुख्यमंत्री और छह लोगों के मंत्रिमंडल को महाराष्ट्र को शांत रखने में सफलता मिली.

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शिवसेना के मुखपत्र में आगे कहा गया कि ‘विस्तार’ क्यों रुका रहा और विस्तार करना नहीं जमता, जैसे आरोपों का कोई मतलब नहीं रह जाता. लेकिन एक घर में दो से चार लोग होते हैं फिर पालना हिलता है और गृहस्थी सार्थक होती है.

सामना लिखता है कि महाराष्ट्र के संदर्भ में ऐसा हुआ है. छह से छत्तीस हो गए. इसलिए सरकार के तीनों दलों में खुशी का माहौल है. विधायकों की संख्यानुसार सरकार में शामिल दलों को मंत्री पदों का ‘आंकड़ा’ मिला है. कुल 36 मंत्रियों ने शपथ ली. इनमें अजीत पवार ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली, ये महत्वपूर्ण है.

शिवसैनिकों को क्यों नहीं मिला चांस

शिवसेना का मुखपत्र आगे लिखता है कि अब उद्धव ठाकरे और अजित पवार आस-पास बैठेंगे. शिवसेना की ओर से दिवाकर रावते, रामदास कदम, तानाजी सावंत, दीपक केसरकर और रवींद्र वायकर को दोबारा मौका नहीं मिला. युवा सेनाप्रमुख आदित्य ठाकरे पहली बार विधायक बने और अब मंत्रिमंडल में शामिल हुए हैं.

सामना लिखता है कि बच्चू कडू, शंकर राव गडाख और राजेंद्र येड्रावकर इन‘निर्दलियों’को शिवसेना कोटे से मंत्री बनाए जाने के कारण पुराने शिवसैनिकों को मौका नहीं मिल पाया. कोल्हापुर के शिवसेना के एकमात्र विधायक प्रकाश आबिटकर को इसीलिए मौका नहीं मिल पाया होगा. बाकी शिवसेना के वही चेहरे हैं.

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'कांग्रेस और राष्ट्रवादी में पुराने और नए का संगम हुआ है. दिलीप वलसे पाटील, जितेंद्र आह्वाड, राजेंद्र शिंगणे, राजेश टोपे, धनंजय मुंडे, हसन मुश्रीफ, नवाब मलिक और अनिल देशमुख मंत्री बनने ही वाले थे. रायगड से अदिति तटकरे, कराड उत्तर निर्वाचन क्षेत्र से बालासाहेब पाटील, नगर से प्राजक्त तनपुरे ऐसे नए नाम मंत्रिमंडल में आए हैं.'

'पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण अब कैबिनेट मंत्री के रूप में ‘ठाकरे सरकार’ में शामिल हुए हैं. कांग्रेस के अमित देशमुख का आगमन उनके कर्तृत्ववान पिता पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख की याद दिलाने वाला है. यशोमति ठाकुर और वर्षा गायकवाड ये दो अच्छे काम करनेवाली महिलाएं सरकार में आई हैं. विश्वजीत कदम, सतेज पाटील, सुनील केदार और मुंबई से असलम शेख को मौका मिला है. इस प्रकार महाराष्ट्र की संपूर्ण सरकार अधिकार में आ गई है. राज्य को गति मिलेगी और राज्य आगे बढ़ेगा, ये ऐसा मंत्रिमंडल है.'

विपक्ष के रवैये की आलोचना करते हुए सामना कहता है कि मंत्रिमंडल विस्तार कार्यक्रम का देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में विरोधी दल ने बहिष्कार किया है. ये संसदीय लोकतंत्र और महाराष्ट्र राज्य का दुर्भाग्य ही है. अधिवेशन के पहले सरकार के चाय-पानी का बहिष्कार करना मानो विरोधियों का नित्य कर्तव्य ही बन चुका है, लेकिन कुछ भी कारण बताकर मंत्रिमंडल विस्तार समारोह का बहिष्कार करके अपशकुन करना कौन-सा धंधा है.

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'पहले 6 महीने का मौका दे विपक्ष'

सामना कहता है कि नागपुर अधिवेशन के पहले दिन विरोधी दल ने हंगामा करके सभा त्याग किया. सरकार को कम-से-कम 6 महीने शासन करने दीजिए फिर विरोधी अपने अस्त्र बाहर निकालें, ऐसा जनता को लग रहा था. लेकिन पहले दिन से ही फडणवीस और उनकी पार्टी ने विरोध हेतु विरोध शुरू करके अपनी ही हंसी करवाई.

विरोधी दल पहले सरकार को काम करने दे. इतनी दिलदारी और धैर्य राजनीति में नहीं होगी तो जनता उन्हें माफ नहीं करेगी. इस बात को वे न भूलें. अब राज्य में संपूर्ण सरकार और नए 36 मंत्री शासन में आए हैं. विरोधी दल आधा-अधूरा काम करके राज्य का अपशकुन न करे.

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