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एमसीडी चुनाव के लिए डीलिमिटेशन के बाद अब वार्ड आरक्षण को भी राज्य चुनाव आयोग ने नोटिफाई कर दिया है. इस नोटिफिकेशन से नगर निगम का चुनाव लड़ने का सपना पाले बैठे कई नेताओं के सपने चकनाचूर हो गए हैं. इसकी वजह है आरक्षण के फॉर्मूले से वार्डों का चुनावी हिसाब किताब बदल गया है. समीकरण तो डीलिमिटेशन में पहले ही गड़बड़ा गये थे, अब महिला सीट और अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण तय होते ही कई नेताओं की चुनावी संभावनाएं ही समाप्त हो गई हैं.
एमसीडी के तीन हिस्से हैं, जिनमें 272 वार्ड हैं. इन 272 वार्डों में से आधे यानि पचास फीसदी वार्ड महिलाओं के लिए आरक्षित होने थे. लेकिन कौन से वार्ड महिला वार्ड होंगे, चुनाव आयोग के नोटिफिकेशन के बाद इससे भी पर्दा उठ गया. चुनाव आयोग की अधिसूचना के मुताबिक ऑड नंबर के वार्ड यानि वार्ड नंबर एक, तीन, पांच महिलाओं के लिए आरक्षित होंगे. इसके अलावा अनुसूचित जाति के लिए भी वार्डों का आरक्षण है. जिसमें भी पचास फीसदी महिला वार्ड होने जरूरी हैं.
पिछले चुनावों के पहले राज्य चुनाव आयोग ने विधानसभा वार फॉर्मूला अपनाया था. जिसमें एक विधानसभा में अधिकतम एक वार्ड आरक्षित करने का फॉर्मूला था. लेकिन, इस बार आयोग ने अनुसूचित जाति के मतदाताओं की जनसंख्या के आधार पर फार्मूला तय किया. इसका असर ये हुआ कि कई विधानसभा क्षेत्रों में सभी वार्ड आरक्षित की श्रेणी में चले गए। जैसे करोल बाग विधानसभा में तीन वार्ड हैं, इनमें से दो अनुसूचित जाति के लिए है और बचा हुआ एक वार्ड सामान्य महिला के लिए आरक्षित हो गया है. इसी तरह सुल्तानपुरी विधानसभा के सभी वार्ड आरक्षित श्रेणी में चले गए हैं, यही हाल तुगलकाबाद विधानसभा का भी है.
करोलबाग से पार्षद और उत्तरी दिल्ली नगर निगम में मेयर रह चुके रवींद्र गुप्ता का तो वार्ड ही खत्म हो गया. क्योंकि डीलिमिटेशन में करोल बाग विधानसभा के वार्ड चार के बजाए तीन कर दिए गए थे और अब तीनों वार्ड किसी न किसी श्रेणी के लिए रिज़र्व हो गए हैं. रवींद्र गुप्ता का कहना है कि हालांकि वो इस बार चुनाव नही लड़ना चाहते थे क्योंकि पार्टी ने उन्हें दूसरी ज़िम्मेदारी दे दी है, लेकिन आरक्षण के लिए अपनाए गए फार्मले से उन्हें दिक्कत है. उनका आरोप है कि अरविंद केजरीवाल की सरकार ने इस पूरी प्रक्रिया में नियमों का पालन नहीं किया है और मनमाने तौर पर अपनी सुविधा के मुताबिक फॉर्मूला लागू करने के लिए दबाव बनाया है.
करोल बाग के रहने वाले कांग्रेसी कार्यकर्ता ओम अरोरा कहते हैं कि नए फॉर्मूले ने उनके लिए चुनावी अवसर ही खत्म कर दिया. उनका बेटा पिछले कई साल से मेहनत कर रहा था, लेकिन आरक्षण के फॉर्मूले से अब वो चुनाव नहीं लड़ पाएगा.