
'मैं अपने फन की सच्चाई को सल्तनत के गोशे-गोशे में फैलाना चाहता हूं.' ये डायलॉग बॉलीवुड की कालजयी फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ का है. इसी डायलॉग के जरिए ‘मुगल-ए-आजम’ के निर्देशक के. आसिफ के बेटे अकबर आसिफ ने अपनी जिंदगी के मिशन को साफ किया. बेशक यहां उनके कहने के मायने हैं- ‘मरहूम पिता के फन और उनकी छोड़ी विरासत को दुनिया में हर जगह ले जाना.’
'मुगल-ए-आजम' को रिलीज हुए करीब 6 दशक हो गए हैं, लेकिन इस शाहकार का जादू आज भी सिनेमा प्रेमियों के सिर चढ़कर बोलता है. बड़े-बड़े देशों में ही नहीं दक्षिणपूर्व अफ्रीकी देश 'मलावी' में भी 'मुगल-ए-आजम' के चाहने वालों की कमी नहीं. मलावी के राष्ट्रपति पीटर मुथारिका भी 'मुगल-ए-आजम' के कायल हैं.
मलावी के राष्ट्रपति हाल में लंदन आए तो अकबर आसिफ की आलीशान रिहाइश 'मैफेयर हाउस' भी पहुंचे. यहां एक खास समारोह में ऐलान किया गया कि 'मुगल-ए-आजम' पर आधारित ब्रॉडवे म्यूजिकल मलावी जाकर प्रस्तुति देगा. इसके लिए मलावी की ओर से अकबर आसिफ को खास न्यौता दिया गया.
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अकबर आसिफ ने ऊपर जिस डायलॉग को अपनी जिंदगी का मिशन बताया वो 'मुगल-ए-आजम' में उनकी मां निगार सुल्ताना ने बोला था. उन्होंने फिल्म में बहार बेगम का किरदार निभाया था. अकबर आसिफ ने साफ किया कि फिल्म या ब्रॉडवे म्यूजिकल से कमाई करना उनका कभी मकसद नहीं रहा. उनकी बस एक ही ख्वाहिश है और वो है अपने पिता की छोड़ी धरोहर को हमेशा-हमेशा के लिए लोगों के दिलों में संजोकर रखना.
5 अगस्त 1960 को रिजील हुई थी ये फिल्म
शापूरजी पालोनजी ग्रुप के प्रोडक्शन में बनी 'मुगल-ए-आजम' 5 अगस्त 1960 को मुंबई में रिलीज हुई थी. फिल्म को भव्य और यादगार बनाने के लिए निर्देशक के. आसिफ ने इसमें अपना सब कुछ झोंक दिया था. इसी का कमाल है कि आज भी कोई बादशाह अकबर और शहजादे सलीम का नाम लेता तो उसके जेहन में पृथ्वीराज कपूर और दिलीप कुमार के फिल्म में निभाए किरदार सबसे पहले आते हैं. मुहब्बत का कहीं ज़िक्र होता है फिल्म में अनारकली बनीं मधुबाला पर फिल्माया गाना ‘प्यार किया तो डरना क्या...’ कानों में गूंजने लगता है.
फिल्म की तरह ही इसमें नौशाद का दिया गया संगीत और शकील बदायूंनी के लिखे गाने भी अमर है. छह दशक बीतने के बाद भी 'मुगले-ए-आजम' के डॉयलॉग, गीत-संगीत को आज भी लोग उसी शिद्धत के साथ याद करते हैं, जैसा कि फिल्म के रिलीज के वक्त उनका क्रेज था. इस फिल्म का आज भी बॉलीवुड की बेहतरीन फिल्मों की फेहरिस्त में सबसे ऊपर शुमार होता है.
2016 में रंगमंच पर उतारने का किया गया फैसला
2016 में 'मुगले-ए-आजम' को रंगमंच पर उतारने का फैसला किया गया. 'तुम्हारी अमृता' फेम निर्देशक फिरोज अब्बास को फिल्म के स्टेज रूपांतरण की जिम्मेदारी सौंपी गई. इसके प्रोडक्शन में दस महीने का वक्त लगा. 150 मिनट का ब्रॉडवे म्यूजिकल दुनिया के अनेक देशों में अपनी पेशकश दे चुका है. दर्शकों से भरपूर तारीफ के साथ इसने ‘ब्रॉडवे वर्ल्ड इंडिया अवार्ड्स, 2017’ में बेस्ट प्ले, बेस्ट डायरेक्टर और बेस्ट कॉस्ट्यूम डिजाइन की ट्रॉफी अपने नाम कीं. इस ब्रॉडवे म्युजिकल में नौशाद के संगीत और शकील बदायूंनी के गीतों को शामिल करने के साथ दो ओरिजनल नंबर को भी जोड़ा गया है जो खास तौर पर अलग से तैयार किए गए.
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लोकप्रियता के पैमाने पर झंडे गाड़ने वाली 'मुगल-ए-आजम' को फिल्म-मेकिंग का एक तरह से कोर्स माना जा सकता है. अदाकारी हो या तकनीक, मुगल-ए-आजम के निर्माण में बजट से कहीं समझौता नहीं किया गया था. वैसे तो फिल्म हर लिहाज से बेमिसाल थी, लेकिन सबसे ज्यादा वाहवाही इसके डॉयलॉग ने लूटी थी. ये डॉयलॉग अमानुल्ला ख़ान, एहसान रिजवी, कमाल अमरोही और वजाहत मिर्जा जैसे दिग्गजों की टीम ने लिखे. स्टेज पेशकश में दुनिया की ऑडियंस का ध्यान रखते हुए अंग्रेजी सबटाइटल्स एलईडी स्क्रीन्स पर साथ दिखाए जाते हैं. गाने रिकॉर्डिंग के जरिए नहीं, बल्कि स्टेज पर लाइव परफॉर्म होते हैं.
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अकबर आसिफ से जब फिल्म के उनके पसंदीदा डायलॉग के बारे में पूछा गया तो उन्होंने पलक झपकते ही फिल्म में बहार बेगम बनीं अपनी मां निगार सुल्ताना का ये डायलॉग सुनाया- ‘कनीज को खंजर की नाफरमानी पर हैरत है और अपनी बदनसीब जिंदगी से शिकायत. साहिबे आलम गुस्ताख खंजर को सुर्खरू होने का एक मौका और दीजिए.’
अकबर आसिफ चाहते हैं कि ब्रॉडवे म्यूजिकल को दुनिया के कोने-कोने में ले जाएं. पूरे अफ्रीका को कवर करने के लिए मलावी का रुख करना इसी दिशा में उठाया गया कदम है.