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मुशर्रफ बोले- तत्कालीन सैन्य जनरल कयानी की सलाह से हुआ था आपातकाल लागू

दिसंबर 2013 में अपने ऊपर राजद्रोह का मामला दर्ज होने के बाद पहली बार पाकिस्तान के पूर्व तानाशाह और राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल अशफाक परवेज कयानी के बारे में एक बड़ा खुलासा किया है.

परवेज मुशर्रफ और जनरल अशफाक परवेज कयानी परवेज मुशर्रफ और जनरल अशफाक परवेज कयानी
दीपिका शर्मा
  • इस्लामाबाद,
  • 23 दिसंबर 2015,
  • अपडेटेड 5:15 PM IST

दिसंबर 2013 में अपने ऊपर राजद्रोह का मामला दर्ज होने के बाद पहली बार पाकिस्तान के पूर्व सैन्य तानाशाह और राष्ट्रपति रहे जनरल परवेज मुशर्रफ ने पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल अशफाक परवेज कयानी के खिलाफ एक बड़ा खुलासा किया है.

मुशर्रफ ने बताया कि 3 नवंबर 2007 में जो आपातकाल लागू हुआ था वो कयानी से सलाह के बाद ही किया था. संघीय जांच एजेंसी के संयुक्त जांच दल के सामने अपना बयान रिकॉर्ड करते समय मुशर्रफ ने उस आपातकाल के लिए कयानी को मुख्य आरोपी बताया.

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उन्होंने बताया कि जनरल कयानी 27 नवम्बर 2007 को चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बने थे लेकिन उन्होंने आपातकाल नहीं हटाया. यही नहीं, मुशर्रफ का आरोप है कि आपातकाल लगाने से पहले जनरल कयानी के अलावा उन्होंने वरिष्ठ सैन्य और असैन्य नेतृत्व में भी इसकी चर्चा की थी.

'आपातकाल के लिए जिम्मेदार मुख्य आरोपी'
मुशर्रफ के रिकॉर्ड किए बयान के अनुसार उस आपातकाल के लिए जिम्मेदार मुख्य आरोपियों में उस समय के प्रधानमंत्री शौकत अजीज, उस समय के कानून मंत्री जाहिद हामिद (वर्तमान में कैबिनेट सदस्य), जस्टिस अब्दुल हमीद डोगर और पीसीओ के तहत शपथ लेने वाले समस्त जज, सशस्त्र बल के सभी वरिष्ठ सदस्य, सभी मुख्य मंत्री, सभी गवर्नर्स, संघीय और प्रांतीय कैबिनेट के सभी सदस्य, संघीय और प्रांतीय विधान सभाओं के सदस्य और वरिष्ठ संघीय और प्रांतीय नौकरशाह शामिल हैं.

 

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पूर्व तानाशाह के अनुसार उन्होंने इस आपात स्थिति की घोषणा जरूर की थी लेकिन प्रधानमंत्री अजीज की सलाह पर. मुशर्रफ बताते हैं कि 2008 में उनके पद से हटने के बाद जानबूझकर 3 नवम्बर 2007 को हुए आपातकाल का सारांश रिकॉर्ड से उड़ा दिया गया. जनरल मुशर्रफ ने इस बात पर भी जोर दिया कि 9 मार्च 2007 को जब उन्हें सस्पेंड किया गया था तब उस समय के चीफ जस्टिस इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी सुप्रीम न्यायिक परिषद को उनके खिलाफ एक संदर्भ भेजने के बाद भी उनसे मिलने आते थे.

मुशर्रफ ने आरोप लगाया है कि जस्टिस चौधरी ने न्यायिक सक्रियता का शोर मचाते हुए कार्यपालिका और विधायिका के मामलों में हस्तक्षेप किया. 9 मार्च 2007 के बाद जब चीफ जस्टिस इफ्तिखार चौधरी को सुप्रीम न्यायिक परिषद के समक्ष एक संदर्भ का सामना करना पड़ा तब वो मुशर्रफ के खिलाफ अकेले शिकार बन गए. उन सन्दर्भों में इफ्तिखार चौधरी और उनके बेटे के खिलाफ आरोप थे पर उन पर कभी निर्णय नहीं लिया गया.

मुशर्रफ ने बताया , 'दुर्भाग्यवश उस समय लगभग 61 आतंकवादी कोर्ट के एक फैसले में रिहा किए गए थे जिन्होंने रिहाई के बाद कराची, रावलपिंडी, सरगोधा, केपी और बलोचिस्तान में पनाह ले ली थी. उग्रवादी और उनके रिश्तेदार सरकार के फैसले को चुनौती दे रहे थे. वे बेशर्मी से कानून प्रवर्तन एजेंसियों के खिलाफ लड़ रहे थे. उस समय अजीज ने 3 नवंबर 2007 को 'राष्ट्रीय सुरक्षा की स्थिति' शीर्षक वाली एक चिट्ठी के जरिए उग्रवाद और आतंकवाद की उस भयावहता से अवगत कराया जो देश में फैली हुई थी और न्यायपालिका की अतिक्रमण सीमा से बाहर थी.

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जनरल मुशर्रफ ने कहा, 'अजीज आपातकाल को उस चिट्ठी के जरिए लागू करना चाहते थे लेकिन मैंने इससे साफ इनकार कर दिया. मैंने यह बताया कि मैं प्रधानमंत्री शौकत अजीज की बात पर अमल तब करूंगा जब वो मेरे सामने ठीक से एक सारांश प्रस्तुत करेंगे. उसके बाद अजीज ने अपने स्टाफ के जरिए प्रेजिडेंट हाउस में मेरे पास एक सारांश भिजवाया.' जनरल मुशर्रफ ने आपातकाल लगाने के अारोप पर कभी इनकार नहीं किया, बल्कि उन्होंने यह बताया कि किन किन लोगों की सलाह से यह आपातकाल लगाया गया था. उन्होंने कहा कि उनके खिलाफ कोई केस नहीं बनता है क्यूंकि उन्होंने वही किया जो उस समय के प्रधानमंत्री शौकत अजीज और उनकी कैबिनेट चाहती थी.

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