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दिल्ली में शिक्षा व्यवस्था की सच्चाई, 2 लाख से ज्यादा छात्रों को नहीं मिले नोटबुक

सबको शिक्षा मिले इसके लिए हमारे संविधान निर्माताओं ने शिक्षा को मौलिक अधिकार की श्रेणी में रखा. इसके लिए राइट टू एजुकेशन एक्ट में भी तमाम प्रावधान किए गए.

अभिभावक बाजार से नोटबुक खरीदने को मजबूर अभिभावक बाजार से नोटबुक खरीदने को मजबूर
अमित कुमार दुबे/मणिदीप शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 27 जुलाई 2016,
  • अपडेटेड 9:18 PM IST

सबको शिक्षा मिले इसके लिए हमारे संविधान निर्माताओं ने शिक्षा को मौलिक अधिकार की श्रेणी में रखा. इसके लिए राइट टू एजुकेशन एक्ट में भी तमाम प्रावधान किए गए. लेकिन एक्ट को अमल में लाने में हमारी व्यवस्था फेल हो जाए तो क्या कहिएगा?

अभिभावक बाजार से नोटबुक खरीदने को मजबूर
राइट टू एजुकेशन एक्ट कहता है कि सरकार का ये कर्तव्य है कि वो स्कूल में पढ़ने वाले सभी छात्रों को मुफ्त में किताबें, नोट बुक, ड्रेस और स्टेशनरी मुहैया कराए, लेकिन हकीकत कुछ और ही दर्शाता है. दरअसल ईस्ट एमसीडी के 300 से ज्यादा स्कूलों में 2 लाख 10 हजार बच्चे पढ़ते हैं. इन बच्चों को किताबें तो बांट दी गई हैं लेकिन अबतक नोटबुक और स्टेशनरी नहीं बांटी गई है. ऐसे में अभिभावकों को अपनी कमाई से ये सामान खरीदना पड़ रहा है.

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बाजार में एक नोटबुक की कीमत 20 से 25 रुपये और एक ज्येमेट्री बॉक्स की कीमत 60 से 80 रुपये है. ऐसे में अगर एक बच्चे के पाठ्यक्रम में 6 नोटबुक लगेंगी तो अभिभावक को हर महीने 120 से 150 रुपये खर्च करने पड़ेंगे.

गौरतलब है कि अप्रैल से दिल्ली के स्कूलों में नया सत्र शुरू होता है ऐसे में लगभग 4 महीने बीत चुके हैं और ईस्ट दिल्ली की मेयर हमारे पहुंचने पर हरकत में आई और आनन-फानन में अधिकारियों को फोन कर हालात पूछे. वहीं दूसरी तरफ वकील अशोक अग्रवाल ने इसे गंभीर मुद्दा मानते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दी है.

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