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बड़बोलों को प्रणब मुखर्जी की नसीहत- गंदगी सड़कों पर नहीं, हमारे दिमाग में है, इसे हटाएं

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बड़बोलों को अपने दिमाग की सफाई करने की सलाह दी है. कहा है कि असल गंदगी समाज को बांटने वाले हमारे विचारों में है. इसे हटाएं और दिमाग की सफाई करें.

साबरमती आश्रम पहुंचे प्रणब मुखर्जी साबरमती आश्रम पहुंचे प्रणब मुखर्जी
विकास वशिष्ठ
  • अहमदाबाद,
  • 01 दिसंबर 2015,
  • अपडेटेड 6:08 PM IST

असहिष्णुता पर जारी बहस के बीच राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने एक बार फिर बड़बोलों को इशारों-इशारों में ही सही, लेकिन स्पष्ट नसीहत दे डाली. प्रणब ने कहा कि गंदगी सड़कों पर नहीं, बल्कि हमारे दिमाग में है. गंदगी उन विचारों में है जो समाज को 'उनके' और 'हमारे', 'शुद्ध' और 'अशुद्ध', के बीच बांट देते हैं. गंदगी ऐसे विचारों को दूर करने के प्रयास न करने में है. इन विभाजनकारी विचारों को हटाकर दिमाग की सफाई करें.

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न भूलें अहिंसा की ताकत
मुखर्जी ने भारत के बारे में महात्मा गांधी की सोच का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने एक समावेशी राष्ट्र की कल्पना की थी. ऐसा देश जहां हर वर्ग समानता के साथ रहे और उसे समान अधिकार मिलें. हमें अहिंसा की ताकत को नहीं भूलना चाहिए. सिर्फ अहिंसक समाज से ही लोकतंत्र में सबकी भागीदारी सुनिश्चित की जा सकती है. राष्ट्रपति ने ये बातें साबरमती आश्रम में हुए एक कार्यक्रम में कहीं.

हिंसा के मूल में डर और अविश्वास
मुखर्जी ने कहा कि इंसान होने का मूल एक दूसरे पर हमारे भरोसे में है. हर दिन हम अपने चारों ओर अभूतपूर्व हिंसा होते हुए देखते हैं. इस हिंसा के मूल में अंधेरा, डर और अविश्वास है. राष्ट्रपति ने नसीहत दी कि जब भी हम इस फैलती हिंसा से निपटने के नए तरीके खोजें तो हमें अहिंसा, संवाद और तर्क की शक्ति को भूलना नहीं चाहिए. अहिंसा नकारात्मक शक्ति नहीं है और हमें अपनी सार्वजनिक अभिव्यक्ति को हर तरह की हिंसा (मौखिक भी) से मुक्त करना चाहिए.

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असहिष्णुता के खिलाफ मुखर रहे हैं प्रणब
प्रणब मखर्जी असहिष्णुता के खिलाफ मुखर रहे हैं. दादरी में बीफ की अफवाह पर अखलाक की हत्या और ऐसी ही दूसरी घटनाओं के बाद से ही वह सरकार को भी नसीहत देते रहे हैं. इससे पहले उन्होंने कहा था कि देश की विविधता की रक्षा हर कीमत पर होनी चाहिए, क्योंकि सहिष्णुता की अपनी शक्ति के कारण ही भारत समृद्ध हुआ है. वह पीएम मोदी को भी सहिष्णुता का पाठ पढ़ा चुके हैं.

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