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EXCLUSIVE: जवाब देने में आनाकानी, आपको ताकत देने वाला RTI खुद ICU में!

ऐसा नहीं कि सिर्फ सिविल एविएशन मिनिस्ट्री का ही आरटीआई को लेकर ऐसा रवैया है. जब रेल मंत्रालय से पूछा गया कि बुलेट ट्रेन को लेकर जापान से बात करना कब शुरू की गई? ये भी पूछा गया कि क्या बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट ‘भारत-जापान 2013 समझौते’ में शामिल था? रेल मंत्रालय की ओर से जो जवाब मिला वो हैरान करने वाला था.

सूचना का अधिकार सूचना का अधिकार
नंदलाल शर्मा/खुशदीप सहगल
  • नई दिल्ली ,
  • 23 अक्टूबर 2017,
  • अपडेटेड 11:59 PM IST

सूचना का अधिकार (Right to information) भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में नागरिकों को सशक्त बनाने के लिए सौंपा गया सबसे बड़ा अधिकार माना जाता है. इसका मकसद सरकार के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना है.

2005 में मनमोहन सिंह सरकार ने जम्मू और कश्मीर को छोड़ कर RTI एक्ट को पूरे देश में लागू किया तो मंशा यही थी कि हमारा लोकतंत्र सही मायने में लोगों के लिए काम करे. लेकिन क्या वाकई ऐसा हो पाया? वर्तमान में क्या है आरटीआई कानून की हकीकत? कितनी पारदर्शिता है सरकार के कामकाज में? जिस कानून को जनता की सबसे सशक्त आवाज बनना था, कहीं उसी आवाज को दबाया तो नहीं जा रहा?  

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बीते तीन महीने में इंडिया टुडे नेटवर्क के RTI सेल और रिसर्च डिपार्टमेंट के हेड के नाते सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए लगभग 100 याचिका दाखिल की गईं और भारत सरकार के अलग-अलग मंत्रालयों से विभिन्न प्रकार की जानकारियां लेने की कोशिश की गई. लेकिन जो सामने आया वो अच्छा अनुभव नहीं कहा जा सकता. सरकार की ओर से या तो सही जवाब नहीं दिया जाता या जवाब दिया भी जाता है तो वो ऐसा होता है जो आम आदमी के पल्ले ही ना पड़े.

जानकारियों से राष्ट्र के हितों को खतरा!

बहुत सामान्य तरह की जानकारियों का जवाब देने में भी लाल फीताशाही का इस्तेमाल किया जाता है. नौकरशाही के अंदाज में यह कह दिया जाता है कि ये जानकारी आरटीआई के तरह-तरह के सेक्शन के तहत होने की वजह से नहीं दी जा सकती. कई बार जवाब में ये भी कहा जाता है कि इस तरह की जानकारी देने से राष्ट्र के हितों को क्षति पहुंच सकती है या यह ‘थर्ड पार्टी इन्फॉर्मेशन’ है. सीधे सीधे इस रवैये का मतलब यही निकलता है कि जो जानकारी मांगी गई है वो नहीं दी जाएगी. करीब करीब हर विभाग का यही हाल है.

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सिविल एविएशन मिनिस्ट्री का ‘क्लासिफाइड इन्फॉर्मेशन’

यहां कुछ उदाहरणों से सरकारी विभागों के रवैये को साफ करते हैं. जैसे कि जब सिविल एविएशन मिनिस्ट्री से उस ऑर्डर की कॉपी मांगी गई जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद और प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा को हवाई अड्डों पर जामातलाशी से छूट का विशेषाधिकार वापस ले लिया गया है, तो जवाब मिला कि ये सीक्रेट है, यानी ऑर्डर की कॉपी नहीं दी जा सकती. अब यहां ये सवाल उठता है कि ऑर्डर की कॉपी से जुड़ी ऐसी कौन सी सीक्रेसी है, जो सार्वजनिक हो जाएगी तो कोई पहाड़ टूट जाएगा.

सिविल एविएशन मिनिस्ट्री से ही जब आरटीआई के तहत ऐसे व्यक्तियों की फेहरिस्त देने के लिए कहा गया जो विभिन्न एयरपोर्ट्स पर अपने वाहन को टरमक तक ले जाने के लिए अधिकृत हैं, तो जवाब मिला कि ये ‘क्लासिफाइड इन्फॉर्मेशन’ है.

नहीं मिली गुरमीत राम रहीम से जुड़ी जानकारी

दो साध्वियों से रेप का दोषी गुरमीत राम रहीम रोहतक की सुनारिया जेल में अब 20 साल की सजा काट रहा है. डेरामुखी गुरमीत राम रहीम को लेकर सिविल एविएशन मिनिस्ट्री से ही आरटीआई के तहत उसके एयरपोर्ट पर रिजर्व लाउंज के इस्तेमाल संबंधी आदेश की कॉपी मांगी गई तो जवाब मिला कि ये सूचना आरटीआई से एक्सेम्पटेड है यानी सूचना नहीं दी जा सकती. यहां सवाल उठता है कि क्या देश के सामान्य नागरिकों को ऐसी सूचना हासिल करने का भी हक नहीं है.  

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ऐसा नहीं कि सिर्फ सिविल एविएशन मिनिस्ट्री का ही आरटीआई को लेकर ऐसा रवैया है. जब रेल मंत्रालय से पूछा गया कि बुलेट ट्रेन को लेकर जापान से बात करना कब शुरू की गई? ये भी पूछा गया कि क्या बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट ‘भारत-जापान 2013 समझौते’ में शामिल था? रेल मंत्रालय की ओर से जो जवाब मिला वो हैरान करने वाला था.

रेलवे ने जानकारी मांगने के हक पर ही उठाया सवाल

जवाब में कहा गया कि ‘आप सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए छद्म रूप से सरकार के कार्यों की प्रवृत्ति और महत्ता के बारे में सवाल पूछ रहे हैं और सरकार आपको सूचना के अधिकार के तहत इस तरह की जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं है.’ यानी रेल मंत्रालय की ओर से जवाब तो नहीं मिला, जानकारी मांगने के हक पर ही सवाल और लगा दिया गया.

रेल मंत्रालय से ही जब आरटीआई के तहत बुलेट ट्रेन के मौजूदा समझौते की कॉपी मांगी गई तो जवाब मिला कि ये सूचना आरटीआई के दायरे से बाहर है, साथ ही इसे उपलब्ध कराया गया तो ये और नुकसानों के अलावा दोनों देशों (भारत-जापान) के संबंधों को भी क्षति पहुंचा सकता है. ऐसे जवाब का सीधा यही मतलब है कि ये नहीं बताया जाएगा कि बुलेट ट्रेन पर बात कब शुरू हुई, समझौते में है क्या-क्या? ये रवैया सरकार के उन दावों से बिल्कुल उलट है कि सरकार के कामकाज में पूरी पारदर्शिता बरती जाती है.

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PMO से नहीं मिली मोदी के दौरों से संबंधित जानकारी

अब बात करते हैं पीएमओ यानी प्रधानमंत्री कार्यालय की. पीएमओ से आरटीआई के तहत पूछा गया कि प्रधानमंत्री के विदेश दौरों पर उनके साथ गए वैसे लोगों की सूचना दी जाए जो उनके मित्र हैं या परिवार के सदस्य हैं. इसका जवाब मिला कि ये सूचना आरटीआई से एक्सेम्पटेड है और ऐसी लिस्ट को सार्वजनिक करना सुरक्षा हितो में सही नहीं होगा.

पीएमओ से ही आरटीआई के तहत जब ये जानकारी मांगी गई कि प्रधानमंत्री को किस देश का दौरा करना, ये कौन तय करता है. प्रधानमंत्री के 2015 में पाकिस्तान के दौरे का फैसला कब और किसकी ओर से लिया गया तो इसका भी जवाब वही मिला कि सुरक्षा निहितार्थ (Security Implications) है और ये सूचना आरटीआई के दायरे में नहीं आती. जब पीएमओ से ये पूछा गया कि प्रधानमंत्री के किन-किन विदेश दौरों पर विदेश मंत्री भी उनके साथ गई थीं तो जवाब मिला, इसकी जानकारी प्रधानमंत्री कार्यालय के पास नहीं है.   

गृह मंत्रालय का रवैया भी कोई अलग नहीं

गृह मंत्रालय का रवैया भी कोई अलग नहीं दिखा. गृह मंत्रालय से आरटीआई के तहत जानकारी मांगी गई कि योगगुरु रामदेव को किस प्रकार की सुरक्षा मुहैया कराई गई है? इस पर कितना खर्च आता है? गृह मंत्रालय से जो जवाब मिला वो भी अन्य मंत्रालयों के ढर्रे जैसा ही दिखा. यानी थर्ड पार्टी इन्फॉर्मेंशन है, इसके सुरक्षा निहितार्थ हैं, ये आरटीआई के दायरे में नहीं आती.  

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आरटीआई के जरिए ही हमने दिल्ली पुलिस का रुख किया. आरटीआई के तहत जानकारी मांगी गई कि दिल्ली पुलिस में विभिन्न स्तर पर कितने पद खाली हैं? कितने पुलिसकर्मी वीआईपी सिक्योरिटी में लगे हुए हैं? दिलचस्प है कि इस पर दिल्ली पुलिस के हर जोन और विभाग की ओर से अपने अपने जवाब आ रहे हैं. इन्हें एकत्र कर कोई ठोस जानकारी विशेषज्ञ ही निकाल सकते हैं, साधारण नागरिक के तो ये बस का है नहीं.

किसी अपील का कोई खास असर नहीं

आरटीआई एक्ट के तहत प्रावधान है कि अगर आप जवाब से संतुष्ट नहीं है तो अपील दाखिल की जा सकती है. ये रूट आजमा कर देखा गया तो इसका भी कोई खास नतीजा निकलता नहीं दिखाई दिया. मसलन, गृह मंत्रालय से पूछा गया कि आखिरी जिन पांच लोगों को सुरक्षा मुहैया कराई गई, उनके नाम बताइए, साथ ही सुरक्षा के आदेश की फाइल नोटिंग की कॉपी उपलब्ध कराई जाए. गृह मंत्रालय से जवाब यही मिला की ये सूचना आरटीआई से एक्सेम्पटेड है. गृह मंत्रालय के इस जवाब के खिलाफ अपील की गई तो वहां से जवाब मिला कि आपको समुचित जवाब दे दिया गया है.  

आरटीआई के जरिए की गई इस पूरी कवायद का अर्थ यही निकला कि जहां भी सरकार को सवालों से थोड़ा भी घिरने की संभावना दिखी या उंगली उठने का खतरा दिखा, वहां तरह-तरह के नियम कानूनों का हवाला देकर जानकारी देने से मना कर दिया गया. ऐसी स्थिति में अपील भी की जाए तो भी जो जानकारी आप चाहते हैं वो आपको मिल जाए, ऐसी कम ही संभावना है.  

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इंटेसिव केयर यूनिट में है RTI

आरटीआई के जरिए जानकारी हासिल करने के लिए पहली बात तो आपके पास वक्त, धैर्य और हौसला होना चाहिए. आपकी किस्मत अच्छी हो तो शायद आपको सूचना मिल जाए. वरना सूचना का अधिकार फिलहाल खुद ही इंटेसिव केयर यूनिट में भर्ती दिखाई देता है. आरटीआई खुद खुली हवा में सांस ले सके इसके लिए सर्जरी या जीवन रक्षक दवाओं के जरिए जो भी इलाज जरूरी हो तत्काल उपलब्ध कराने की जरूरत है.

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