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36 साल बाद भारतीय हॉकी को एक बार फिर से सुनहरे दिनों की दस्तक सुनाई देने लगी है. 1980 में हुए मास्को ओलंपिक के बाद भारत को पदक के लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ा है. रियो ओलंपिक से पहले भारतीय हॉकी टीम ने चैंपियंस ट्रॉफी में सिल्वर मेडल पर कब्जा जमाया. इस टूर्नामेंट में उसे सिर्फ अजेय रही ऑस्ट्रेलियाई हॉकी टीम से शिकस्त मिली. फाइनल मुकाबले में भारत को पेनल्टी शूटआउट में हार मिली.
भारतीय हॉकी के अच्छे दिनों की वापसी के संकेत यहीं पर छिपे दिखाई दे रहे हैं. लगभग चार दशक से भारत ने हॉकी में कोई ऑलंपिक मेडल नहीं जीता. लेकिन चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में मिली हार से सिल्वर मेडल ही सही. रियो ओलंपिक से पहले सबके चेहरे पर मुस्कान ला दी.
यहीं पर हमें भारतीय हॉकी के स्वर्णिम युग के फिर से आगाज की दस्तक मिलती है. यहीं पर हमें अहसास होता है कि सबकुछ ठीक-ठाक रहा तो इस बार रियो ओलंपिक में भारत कोई ना कोई मेडल जरूर मिलेगा. रिकॉर्ड 8 बार ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने वाला भारत वही देश है जो लदंन से पहले 2008 में बीजिंग ओलंपिक में अपनी जगह तक नहीं बना पाया था. ओलंपिक इतिहास में ऐसा भारतीय हॉकी टीम के साथ पहली बार हुआ था.
भारत ने 1928 में जीता ओलंपिक में पहला गोल्ड मेडल
साल 1928 में एम्सटर्डम में आयोजित ओलंपिक खेलों में भारत पहली बार हॉकी के मैदान में उतरा था और फाइनल में ऑस्ट्रेलिया को 6-0 से करारी शिकस्त देकर गोल्ड मेडल अपने नाम किया. इसके बाद भारतीय हॉकी टीम ने साल 1932 में लास एंजलिस में भी स्वर्ण पदक जीता, और साल 1936 में बर्लिन ओलंपिक खेलों में भी गोल्ड मेडल जीतकर तहलका मचा दिया.
मेजर ध्यानचंद का रहा जलवा
मेजर ध्यानचंद के नाम का डंका हॉकी के जादूगर के रूप में पूरी दुनिया में बज रहा था. इसके बाद विश्व युद्ध के कारण 1940 और 1944 में ओलंपिक खेलों का आयोजन नही हुआ. विश्व युद्ध के बाद 1948 में ओलंपिक खेलों का बिगुल लदंन में बजा. अब भारत एक आजा़द देश था, और भारतीय हॉकी टीम ने गोल्डन गोल लगाया.
साल 1980 में मॉस्को ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के बाद भारतीय हॉकी टीम पदक जीतना तो दूर किसी भी ओलंपिक के सेमीफाइनल तक भी नही पहुंची. लेकिन अब वक्त करवटें ले रहा है. रियो ओलंपिक में भारत पदक जीतने के बेहद नज़दीक पहुंचता दिख रहा है. लेकिन रियो में पदक का रंग कैसा होगा ये तो वक्त ही बताएगा. और अब ये वक्त बेहद करीब आ चुका है.