
वित्त मंत्रालय ने गुरुवार को एक प्रेस रिलीज जारी कर कहा कि लोगों में डर के माहौल को देखते हुए वह सफाई दे रही है. रिलीज के जरिए मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि हाल में लोकसभा से पारित टैक्स नियमों के संशोधन में कोई ऐसा प्रावधान नहीं किया गया है जिससे नियम के मुताबिक खरीदा गया सोना किसी सर्जिकल स्ट्राइक का शिकार होगा. यह संशोधन अब राज्यसभा में पारित होने का इंतजार कर रहा है.
मंत्रालय की रिलीज में आगे लिखा गया कि घर में रखी लीगल ज्वैलरी और पुश्तैनी ज्वैलरी पर 75 फीसदी टैक्स और टैक्स की रकम का 10 फीसदी पेनाल्टी लगाने की बात महज अफवाह है. हालांकि उसमें यह भी बताया कि टैक्स नियमों में संशोधन प्रस्ताव में उसने इनकम टैक्स नियम के उस भाग में बदलाव किए हैं जहां संपत्ति में अघोषित निवेश में अभी तक महज 30 फीसदी की दर से टैक्स वसूला जाता था. संशोधन बिल में इस दायरे को बढ़ाकर 60 फीसदी करने और ऊपर से 25 फीसदी सरचार्ज और सेस की बात मौजूद है.
इस पूरे मामले को खुद वित्त मंत्री अरुण जेटली ट्वीट कर पब्लिक डोमेन में लाते हैं. अगले दिन लोगों को प्रेस रिलीज के जरिए खबर दी जाती है जिसमें आगे फिर सफाई दी गई है कि इनकम टैक्स की रेड के दौरान यदि घर में विवाहित महिलाओं के पास 500 ग्राम, अविवाहित महिला के पास 250 ग्राम और पुरुष के पास 100 ग्राम से अधिक ज्वैलरी मौजूद पाई जाती है तो हिसाब-किताब किया जाएगा. वहीं यदि बरामद हुई सभी ज्वैलरी की रसीद मौजूद है अथवा वह कानूनन खरीदी गई है तो वह पूरी तरह से सुरक्षित है. यह आंकड़े कोई नए नहीं है. बीते दो दशकों से यही कानून है. लेकिन बिना मांगे दी गई इस सफाई से देश में भ्रम की स्थिति पैदा जरूर हो गई. टैक्स को दोगुना करने की खबर थी और उसके साथ ज्वैलरी और सोना की लिमिट पुरानी बताई गई. डर स्वाभाविक है कि सर्जिकल टैक्स की बात करने वाली सरकार कहीं इसे घर में रखे सोना-चांदी की नई लिमिट न बना दे.
मामला सिर्फ वित्त मंत्रालय की सफाई तक सीमित नहीं है. देश के केन्द्रीय बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने भी अपनी वेबसाइट के जरिए सूचित किया है कि उसकी लगातार जारी हो रही प्रेस विज्ञप्तियों को गलत ढ़ंग से पढ़ा और समझा जा रहा है. जिससे देश में एक भ्रम की स्थिति पैदा हो चुकी है. रिजर्व बैंक ने अपने बैंकों को हिदायत भी दे दी कि वह ऐसी भ्रांतियों से दूर रहे.
अब सवाल यह है कि यदि सरकार के अहम मंत्रालय या रिजर्व बैंक जैसे संवेदनशील संस्थान रोज नए नियम, निर्देश, विज्ञप्ति जारी करेंगे तो क्या भ्रम की स्थिति नहीं पैदा होगी? केन्द्र सरकार ने 8 नवंबर को देश में आर्थिक सुधार और कालेधन के खिलाफ कड़े कदम उठाते हुए सर्वाधिक प्रचलित 500 रुपये और 1000 रुपये की करेंसी को गैरकानूनी करार दिया.
यह कदम इसलिए बड़ा था कि अर्थव्यवस्था में सर्कुलेट हो रही कुल करेंसी का 86 फीसदी हिस्सा इन्हीं दोनों मुद्राओं में था. देश में सभी तबके के लोग रोजमर्रा के खर्च के अलावा किसी इमरजेंसी के लिए इस करेंसी को ठीक-ठाक मात्रा में अपने घर में रखते थे. हालांकि यह बात भी सही है कि सबसे बड़ी नोट होने के नाते कालेधन को कैश के रूप में रखने के लिए भी यह सर्वाधिक पसंदीदा करेंसी थी.
नोटबंदी का यह फैसला देश में किसी भूचाल से कम नहीं था. जिनके पास मेहनत की कमाई इन करेंसी में मौजूद थी वह बैंक की कतार में लगे जिससे जल्दी से जल्दी इसे नई करेंसी में बदल ले. जिनके पास कालाधन भरा पड़ा था वह किसी न किसी जुगाड़ में जुट गए जिससे जल्द से जल्द वह अपनी काली कमाई को नई करेंसी में बदल कर सुरक्षित कर लें.
खुद प्रधानमंत्री ने 8 दिसंबर को नोटबंदी की घोषणा करते वक्त संभावना जताई थी कि इस फैसले से देश में अफरा-तफरी का माहौल पैदा हो सकता है. हुआ भी वैसा ही. देश में अफवाहों और मिथ्या प्रचारों का दौर शुरू हो गया. राजनीतिक दल हो या सत्ताधारी दल सभी ने सोशल मीडिया का जमकर सहारा लिया और मौके का राजनीतिक लाभ उठाने का कोई मौका नहीं छोड़ा.
केन्द्र सरकार के बड़े-बड़े मंत्री मीडिया के बीच पहुंचकर नोटबंदी जैसे अहम आर्थिक फैसले को प्रधानमंत्री की बड़ी जीत करार देने लगे. उनके बयानों में स्पष्ट रूप से कहा गया कि कालेधन पर लगाम लगाने के लिए इतना बड़ा कदम सिर्फ और सिर्फ मोदी सरकार उठा सकती है. सत्ताधारी दल और खुद प्रधानमंत्री ने यहां तक दावा कर दिया कि यह कदम कालेधन के अंबार पर बैठे विपक्ष को रास नहीं आ रहा है. इसके साथ ही सत्ता में बैठे कुछ मंत्रियों ने यहां तक समा बांध दिया कि यह तो कालेधन के खिलाफ महज शुरुआत है. इशारों-इशारों में दावा किया जाने लगा कि नोटबंदी के बाद मोदी सरकार की बड़ी सर्जिकल स्ट्राइक देश में सोना और बेनामी संपत्ति के खिलाफ की जाएगी.
ऐसी स्थिति में यह तय है कि देश में वाकई अफरा-तफरी का माहौल व्यापक हो चुका है. ऊपर से सरकार और रिजर्व बैंक के रोज बदलते-सुधरते नियम इस स्थिति को और भयावह कर रहे हैं. यदि कालेधन की सफाई वाकई आर्थिक सुधारों के कारणों से की जा रही है तो क्या राजनीतिक दलों में इस मुद्दे पर तालमेल नहीं होना चाहिए? क्या सत्ता और विपक्ष के बीच महत्वपूर्ण आर्थिक मुद्दों पर संवाद की कमी ही भ्रम के इस माहौल को पैदा कर रही है और इसे व्यापक कर रही है? ऐसी स्थिति में इन भ्रमों के लिए जिम्मेदार कौन है?