Advertisement

जब कवि ने #MeToo पर पढ़ी कविता, मिलना किसी स्त्री की तरह...

अरुण देव ने कहा कि हर कवि के भीतर एक सचेत आलोचक बैठा होता है और कवि सत्ता प्रतिष्ठान नहीं है जो अपनी आलोचना से डर जाए. उन्होंने कहा कि कविता मनुष्यता के सार को कम शब्दों में बयान करती हैं और हम उसमें से भी कटौती की कोशिश करते हैं. अरुण देव ने कहा कि जो सरोकार मनुष्यता के हैं वही सरोकार कविता के भी हैं.

कवि अरुण देव (फोटो-आजतक) कवि अरुण देव (फोटो-आजतक)
अनुग्रह मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 16 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 2:04 PM IST

'साहित्य आज तक'  के हल्ला बोल मंच पर हिंदी कविता को समर्पित सत्र ‘कविता के बहाने’ आयोजित हुआ. इस सत्र में समकालीन काव्य जगत की तीन शख्सियत मदन कश्यप, अरुण देव और तेजेंदर सिंह लूथरा ने अपनी कविताएं पढ़ीं साथ ही हिन्दी साहित्य को लेकर दर्शकों के साथ अपने विचार साझा किए. मंच पर सोशल मीडिया कैंपेन #MeToo का मुद्दा भी गूंजा और कवि अरुण देव ने इससे जुड़ी कविता 'मिलना किसी स्त्री की तरह' पढ़ी.

Advertisement

मिलना किसी स्त्री की तरह...

तुम जो भेजते हो मैसेज बॉक्स में गुलदस्ते

टैग किए रहते हो दिल फरेब नगमों में मुझे

घड़ी-घड़ी बदलते हो तस्वीरें, इजहार की कोमलता से झुकी हुईं

पोस्ट करते हो कविताएं, प्रेम के शुरुआती दिनों की उन्माद से भरी, मीठी 

मुझे बताओ, स्त्री को तुम देखते कैसे हो

कभी देखी है उसकी आजादी 

उसका इनकार सुना है कभी

LIVE: साहित्य आजतक 2018- मालिनी अवस्थी ने बिखेरी लोकगीतों की छटा

उसके मना करने के ऐन वक्त तुमने कैसे रिएक्ट किया

क्या तुम आहत हुए धधकते हुए छिटक पड़ने को आतुर

मुझे बताओ गली सुनसान में कोई स्त्री जब अकेली पड़ जाए

क्या चलता है तुम्हारे मन में 

क्या लिफ्ट में तुम्हें देख कोई लड़की सहम कर अपनी मंजिल से पहले उतर गई

भीड़ भरी बसों में अपने को बचाती स्त्रियों के लिए क्या तुमने कभी कोई सीट छोड़ी

Advertisement

युद्धों से वीरान देश, दंगों से जलते मोहल्ले

भागती, रौंदी जाती रक्तरंजित स्त्री के लिए

क्या एक पुरुष होने पर तुम्हें कभी लज्जा आई

कितनी लड़कियों ने तुम्हारी घूरती नजर से घबराकर अपनी आभा मंद कर ली

कभी पकाई है किसी स्त्री के लिए रोटी, जली ही सही

उस के लिए कभी रोए फूट-फूटकर

मेरी रुचि तुम्हारे प्रोफाइल फोटो में नहीं है डियर

बराबरी और खुदमुख्तारी ऐसे अंगारे हैं

जिनसे अभी भी दहकने लगता है पुरुष

सुलग उठती है संस्कृति

और धुआं उठने लगता है धर्मों से

मैं समझती हूं अभी तुम्हें इसका अभ्यास नहीं है

तुमने अपनी फर्माबरदार मां को देखा है

दबने वाली बहनों के बीच बड़े हुए हो

साहित्य का राष्ट्रधर्म: 'अब वो समय नहीं जब देशभक्ति को झंडा बनाकर घूमें'

तुम्हें एक ऐसी स्त्री दे दी गई है जो घर चलाने की विवशता में

सहती और चुप रहती  है

तुम्हें वात्सल्य मिला, स्नेह मिला, देह मिली

पर प्रेम नहीं मिला किसी स्त्री का

मुझे कभी मिलना तो इस तरह मिलना जैसे कोई स्त्री मिलती है किसी से.

अरुण देव ने कहा कि हर कवि के भीतर एक सचेत आलोचक बैठा होता है और कवि सत्ता प्रतिष्ठान नहीं है जो अपनी आलोचना से डर जाए. उन्होंने कहा कि कविता मनुष्यता के सार को कम शब्दों में बयान करती हैं और हम उसमें से भी कटौती की कोशिश करते हैं. अरुण देव ने कहा कि जो सरोकार मनुष्यता के हैं वही सरोकार कविता के भी हैं.

Advertisement

To License Sahitya Aaj Tak Images & Videos visit www.indiacontent.in or contact syndicationsteam@intoday.com

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement