
ब्लड कैंसर से जंग जीतने वाला छह साल का मासूम तल्हा करीब 7 महीने पहले ऐसा नहीं था. जी हां, मुरादाबाद में रहने वाले तल्हा के पापा राशिद और दादी हसीना अपने बच्चे की गर्दन पर बनी गांठ से फिक्रमंद शहर-शहर भटकते रहे और गलत इलाज का शिकार होते रहे.
लाइलाज बीमारियों से बचने का रास्ता दिखा गया साल 2016
आज सामान्य दिख रहा मासूम तल्हा कुछ महीने पहले इतना बीमार था कि घरवालों ने इसके बचने की उम्मीद छोड़ दी थी. पूरे शरीर पर नीले-नीले धब्बे और गांठे बन गई थी. लाखों रुपये खर्च होने के बाद भी जब तल्हा की बीमारी में कोई सुधार नहीं दिखा तो सबने आस छोड़ दी थी.
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कहते हैं जाको राखे साइयां मार सका न कोई और इसीलिए तल्हा दिल्ली पंहुचा और उसका सही इलाज शुरू हुआ. तल्हा का इलाज करने वाले अपोलो के डॉक्टर मानस कालरा के मुताबिक जब तल्हा यहां आया था तब उसके पास सिर्फ 1 महीने का वक्त था. लेकिन कुदरत का करिश्मा और तल्हा के घरवालों की इच्छाशक्ति के आगे बीमारी हार गई.
आज तल्हा बिलकुल सामान्य बच्चों की जिंदगी जी रहा हैं. लेकिन अभी कम से कम 5 साल तक इसका इलाज चलता रहेगा. डॉक्टर्स के मुताबिक करीब 70 से 80 प्रतिशत बच्चे इस बीमारी से पूरी तरह ठीक हो जाते हैं.