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बीते 16 दिसंबर को पाकिस्तान के पेशावर में आर्मी स्कूल पर हुए आतंकी हमले में 140 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. मारे गए लोगों में ज्यादातर बच्चे थे. पाकिस्तानी तालिबान ने इस हमले की जिम्मेदारी ली. नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित मलाला यूसुफजई पर 2012 में हुए जानलेवा हमले की जिम्मेदारी लेने वाले इस आतंकी संगठन पेशावर में जो किया वह क्रूरता की सभी हदें पार करने जैसा था. मानवता पर लगा यह दाग वर्षों तक लोगों को सालता रहेगा. इस हमले के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने तहरीक-ए-तालिबान के खिलाफ भले ही आर-पार की जंग का ऐलान कर दिया है लेकिन ये वही तालिबान है जो कभी पाकिस्तान के हाथों की कठपुतली हुआ करता था. आज उसी तालिबान को लेकर पाकिस्तान खौफ में जी रहा है.
कौन है तालिबान?
उत्तरी वजीरिस्तान में फैले आतंकियों का एक गुट है तहरीक-ए-तालिबान (टीटीपी). इसे आम तौर पर पाकिस्तानी तालिबान भी कहा जाता है. 9/11 हमलों के बाद अमेरिकी सेना ने जब अल कायदा के खिलाफ कार्रवाई के लिए Operation Enduring Freedom चलाया तो अफगानिस्तान से भागकर कई आतंकी पाकिस्तान के कबायली इलाकों में छुप गए. इन आतंकियों के खिलाफ जब पाकिस्तानी सेना ने कार्रवाई शुरू की तो स्वात घाटी में पाकिस्तानी सेना का ही विरोध होने लगा.
पाकिस्तानी फौज की इस कार्रवाई से भड़के कबीलाई संगठनों ने बाद में तहरीके तालिबान का गठन कर लिया और पाकिस्तानी फौज के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया. हालांकि, यह संगठन दिसंबर 2007 में अस्तित्व में आया जब कई धड़े के आतंकी एक बैनर (टीटीपी) के तले आए. इस तरह बैतुल्लाह मेहसूद की अगुवाई में 13 गुटों ने एक तहरीक (अभियान) में शामिल होने का फैसला लिया. टीटीपी में करीब 35,000 सदस्य हैं.
क्या है इसका मकसद?
टीटीपी का मानना है कि पाकिस्तान अमेरिका का गुलाम है. उसका यह भी कहना है कि कबायली इलाकों में अमेरिकी फौज के ड्रोन से हमले पाकिस्तानी सरकार और सेना की सहमति से हो रहे हैं. इनका मकसद पाकिस्तान की सत्ता को उखाड़ फेंकना और यहां शरिया आधारित एक कट्टरपंथी इस्लामी अमीरात को कायम करना है. टीटीपी अपने मकसद को पूरा करने के लिए पाकिस्तानी सेना, सरकारी प्रतिष्ठानों और आम नागरिकों को निशाना बनाता है. इस हिंसा में अब तक हजारों लोग मारे गए हैं लेकिन पेशावर आर्मी स्कूल पर हमला पाकिस्तान के इतिहास में एक काला अध्याय की तरह है जिसे इंसानियत कई पीढ़ियों तक नहीं भुला सकेगी.
क्या है इसका दायरा?
पाकिस्तानी तालिबान का दायरा पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर संघ-शासित कबायली क्षेत्र (FATA) में फैला है. यह गुट अफगानिस्तान के तालिबान से अलग है. हालांकि, इनकी गतिविधियों को अफगानिस्तान के तालिबान और अल कायदा का समर्थन हासिल है. FATA की सभी सात कबायली जिलों और खैबर पख्तून के कई जिलों में इसके सदस्य हैं. इसका मुख्यालय उत्तरी वजीरिस्तान में है. इसका नेटवर्क पाकिस्तान के चारों प्रांतों में है.
पाकिस्तान में सबसे ज्यादा आतंकी हमले यही संगठन करता है. पाकिस्तान में आत्मघाती बम विस्फोट की करीब तीन-चौथाई घटनाओं में इसका ही हाथ रहा है. पेशावर की वारदात के बाद यह संगठन टॉप 10 आतंकी गुटों की लिस्ट में चौथे स्थान पर आ गया है.
तालिबान अमेरिका पर भी हमले की धमकियां देता रहा है. 2010 में न्यूयॉर्क के टाइम स्कॉयर पर हुए बम धमाके की जिम्मेदारी भी तहरीके तालिबान ने ली थी. यही वजह है कि अमेरिका पाकिस्तान में तालिबान के ठिकानों पर ड्रोन जहाज के जरिए लगातार बमबारी करता रहा है.
पाकिस्तान ने क्या किया?
तालिबान के आतंकवादियों ने साल 2009 में स्वात घाटी के बुनेर, मिंगोरा, प्योचार, दीर और मालकंड डिवीजन तक के एक बड़े इलाके पर अपना कब्जा जमा लिया था. पाकिस्तानी सेना जब स्वात घाटी में दाखिल हुई थी उस वक्त उसे तहरीक-ए-तालिबान से जबरदस्त प्रतिरोध का सामना भी करना पड़ा था. इस जंग में पाकिस्तानी सेना ने बख्तरबंद गाड़ियों, टैंकों और हैलीकॉप्टर से तालिबान के खिलाफ जम कर हमला बोला था. पाक सेना की इस कार्रवाई के दौरान स्वात घाटी से करीब पांच लाख लोगों को पलायन भी करना पड़ा था लेकिन जब स्वात में तालिबान के दूसरे सबसे बड़े गढ चारबाग और अलीगंज पाकिस्तानी फौज के कब्जे में आए तो उसके बाद से तालिबान की कमर टूट गई थी.
पाकिस्तानी सेना ने इस कबायली इलाके में कई ऑपरेशन किए. इनमें पाकिस्तान के 4000 से ज्यादा सैनिक मारे भी गए जबकि हजारों जख्मी हुए. लेकिन पाकिस्तान की अवाम इन ऑपरेशनों के असर पर सवाल उठाती रहती है. साल 2013 में पाकिस्तान के पीएम बने नवाज शरीफ ने इस हिंसा को रोकने के लिए बातचीत का रास्ता अख्तियार करने का वादा किया. आतंकवादियों से बातचीत की कोशिश भी की गई लेकिन नतीजा सिफर रहा.
पाकिस्तान तो यह दावा भी करता है कि टीटीपी पर उसने 25 अगस्त 2008 को प्रतिबंध लगाया है. प्रतिबंध लगने के बाद सात आतंकी संगठन भी टीटीपी का हिस्सा बन गए.अमेरिका ने 1 सितंबर 2010 को इस संगठन को खतरनाक आतंकी गुटों की सूची में शामिल किया. ब्रिटेन ने 18 जनवरी 2011 को इसे प्रतिबिंधत संगठनों की सूची में डाला. कनाडा ने 5 जुलाई 2011 को काली सूची में डाला.
आतंकी गुटों से जूझ रहा पाक
जून 2014 में जब कराची हवाई अड्डे पर तालिबान के आतंकियों ने हमला किया तो समूचा पाकिस्तान सन्न रह गया. इस हमले के बाद उत्तरी वजीरिस्तान के कबायली इलाके में सेना ने आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन 'जर्ब-ए-अज्ब' शुरू कर दिया. पाकिस्तान का दावा है कि इस ऑपरेशन में अब तक 1000 से ज्यादा आतंकी ढेर हुए हैं, हालांकि इस दौरान हजारों लोग विस्थापित भी हुए हैं.
पाकिस्तान की एक एंटी-टेररिज्म कोर्ट ने कराची एयरपोर्ट हमले के मामले में हाल में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) प्रमुख मुल्ला फजलुल्ला, प्रवक्ता शाहिदुल्ला शहीद तथा नौ अन्य के खिलाफ गैर जमानती गिरफ्तारी वारंट जारी किया है.