
आधार कार्ड की अनिवार्यता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सबसे बड़ी सुनवाई चल रही है. आधार में दर्ज डेटा के चुनाव में इस्तेमाल की आशंका पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई जिस पर यूआईडीएआई ने कहा कि ये कोई एटम बम जैसी चीज नहीं है.
पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा कि ये वास्तविक आशंका है कि उपलब्ध आंकड़े किसी देश के चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं. साथ ही उन्होंने सवाल भी दागा कि अगर आधार डेटा का इस्तेमाल चुनाव परिणामों पर प्रभाव डालने के लिए किया जाता है तो क्या लोकतंत्र बच सकता है.
सुप्रीम कोर्ट की आशंका पर यूआईडीएआई की ओर से राकेश द्विवेदी ने जवाब देते हुए कहा कि प्रौद्योगिकी आगे बढ़ रही है और हमारे पास तकनीकी विकास की सीमाएं हैं.
देश की शीर्ष अदालत की ओर से आधार की सुरक्षा को लेकर इस पर भी आशंका जताई गई कि डेटा संरक्षण कानून की अनुपस्थिति में उपलब्ध सुरक्षित उपायों की प्रकृति क्या है, ये समस्याएं लक्षणकारी नहीं है बल्कि वास्तविक है.
सुनवाई के दौरान जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने कहा कि ज्ञान की सीमाओं के कारण हम वास्तविकता के बारे में आंखे मूंदे नहीं रह सकते क्योंकि हम कानून को लागू करने जा रहे हैं जो भविष्य को प्रभावित करेगा.
यूआईडीएआई ने मजबूती से अपना पक्ष रखते हुए कहा कि आधार के तहत डेटा का संरक्षण एटम बम जैसा नहीं है. ये याचिकाकर्ताओं द्वारा फैलाया गया डर है. उनकी ओर से तर्क दिया गया था कि आधार कार्ड से बेहतर तो स्मार्ट कार्ड है, क्योंकि वे स्मार्ट कार्ड चाहते हैं.
उसने आगे कहा कि देश के लोगों को इस पर भरोसा करना चाहिए. गूगल जैसी कंपनियों को आधार हासिल नहीं करना है. हमने सुनिश्चित किया है कि डेटा साझा नहीं किया जा सके.
इससे पहले आधार मामले में सुनवाई के दौरान नागरिकों के डेटा की सुरक्षा और दुरुपयोग पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताते हुए कहा था कि सवा अरब से ज्यादा भारतीयों की जौविक और भौगोलिक जानकारी का डेटा व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए तो जैसे सोने की खदान है. कोर्ट की इस टिप्प्णी और चिंता पर यूआईडीएआई ने कोर्ट को भरोसा दिलाया था कि डेटा पूरी तरह सुरक्षित है. इसे शेयर नहीं किया जा सकता. शेयर करने वाले को कड़ी सजा का प्रावधान है.
इस पर जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़ ने पूछा कि सवा अरब से ज्यादा यानी 1.3 मिलियन नागरिकों का डेटा रखा जाता है. मुमकिन है कि कई गरीब भी होंगे, लेकिन इसे व्यावसायिक नजरिए से इस्तेमाल करने के मकसद से शेयर या लीक करना सोने की खान हाथ लगने जैसा ही है. यहां तक कि इसमें दर्ज कराई गई छोटी-छोटी जानकारी का खुलासा भी काफी मायने रखता है. पिछली सुनवाई में जस्टिस चंद्रचूड़ ने कैंब्रिज एनालिटिका (सीए) की नजीर देते हुए कहा कि देखिए उन्होंने कैसे इतनी बड़ी तादाद में लोगों का डेटा शेयर किया. जुकरबर्ग ने तो अमेरिकी कांग्रेस में इसे स्वीकार भी किया है.