Advertisement

चीन को चेताया- भारत की नजर, ड्रोन की चाल और 'दुधारी तलवार' पर कभी संदेह नहीं करते

चीन ने हिंद महासागर में अपनी गतिविधियां बढ़ाई तो भारत ने भी अपने सबसे शक्तिशाली एयरक्राफ्ट को अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर तैनात कर दिया.

पसाइडन-8I एयरक्राफ्ट पसाइडन-8I एयरक्राफ्ट
विकास वशिष्ठ
  • नई दिल्ली,
  • 19 जनवरी 2016,
  • अपडेटेड 5:00 PM IST

भारत ने हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की परमाणु पनडुब्बियों से मुकाबले के लिए अंडमान निकोबार द्वीप पर बने मिलिट्री बेस पर अपने अत्याधुनिक समुद्री पेट्रोलिंग एयरक्राफ्ट और जासूसी ड्रोन तैनात कर दिए हैं.

पिछले कुछ समय से इस क्षेत्र में चीन की सक्रियता बढ़ गई थी. ये एयरक्राफ्ट दुधारी तलवार की तरह हैं, जो एंटी-सबमरीन और एंटी-सरफेस वारफेयर को अंजाम देने में सक्षम हैं. यानी दुश्मन की पनडुब्बी जहां देखी, वहीं खत्म.

Advertisement

दो हफ्ते पहले ही कर दी थी तैनाती
अंग्रेजी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया ने रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से लिखा है 'भारत ने दो हफ्ते पहले अंजमान निकोबार में अपने सबसे शक्तिशाली एयरक्राफ्ट पसाइडन-8I को तैनात कर दिया है.' अंडमान निकोबार द्वीप समूह रणनीतिक रूप से अहम है. रक्षा सूत्रों के मुताबिक नेवी और एयरफोर्स के इजरायली हवाई सर्चर-II व्हीकल्स भी अस्थायी तौर पर यहां तैनात हैं.

कैसा है पसाइडन-8I एयरक्राफ्ट

  • इसकी ऑपरेटिंग रेंज 1,200 नॉटिकल माइल है और अधिकतम रफ्तार 907 किलोमीटर प्रतिघंटा है.
  • यह रडार से लैस है, लिहाजा खुफिया और हर तरह के जासूसी जोखिमों से निपटने में भी सक्षम है. 
  • ये खतरनाक हारपून ब्लॉक-II मिसाइलों, MK-54 लाइटवेट विध्वंसक, रॉकेट और बारूद से लैस हैं.
  • P-8I जरूरत और स्थिति को भांपकर दुश्मन की पनडुब्बियों और युद्धपोतों को बेअसर कर सकते हैं.

2009 में हुआ था अमेरिका से सौदा
भारत ने ऐसे आठ एयरक्राफ्ट हाल ही में अपने नौसेना बेड़े में शामिल किए थे. सौदा 2009 में अमेरिकी कंपनी बोइंग से 2.1 बिलियन डॉलर में हुआ था. इन्हें तमिलनाडु के अराक्कोनम स्थित आईएनएस रजाली नेवल एयर स्टेशन के बेड़े में शामिल किया गया था. चार अन्य P-8I को शामिल करने की प्रक्रिया अंतिम दौर में है. P-8I के जरिए पोर्ट ब्लेयर से पूरे क्षेत्र पर नजर रखी जा सकती है.

Advertisement

यह है जमीनी स्थिति
फिलहाल अंडमान निकोबार कमांड सिर्फ एक पैदल सेना ब्रिगेड के 3,000 सैनिकों, 20 छोटे युद्धपोतों, गश्ती जहाजों और कुछ एमआई -8 हेलीकॉप्टरों के साथ डोर्नियर-228 गश्ती विमान तक ही सीमित है.

सूत्रों के मुताबिक '572-द्वीप क्लस्टर में हवाई पट्टियों और घाटों, 720 किमी से ज्यादा का विस्तार और अंततः एक डिविजन स्तर के करीब 15,000 सैनिकों की तैनाती, एक लड़ाकू स्क्वॉड्रन और कुछ प्रमुख युद्धपोतों को लेकर बहुत प्रगति नहीं है. इस समय युद्ध मैदान में आर्मी, नेवी और एयरफोर्स के बीच फंड का संकट है. इसके साथ ही पर्यावरणीय चिंता भी है.'

शिबपुर तक विस्तार भी बाकी
कैंबेल बे में मौजूदा रनवे का उत्तरी अंडमान में शिबपुर तक विस्तार अभी बाकी है. इसी जगह नौसेना एयर स्टेशन आईएनएस बाज भी स्थित है. पोर्ट ब्लेयर के हवाई मैदानों और कार निकोबार में अभी कई अहम काम बचे हुए हैं. सूत्रों ने बताया कि इसी तरह युद्धपोतों के लिए प्रस्तावित चार टर्न-अराउंड बेस में से सिर्फ एक युद्धपोत ही संचालन की स्थिति में है.

अंडमान पर नहीं है ध्यान?
अखबार ने सवाल उठाया है कि अंडमान निकोबार कमांड भारत का पहला और एकमात्र युद्धक्षेत्र है, जो मोदी सरकार की शीर्ष प्राथमिकता में होने के बावजूद उपेक्षा का सामना कर रहा है. यहां मिलिट्री फोर्स लेवल और इंफ्रास्ट्रक्चर को तेजी से दुरुस्त करने की जरूरत है. ऐसा करने पर ही हिंद महासागर में चीनी रणनीतिक चाल से प्रभावी तरीके से मुकाबला किया जा सकता है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement