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देश में सहनशीलता की बेहद जरूरत है: अमर्त्य सेन

नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने बुधवार को कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि इस वक्त देश में सहनशीलता की सख्त जरूरत है. उन्होंने 19वीं सदी के कवि हेनरी लुईस विवियन डेरोजियो की शिक्षा पर चर्चा करते हुए कहा कि हमें सबकी आस्था की इज्जत करनी चाहिए.

नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन (फाइल फोटो) नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन (फाइल फोटो)
आदर्श शुक्ला/IANS
  • कोलकाता,
  • 20 जनवरी 2016,
  • अपडेटेड 7:48 AM IST

नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने बुधवार को कहा कि भारत में सहनशीलता की सख्त जरूरत है. उन्होंने 19वीं सदी के कवि हेनरी लुईस विवियन डेरोजियो के शिक्षा और समाज पर योगदान की चर्चा करते हुए कहा, 'हर तरह के विश्वास और आस्था को स्वीकार करना चाहिए. सहनशीलता एक बहुत बड़ा नैतिक गुण है और भारत में इस वक्त इसकी बेहद सख्त जरूरत है.'

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उन्होने कहा कि भारत में संदिग्ध सहनशीलता की भी जरूरत है. जो डेरोजियो के विभिन्न विचारों में से एक है. उनकी किसी समूह से दुश्मनी नहीं थी, लेकिन हर समूह के लिए उनके पास प्रश्न था. सेन को प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय में यहां डीलिट् की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया. प्रेसिडेंसी कॉलेज हिन्दू कॉलेज से बना है, जिसकी 1817 में स्थापना की गई. उसे 1855 में प्रेसिडेंसी कॉलेज का नाम दिया गया. डेरोजियो हिन्दू कॉलेज के सहायक प्रधानाध्यापक थे. सेन ने कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज के में यह बात कही. सेन यहां प्रेसिडेंसी कॉलेज के पूर्व छात्र हैं जो अब प्रेसिडेंसी यूनिवर्सिटी बन चुका है.

डेरोजियो की विरासत पर जोर देते हुए सेन ने प्रेसिडेंसी के वर्तमान छात्रों को भारत की प्रमुख समस्याओं पर ध्यान देने को कहा. हालांकि उन्होंने राज्य सरकार के द्वारा बहुत ज्यादा हस्तक्षेप किए जाने को लेकर चेतावनी दी.उन्होंने कहा, 'हम एक ऐसे समाज में रहते हैं जहां बहुत सारी समस्याएं हैं जिन पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है. हम इन पर किसी सरकारी कॉलेज के छात्र के नाते ध्यान नहीं देंगे, बल्कि हमारा मूल नागरिक समाज है. प्रेसिडेंसी को निश्चित रूप से सरकारी मदद की आवश्यकता है, लेकिन हस्तक्षेप की कीमत पर नहीं.'

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उन्होंने आगे कहा, 'प्रेसिडेंसी के छात्रों को अपने आप से यह प्रश्न लगातार पूछने की जरूरत है कि भारत के लिए और दुनिया के लिए क्या वे प्रासंगिक हैं. हम दुनिया के लिए क्या कर सकते हैं. हम एक ऐसे कठिन समय में रह रहे हैं जहां हिंसा, भूख, कुपोषण, अशिक्षा, निरक्षरता और स्कूल स्तर पर घटिया शिक्षा जैसे मुद्दे हैं. हमें इन मुद्दों पर ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि यही हमारे देश की तकदीर तय करते हैं.'

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