
ऐसा लगता है कि मुस्लिम वोटों की चिंता और अपने भाई शिवपाल यादव को मनाने के लिए मुलायम सिंह यादव एक बार फिर कौमी एकता दल से हाथ मिलाने के बारे में सोच रहे हैं.
मतभेद खुलकर सामने आ गए
हालांकि कौमी एकता दल से मुख्तार अंसारी का नाम जुड़ा होने की वजह से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इसके बिल्कुल पक्ष में नहीं है. लेकिन ऐसा लगता है कि अब इस मामले पर मुलायम सिंह यादव परिवार के भीतर मतभेद खुलकर सामने आ गए हैं. कौमी एकता दल से हाथ मिलाने के बाद जिस तरह से समाजवादी पार्टी ने उससे पल्ला झाड़ लिया था उससे शिवपाल यादव की खासी फजीहत हुई थी.
शिवपाल यादव ने नपा तुला जवाब दिया
शिवपाल उसके बाद से लगातार नाराज चल रहे थे और उन्होंने हाल में ही अपनी नाराजगी सार्वजनिक तौर पर जाहिर भी कर दी और इस्तीफे तक की बात कह दी. लगता है मुलायम सिंह यादव को अब शिवपाल यादव की नाराजगी खल रही है. सोमवार को मैनपुरी में इस बारे में पूछे जाने पर शिवपाल यादव ने नपा तुला जवाब दिया और सिर्फ इतना ही कहा कि जिनसे उनकी नाराजगी थी वह बात उन्होंने नेताजी को बता दी है. जुलाई के महीने में कौमी एकता दल ने समाजवादी पार्टी में विलय की घोषणा कर दी थी. लेकिन इस पर अखिलेश यादव खासे नाराज हुए और इसके लिए जिम्मेदार बलराम सिंह यादव को अपने मंत्रिमंडल से हटा भी दिया.
बाद में मुलायम सिंह यादव के हस्तक्षेप करने पर कौमी एकता दल से गिला खत्म कर दिया गया और बलराम सिंह यादव की अखिलेश मंत्रिमंडल में वापसी हो गई. लेकिन इस मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले शिवपाल यादव लगातार नाराज चल रहे थे. कौमी एकता दल को लेकर चल रही अटकलों के बीच अखिलेश यादव के मंत्रिमंडल में मंत्री रविदास मेहरोत्रा ने कहा कि राजनीति में दरवाजे कभी बंद नहीं होते और अगर मुलायम सिंह यादव चाहें, तो कौमी एकता दल के ऊपर पुनर्विचार हो सकता है.
समाजवादी पार्टी से झटका खाने के बाद कौमी एकता दल के नेताओं ने समाजवादी पार्टी के खिलाफ भड़ास निकाली थी और उन्हें धोखेबाज तक कहा था. कौमी एकता दल ने कहा था कि वह मुसलमानों को साथ लेकर आने वाले चुनावों में समाजवादी पार्टी को सबक सिखाएंगे. पूर्वी उत्तरप्रदेश के तीन चार जिलों में कौमी एकता दल का कुछ प्रभाव है. लगता है कि बीजेपी और बहुजन समाज पार्टी की चुनौती से चिंतित होकर मुलायम सिंह यादव ने एक बार फिर अपनी रणनीति में बदलाव करने की सोची है . लेकिन कौमी एकता दल अगर एक बार फिर से समाजवादी पार्टी के साथ आ जाता है तो इससे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पार्टी के भीतर हैसियत को लेकर फिर से सवाल उठाना तय है.