
गंगा की सफाई की मोदी सरकार की कोशिशों के बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ में गोमती नदी सफाई महाभियान का शुभारंभ किया. सीएम योगी खुद गोमती के घाट पहुंचे और हाथ में फावड़ा लेकर उसका कूड़ा समेटा. योगी के साथ उनके मंत्री भी गोमती की सफाई करते नजर आए.
गोमती हो या गंगा बीजेपी की राजनीति में नदियां हमेशा केंद्र में रही हैं. इससे पहले एमपी में शिवराज सरकार नर्मदा की सफाई के लिए यात्रा निकाल चुकी है तो हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर की सरकार गुम हो चुकी सरस्वती की खोज में जुटी है. यही नहीं खुद पीएम नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो साबरमती की सफाई उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में शुमार की जाती थी.
गुजरात में साबरमती की सफाई
पीएम नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो साबरमती की सफाई उनके एजेंडे पर रही. गुजरात के विकास के नाम पर जिन तस्वीरों को बीजेपी हमेशा से प्रचारित करती रही है उनमें साबरमती रिवर फ्रंट सबसे अहम है. देश के प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी मिलने के बाद भी मोदी ने राज्य की साबरमती नदी को हमेशा केंद्र में रखा. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग जब भारत दौरे पर आए तो पीएम मोदी ने उन्हें साबरमती रिवर फ्रंट की सैर कराई. 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में भी साबरमती चुनाव प्रचार का केंद्र बनी, जब पीएम मोदी ने वहां सी-प्लेन से उड़ान भरी और अंबाजी मंदिर तक का सफर तय किया.
गंगा सफाई केंद्र सरकार का एजेंडा
2014 में बीजेपी को जब बहुमत के साथ केंद्र की सत्ता हासिल हुई तो मोदी सरकार ने अपने घोषणा-पत्र के मुताबिक गंगा सफाई को प्रमुख एजेंडे में शामिल किया. गंगा की सफाई के लिए अलग से मंत्रालय बनाया गया. सरकार गठन के अगले महीने ही 20 हजार करोड़ के 'नमामि गंगे प्रोग्राम' की शुरुआत की गई. गंगा सफाई के इस मिशन की जिम्मेदारी केंद्रीय मंत्री उमा भारती को दी गई. हालांकि, ये बात अलग है कि सरकार के चार साल बीत जाने पर भी गंगा सफाई का मिशन पूरा नहीं हुआ है. यहां तक कि प्रोजेक्ट में विलंब के चलते उसकी जिम्मेदारी उमा भारती से लेकर परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को दे दी गई, जो मार्च 2019 तक 80 फीसदी गंगा की सफाई हो जाने का दावा कर रहे हैं.
शिवराज सरकार की नर्मदा सेवा यात्रा
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दिसंबर 2016 में नर्मदा नदी को प्रदूषण मुक्त बनाने के संकल्प के साथ उसके उद्गमस्थल अमरकंटक से 'नमामि देवी नर्मदे' सेवा यात्रा शुरू की. 3300 किलोमीटर की नर्मदा सेवा यात्रा 1100 गांवों से होकर गुजरी. खुद शिवराज सिंह भी इसमें शामिल हुए. नियमित तौर पर नर्मदा नदी के तट पर सुबह-शाम आरती की गई. हालांकि, यात्रा खत्म होते-होते विवादों में भी आ गई. कांग्रेस ने शिवराज सरकार पर यात्रा के दौरान आरती पर खर्च में घोटाले के आरोप लगाए. वहीं इस यात्रा को इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारी से जोड़कर भी देखा गया और प्रचार का पैंतरा माना गया.
हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने प्राचीन सरस्वती नदी को फिर से जीवित करने का बीड़ा उठाया. सरकार ने नदी का पता लगाने के लिए बाकायदा इसरो के साथ एमओयू साइन किया है और इसके लिए 50 करोड़ रुपये भी मंजूर किए गए हैं.
खट्टर सरकार का मानना है कि सरस्वती नदी का अस्तित्व हकीकत है और इस दिशा में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के उपयोग के जरिए जमीन के नीचे इस प्राचीन नदी के बहाव का पता लगाया जा रहा है. हालांकि जानकार ऐसी किसी नदी के अस्तित्व से इनकार करते रहे हैं और इसे मिथक ही बताते हैं.
एक तीर से साधे जाते हैं दो निशाने
दरअसल, नदी का मुद्दा ऐसा है जो देश की बड़ी आबादी के साथ आस्था के तौर पर सीधा जुड़ा रहता है. ऐसे में इसके जरिए समाज के एक बड़े वर्ग को अपने साथ लाया जा सकता है. पर्यावरण की दृष्टि से भी नदियों की सफाई बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी के वैचारिक विरोधी भी कम से कम इस मुद्दे पर बीजेपी के किसी भी कदम की मुखालफत नहीं कर पाते. नदियों की सफाई आसपास के शहरों की पेयजल की समस्या का भी काफी हद तक समाधान कर देती है. मतलब ये हर तरह से विन-विन सिचुएशन जैसा मामला है.