एरोपोनिक टेक्निक से आलू उगाने में मिट्टी का उपयोग नहीं होता, हवा में खेती की जाती है, जिससे आलू की ज्यादा उपज होती है. साथ ही आलू की गुणवत्ता मिट्टी में उगाए गए आलू से बेहतर रहती है. इस तकनीक से पैदावार 10 गुना ज्यादा हो सकती है.
एरोपोनिक तकनीक में बड़े-बड़े बक्सों में आलू के पौधे लटकाए जाते हैं. इस तकनीक से प्राप्त बीज बीमारी रहित होते हैं. बक्से में लटके हुए आलू की जड़ों के माध्यम से पौधे को पोषक तत्व दिए जाते हैं.
एरोपोनिक तकनीक का फायदा यह है कि इससे ज्यादा आलू उगाए जा सकते हैं. तकनीक के तहत टिश्यू कल्चर और बायोटेक्नोलॉजी की सहायता से पौधे तैयार किए जाते हैं. एक पौधे में करीब 40 आलू प्राप्त होते हैं.
इस तकनीक से खेती के लिए सबसे पहले टिश्यू कल्चर से तैयार किए गए पौधों को 20 दिन तक कोकोपिट में रखा जाता है. इसके बाद कोकोपिट से पौधे निकालकर एरोपोनिक में लगाए जाते हैं.
एरोपोनिक में पौधों को अलग-अलग पोषक तत्व उपलब्ध कराए जाते है. बॉक्स में हर दिन आलू की क्वालिटी और अच्छे साइज के लिए पौधों का पीएच मान चेक किया जाता है.
वैज्ञानिक के मुताबिक, किसानों को इस तकनीक का काफी फायदा होगा. कम लागत में ही आलू की ज्यादा पैदावार हासिल की जा सकती है. इस तकनीक में लटकती हुई जड़ों के द्वारा उन्हें पोषण दिए जाते हैं. जिसके बाद उसमें मिट्टी और ज़मीन की ज़रूरत नहीं होती. इसमें में पोषक तत्वों को धुंध के रूप में जड़ों में छिड़का जाता है. पौधे का ऊपरी भाग खुली हवा और प्रकाश में रहता है.
एरोपोनिक तकनीक से हर 3 महीने में आलू की उपज हासिल की जा सकती है. मिट्टी से संपर्क नहीं रहने के कारण आलू का पौधा पूरी तरह से स्वस्थ रहता है. साथ ही इस पर कीटों या रोगों का हमला भी नहीं होता है.