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बाजार में मिलेंगे रंग-बिरंगे आम! लखनऊ के केंद्रीय बागवानी संस्थान में ईजाद हुईं नई किस्में, जानें खासियत

समर्थ श्रीवास्तव
  • लखनऊ,
  • 25 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 2:56 PM IST
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उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के रहमान खेड़ा में स्थित केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (CISH) जल्द ही आम की दो नई किस्में पेश करने जा रहा है, जिससे भारत के विविध आमों की सूची में और विस्तार होगा. केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान ने 'अवध समृद्धि' और 'अवध मधुरिमा' नाम की किस्में विकसित की हैं. ये नई नई किस्में भारतीय आमों की विविधता को और समृद्ध करेंगी. 

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बता दें कि आम की दोनों किस्मों, 'अवध समृद्धि' और 'अवध मधुरिमा' का फील्ड ट्रायल चल रहा है और इन्हें जल्द ही लॉन्च किया जाएगा. सीआईएसएच के निदेशक डॉ. टी. दामोदरन के अनुसार, 'अवध समृद्धि' एक जलवायु-प्रतिरोधी संकर किस्म है, जो नियमित रूप से फल देती है. इसका चमकीला रंग इसके आकर्षण को बढ़ाता है और प्रत्येक फल का वजन लगभग 300 ग्राम होता है. मध्यम आकार का यह पेड़ गहन बागवानी के लिए उपयुक्त है, जो 15 साल बाद 15 से 20 फीट तक बढ़ जाता है, जिससे इसे संभालना आसान हो जाता है. इसका पकने का मौसम जुलाई और अगस्त के बीच होता है. वर्तमान में फील्ड ट्रायल के दौर से गुजर रही 'अवध समृद्धि' किस्म के जल्द ही रिलीज होने की उम्मीद है. 
 

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आम की दूसरी किस्म 'अवध मधुरिमा' का भी क्षेत्रीय परीक्षण चल रहा है और राज्य में इसे लागू होने में थोड़ा समय लग सकता है. उत्तर प्रदेश को इन नई किस्मों से सबसे ज़्यादा फायदा होगा, क्योंकि ये राज्य भारत का सबसे बड़ा आम उत्पादक है. अपने आकर्षक रंग, औसत आकार और लंबी शेल्फ लाइफ के कारण इन किस्मों में निर्यात की काफी संभावनाएं हैं. खास तौर पर यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाजारों में, जहां रंगीन आमों को काफी पसंद किया जाता है. 
 

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इसके अलावा स्थानीय बाजारों में भी इन नई किस्मों के आम की अधिक कीमत मिलने की संभावना है. इससे पहले CISH ने 'अंबिका' और 'अरुणिका' आम की किस्में विकसित की थीं. बता दें कि हाल के वर्षों में CISH द्वारा विकसित आम की सभी चार किस्में अपने चमकीले रंगों के कारण अलग पहचान रखती हैं. अंबिका किस्म अपनी लगातार फल देने वाली, उच्च उपज और देर से पकने वाली किस्म के लिए जानी जाती है. इसके पीले फल की त्वचा पर एक आकर्षक गहरा लाल रंग होता है. जबकि गूदा गहरा पीला, दृढ़, कम रेशेदार और उत्कृष्ट गुणवत्ता वाला होता है. इसकी शेल्फ लाइफ बहुत अच्छी होती है, प्रत्येक फल का वजन 350 से 400 ग्राम के बीच होता है. रोपण के 10 साल बाद, प्रत्येक पेड़ लगभग 80 किलोग्राम फल पैदा कर सकता है. अपने जीवंत रंग और आदर्श आकार के कारण 'अंबिका' स्थानीय बाजारों में लोकप्रिय है और इसका खूब निर्यात भी किया जाता है. 
 

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अंबिका आम की किस्म भारी वर्षा वाले क्षेत्रों को छोड़कर उपोष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पनप सकती है. यह उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में खेती के लिए उपयुक्त है. इसी तरह 'अरुणिका' किस्म अपने नियमित फल और देर से पकने के लिए जानी जाती है. इस किस्म के फलों में आकर्षक लाल रंग की लाली के साथ चिकनी, नारंगी-पीली त्वचा होती है और यह अपने उत्कृष्ट स्वाद और गुणवत्ता के लिए जानी जाती है. अच्छी भंडारण क्षमता के साथ प्रत्येक फल का वजन 190 से 210 ग्राम के बीच होता है. नारंगी-पीले रंग का गूदा दृढ़ और कम फाइबर वाला होता है. पेड़ आकार में बौना होता है और इसकी छतरी घनी होती है, जो इसे बागवानी के लिए आदर्श किस्म बनाती है. 10 साल बाद इसके प्रत्येक पेड़ में लगभग 70 किलोग्राम फल लगते हैं. 'अरुणिका' किस्म के आम उपोष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय जलवायु में के क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्म है. 

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संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. आशीष यादव के अनुसार, आम की नई किस्म विकसित करने में करीब दो दशक का समय लगता है. शुरुआती चरण में विकासशील संस्थान में ही परीक्षण किए जाते हैं. संतोषजनक परिणाम मिलने के बाद किस्म को देश भर के अन्य संस्थानों में परीक्षण के लिए भेजा जाता है. कई स्थानों से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलने के बाद ही किस्म को आधिकारिक तौर पर जारी किया जाता है. 
 

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पारंपरिक किस्मों के अलावा भारत के प्रमुख शोध संस्थानों के वैज्ञानिकों ने कई व्यावसायिक रूप से मूल्यवान आम की किस्में विकसित की हैं.जैसे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली में विकसित अरुणिमा, सूर्या, प्रतिभा, श्रेष्ठ, पीताम्बर, लालिमा, दीपशिखा और मनोहारी, साथ ही भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान (बेंगलुरु) में विकसित सुप्रभात, अनमोल, उदय, पुनीत, अरुणा और नीलाचल केसरी किस्में काफी पॉपुलर हैं. 

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बता दें कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश को कृषि निर्यात का प्रमुख केंद्र बनाने की सोच रहे हैं. वहीं निर्यात केंद्रों तक माल की तेज आवाजाही के लिए एक्सप्रेसवे का जाल बिछाया जा रहा है. पूर्वांचल और बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे पहले से ही चालू हैं और गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे का काम भी लगभग पूरा होने वाला है. ऐसे में मुख्यमंत्री ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि मेरठ को प्रयागराज से जोड़ने वाले गंगा एक्सप्रेसवे का काम महाकुंभ से पहले पूरा हो जाना चाहिए. 

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योगी सरकार जेवर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे को एक प्रमुख निर्यात केंद्र के रूप में स्थापित करने की योजना बना रही है. संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप जैसे बाजारों में कृषि उत्पादों के लिए कड़े गुणवत्ता मानकों को ध्यान में रखते हुए, योगी प्रशासन इन मांगों को पूरा करने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा बनाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है. 
 

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भविष्य में अयोध्या और कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों पर भी इसी तरह की निर्यात सुविधाएं स्थापित की जा सकती हैं. इसके अलावा देश का एकमात्र अंतर्देशीय जलमार्ग प्रयागराज-हल्दिया जलमार्ग कृषि निर्यात के लिए परिवहन का एक महत्वपूर्ण साधन बन रहा है, जिसे अयोध्या तक विस्तारित करने की योजना है. 
 

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