विज्ञान ने कई ऐसे कामों को संभव किया है जिनके बारे में किसी ने सोचा ही नहीं होगा. आज हम एक ऐसे ही घटना के बारे में बात करने जा रहे हैं जिसे जानकर आप चौंक जाएंगे. दरअसल, 36 साल
पहले साल 1984 में एक बच्ची के अंदर लंगूर का दिल लगाया गया.
बच्ची का नाम फाय था. आइए जानते हैं लंगूर का दिल
लगने के बाद आखिर बच्ची के साथ क्या हुआ?
फोटो: @NotableHistory
14 अक्टूबर 1984 को एक बच्ची का जन्म हुआ जिसका
नाम स्टेफनी फे बेइक्वायर था, उस बेबी को फाय नाम से
जाना जाता है. इस बेबी का जन्म हाइपोप्लास्टिक लेफ्ट
हार्ट सिंड्रोम के साथ ही हुआ था, जो एक दुर्लभ
जन्मजात हृदय रोग है. इस बीमारी में दिल का बायां भाग बुरी तरह
अविकसित होता है. यह बाएं वेंट्रिकल, महाधमनी, महाधमनी
वाल्व या माइट्रल वाल्व को प्रभावित कर सकता है. जो जन्म
के साथ ऐसी स्थिति में पैदा होते हैं वो बच्चे 2 हफ्ते से ज्यादा जीवित नहीं रहते हैं, लेकिन फाय के सीने में लंगूर का
दिल लगने के बाद वह 2 हफ्ते से ज्यादा जीवित रही.
फाय के ऑपरेशन को पूरे 35 साल हो गए हैं.
डॉ लियोनार्ड बेली ने बताया कि जो बच्चे हाइपोप्लास्टिक
लेफ्ट हार्ट सिंड्रोम के साथ पैदा होते हैं वो कम से कम 2
हफ्ते तक जीवित रहते हैं. ऐसे में बच्ची का हार्ट ट्रांसप्लांट करना जरूरी था. फाय की मां के पास दो विकल्प
थे. या तो वह अपनी बच्ची को अस्पताल में इलाज के लिए
रखती या फिर घर पर उसकी मृत्यु का इंतजार करती. ऐेसे
में डॉ बेली के दिमाग में एक और विकल्प चल रहा था.
आपको बता दें, दिल छोड़कर फाय की सेहत पूरी तरह ठीक थी. डॉक्टर का मानना था कि ट्रांसप्लांट बच्ची को
ठीक कर सकता है. वैसे तो एक इंसान का दिल दूसरे इंसान
में ट्रांसप्लांट होना 1967 में ही शुरू हो गया था. लेकिन फाय
के केस में इस बात की टेंशन थी कि आखिर इतनी छोटी
बच्ची को दिल कौन देगा. वहीं उस समय तक किसी भी
डॉक्टर ने छोटी बच्ची का हार्ट ट्रांसप्लांट नहीं किया था.
कार्डिएक सर्जन डॉ बेली के दिमाग में एक विकल्प
चल रहा था. उन्होंने सोचा क्यों ना बच्ची के सीने में किसी
अन्य प्रजाति का दिल लगा दिया जाए. डॉ बेली ने 7
साल कैलिफॉर्निया के लोमा लिंडा यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर में
इसी चीज पर रिसर्च किया था.
7 सालों में उन्होंने रिसर्च के दौरान "भेड़, बकरियों
और लंगूरों के बीच 150 से ज्यादा हार्ट ट्रांसप्लांट किए थे. आपको बता दें, 1964 में किसी इंसान को जानवर का दिल
लगाया गया था लेकिन ये सर्जरी सफल नहीं हुई थी और
मरीज की मृत्यु हो गई थी. उसके बाद कुछ और प्रयास किए
गए. हालांकि, डॉ बेली को फाय का दिल किसी अन्य प्रजाति
के दिल से ट्रांसप्लांट करने की अनुमति मिल गई.
बेबी फाय 12 दिन की थी. उसकी तबीयत बिगड़ने लगी.
वो दिन 26 अक्टूबर 1984 का जब सर्जन की टीम ने
मिलकर फाय के लिए लंगूर का दिल ट्रांसप्लांट करने का
फैसला किया. ऑपरेशन शुरू हुआ और एक अद्भुत चीज
डॉक्टर की टीम को देखने को मिली. फाय को लगाया गया
लंगूर का दिल धड़कने लगा.
सर्जन और लोगों के लिए ये
किसी चमत्कार से कम नहीं था. रातों-रात बेबी फाय ने
मीडिया की सुर्खियां बटोरी ली थीं. लोगों ने बच्ची की
सलामती की दुआएं कीं.
लेकिन वो खुशियां कुछ ही दिनों के लिए थी. दिल लगने
के बाद शुरुआत में बेबी फाय की सेहत में लगातार सुधार
हुआ लेकिन ट्रांसप्लांट के 14 दिनों बाद उसकी हालत बिगड़ने
लगी और 15 नवंबर 1984 को बेबी फाय ने हमेशा के लिए
अलविदा कह दिया.
आपको बता दें, इस हार्ट ट्रांसप्लांट ने पूरी दुनिया का
ध्यान अपनी ओर खींचा था और मेडिकल की दुनिया में
इतिहास बना. ये पहला केस था जब मनुष्य को किसी जानवर
का दिल लगाया और वह कुछ समय तक जीवित भी रहा.