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जानें, कौन थे जिम कॉर्बेट, जिनकी PM मोदी ने बेयर ग्रिल्स से की तारीफ

मानसी मिश्रा
  • 12 अगस्त 2019,
  • अपडेटेड 8:17 AM IST
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भारत में जिसके नाम पर नेशनल पार्क जिम कॉर्बेट बना है, वो एक शिकारी थे. यही नहीं वो एक अंग्रेज भी थे. फिर आखिर उनके नाम पर देश के नेशनल पार्क का नाम क्यों रखा गया. जिम कॉर्बेट क्यों आज पूरी दुनिया में मशहूर हैं. सोमवार को डिस्कवरी पर दिखाए गए मैन वर्सेज वाइल्ड शो में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनकी तारीफ की. आइए जानें, कौन थे जिम कॉर्बेट.

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आप जानकर हैरान होंगे कि जिम कार्बेट कभी इंसानों को बाघों से बचाते थे, फिर वो ही बाघों को इंसानों से बचाने लगे. ब्रिटिश आर्मी में कर्नल के रैंक पर रहे जेम्स एडवर्ड कॉर्बेट को ही जिम कॉर्बेट के नाम से जाना जाता है. वो यूनाइटेड प्रोविंस में शिकारी बनकर ही आए थे, या यूं कहें कि उन्हें बुलाया भी इसीलिए गया था कि वो बाघ या अन्य आदमखोर जानवरों को मार सकें.

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कर चुके थे 19 बाघ और 14 चीतों का शिकार

वो इतने बड़े शिकारी थे कि साल 1907 से 1938 के बीच 19 बाघों और 14 चीतों का शिकार कर चुके थे. उनका जन्म 25 जुलाई, 1885 को हुआ था. वो अपने 16 भाई-बहनों में आठवें नंबर पर थे. शुरू से ही पहाड़ों और जंगलों में रहने के कारण इन्हें जानवरों और जंगलों से लगाव हो गया था. बचपन में जानवरों को उनकी आवाज़ से पहचान लेते थे. वो 19 की उम्र में पढ़ाई छोड़कर रेलवे में नौकरी करने लगे.

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सबसे बड़ा शिकारी कैसे बना रक्षक

उस दौरान उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के लोग जानवरों खासकर बाघ और चीतों से परेशान थे. उस इलाके में ये जानवर इंसानों पर हमले कर देते थे. करीब 1200 लोग इन जानवरों का शिकार बन चुके थे. उस दौरान जिम यहां आए और आदमखोर जंगली पशुओं का शिकार शुरू किया. सरकारी आंकड़ों के अनुसार उन्होंने चंपावत बाघिन, चावगढ़ बाघिन के साथ उसके बच्चे, पनार चीता, रुद्रप्रयाग का आदमखोर चीता, मोहन आदमखोर चीता, ठक आदमखोर चीता और चूका बाघिन का शिकार किया. हालांकि इसकी प्रमाणिकता नहीं है. बताते हैं कि उन्होंने बैचलर ऑफ पॉवलगढ़ का भी शिकार किया जिसके खिलाफ आदमखोर होने का कोई सबूत नहीं मिला था. इसलिए जिम विवादों में भी आए.

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ऐेसे बदली जिंदगी

जिम शिकार के बाद बाघों और दूसरे जानवरों के शरीर को अपने घर ले जाकर उसकी जांच-पड़ताल करते थे. एक जांच ने ही उनकी सोच और आदत दोनों बदल दी. हुआ यूं कि जांच के दौरान उन्होंने पाया कि कई बाघ पहले से ही घायल थे. किसी को गोली तो किसी को तीर  लगा था, जिसके घाव साफ दिख रहे थे. उन्हें समझ आया कि शायद इंसानों से इनकी चिढ़ की वजह यही है.

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यही से उन्होंने अपना लक्ष्य बदल दिया. अब वो बाघों को इंसानों से बचाने में लग गए. सरकार से कहकर उन्होंने एक पार्क बनवाया ताकि तमाम जीव सुरक्षित रह सकें. ये था हेली नेशनल पार्क जो बाद में जिम कॉर्बेट के ही नाम से मशहूर हो गया.

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अपने इस बदलाव के बाद उन्होंने मैन-ईटर्स ऑफ कुमाऊं, माय इंडिया, जंगल लोर, जिम कॉर्बेट्स इंडिया और माय कुमाऊं किताबें लिखीं. अपनी आत्मकथा उन्होंने जंगल लोर शीर्षक से लिखी. वो बच्चों को भी बाघों से प्यार करना सिखाने लगे. बताते हैं कि अपने आखिरी समय में पेड़ों पर बनी झोपड़ी में रहते थे.

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भारत की आजादी से ठीक पहले तक जिम अपनी बहन मैगी के साथ नैनीताल के गर्नी हाउस में रहते थे. भारत को आजादी मिलने के बाद साल 1947 में वो केन्या में जाकर रहने लगे. वो केन्या में भी पेड़ों पर झोपड़ी बनाकर रहते थे. बताया जाता है कि उनके ट्री हाउस में एक बार ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ भी घूमने गई थीं.

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उनके योगदान के लिए उन्हें 1928 में कैसर-ए-हिंद मेडल से भी सम्मानित किया गया. उनके जीवन पर ढेरों फ़िल्में बनीं, जिनमें बीबीसी द्वारा बनाई गई डॉक्यूड्रॉमा मैन ईटर्स ऑफ इंडिया और आईमैक्स मूवी इंडिया- किंगडम ऑफ टाइगर का नाम लि‍या जाता है.

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बता दें, सोमवार को मैन वर्सेज वाइल्ड शो में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बेयर गिल्स जिम कॉर्बेट पार्क ही गए थे. वहां उन्होंने बेयर ग्रिल्स से जिम कॉर्बेट के बारे में बताया. इसके अलावा उन्होंने भारत की जैव विविधता के बारे में भी जानकारी दी.

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