जाधव-अभिनंदन मामला और वियना संधि
वियना संधि मानने वाले देश किसी दूसरे देशों के राजनयिकों को विशेष दर्जा देते हैं. ये वो संधि है जिसके तहत दूसरे देश के राजनयिकों को किसी भी कानूनी मामले में गिरफ्तार करने या हिरासत में रखने पर पाबंदी है. संधि के आर्टिकल 31 में स्पष्ट है कि मेजबान देश दूसरे देश के दूतावास में नहीं घुस सकता, लेकिन दूतावास की सुरक्षा की जिम्मेदारी उन्हीं की है. आर्टिकल 36 में है कि यदि देश विदेशी नागरिक को गिरफ्तार करता है, तो संबंधित देश के दूतावास को तुरंत इसकी जानकारी देंगे. भारत ने इंटरनेशनल कोर्ट आफ जस्टिस में इसी आर्टिकल 36 के प्रावधानों का हवाला देते हुए जाधव का मामला उठाया. विंग कमांडर अभिनंदन को रिहा करने की मांग भी इसी संधि के तहत उठाई गई थी.
पाक ने बनाया इसे हथियार
इस संधि में यह भी प्रावधान है कि राष्ट्रीय सुरक्षा (जासूसी या आतंकवाद) के मामलों में गिरफ्तार विदेशी नागरिक को राजनयिक पहुंच नहीं भी दी जा सकती है. ये तब और प्रभावी होगा जब दो देशों ने इस मसले पर कोई आपसी समझौता कर रखा हो. इसके पीछे पाकिस्तान साल 2008 में भारत और पाकिस्तान के बीच इसी तरह के एक समझौते का हवाला दे रहा है. पाकिस्तान इसी समझौते को हथियार बनाकर जाधव को राजनयिक का स्टैंड देने से मुकर कर रहा है.
युद्ध में पकड़े गए सैनिकों के लिए हैं नियम
ये समझौता युद्धबंदियों (POW) यानी prisoner of war के अधिकारों को सुरक्षित रखना तय करता है. जेनेवा समझौते में चार संधियां और तीन अतिरिक्त प्रोटोकॉल शामिल हैं. इसका मकसद युद्ध के वक्त मानवीय मूल्यों को बनाए रखने के लिए कानून तैयार करना है.
इंटरनेशनल कमेटी ऑफ रेड क्रास के मुताबिक जेनेवा समझौते में युद्ध के दौरान गिरफ्तार सैनिकों और घायल लोगों के साथ कैसा बर्ताव करना है इसको लेकर दिशा निर्देश हैं. इसमें स्पष्ट है कि युद्धबंदियों के क्या अधिकार हैं. साथ ही समझौते में युद्ध क्षेत्र में घायलों की उचित देखरेख और आम लोगों की सुरक्षा की बात कही गई है. जेनेवा समझौते में दिए गए अनुच्छेद 3 के मुताबिक युद्ध के दौरान घायल होने वाले युद्धबंदी का अच्छे तरीके से उपचार देने की बात कही गई है.
इस संधि में युद्ध के दौरान कब्जे में लिए गए दूसरे देशों के सैनिकों को कानूनी सुविधा भी मुहैया कराने का नियम है. हां, बंदी बनाने वाला देश युद्धबंदियों पर मुकदमा चला सकता है. लेकिन, युद्ध खत्म होने के बाद उन्हें युद्धबंदियों को वापस लैटाना होता है. इस संधि में ये भी है कि देश युद्धबंदियों से सिर्फ उनके नाम, सैन्य पद, नंबर और यूनिट के बारे में पूछ सकते हैं.
अभिनंदन मामले में आपको वो डायलॉग याद ही होगा जब पाकिस्तान अफसरों ने उनसे पर्सनल सवाल पूछे और उन्होंने कहा कि आई एम नॉट सपोज टू टेल यू दैट. इसका सीधा अर्थ यही है कि इस संधि के तहत युद्ध बंदी नाम, सैन्य पद, नंबर और यूनिट की जानकारियों के अलावा कोई और जानकारी देने को बाध्य नहीं है.