कैसे कोरोना के इलाज में है कारगर
डॉ गुलेरिया बताते हैं कि अगर किसी एक व्यक्ति को कोरोना वायरस होता है तो 80 से 90 पर्सेंट मरीजों में ये ठीक हो जाएगा. अब अगर व्यक्ति कोरोना से बिल्कुल ठीक हो जाता है. उसकी दो तीन ब्लड रिपोर्ट नेगेटिव आ जाती हैं तो वो व्यक्ति इलाज के ब्लड डोनेट करे तो इससे आईसीयू में भर्ती गंभीर रोगी की जान बचाई जा सकती है.
कैसे होता है इलाज
जिस व्यक्ति को एक बार कोरोना हो जाता है इलाज के बाद उसके रक्त में एंटीबॉडीज आ जाएगी. अब वो व्यक्ति अपना प्लाज्मा किसी भी भी रोगी को दान कर सकता है, लेकिन इसके लिए कुछ शर्ते होती हैं.
डॉ गुलेरिया ने बताया कि अब उसके ब्लड से प्लाज्मा निकालकर वो कोरोना पेशेंट को दिया जाए तो वो उसे ठीक होने में हेल्प करेगा. इस तरह ठीक हो गए पेशेंट से बीमार को देकर उसे ठीक कर सकते हैं.
यूएस में भी हो रहे ट्रायल
डॉ गुलेरिया ने कहा कि ये ट्रीटमेंट स्ट्रेटजी अमेरिका के दो सेंटर में ट्राई की गई, इंडिया में भी इस पर काम हो रहा है. इसमें सबसे जरूरी है कि ठीक हो गए लोगों को आगे आना चाहिए.
ये होगी पूरी प्रक्रिया
अगर कोई स्वेच्छा से रक्तदान के लिए आता है तो सबसे पहले उनका टेस्ट होगा. ये देखा जाएगा कि उनके खून में किसी प्रकार का संक्रमण तो नहीं है. मसलन शुगर, एचआइवी या हेपेटाइटिस तो नहीं है. अगर ब्लड ठीक पाया गया तो उसका प्लाज्मा निकालकर आईसीयू के पेशेंट को दिया जाए तो वो ठीक हो सकता है.
बता दें कि कोरोना वायरस के कहर को देखते हुए पूरी दुनिया में हर दिन थ्योरी और प्रीक्लिनिकल स्टडीज को लेकर बहुत सारे दावे सामने आ रहे हैं. इस तरह की किसी भी रिसर्च के गोल्ड स्टैंडर्ड क्लिनिकल स्टडीज पर निर्भर होते हैं.
महामारी का मौजूदा एपिसेंटर अमेरिका बना हुआ है. किसी भी देश से ज़्यादा यहां COVID-19 से जुड़ी 126 क्लिनिकल स्टडीज चल रही हैं. इन स्टडीज़ में स्वास्थ्यप्रद प्लाज्मा से लेकर हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन ड्रग जैसे हस्तक्षेप जुड़े हैं. इन स्टडीज में मॉडर्ना और इनोवियो फार्मा कंपनियों की दो कैंडिडेट वैक्सीन के ट्रायल भी शामिल हैं.
यूके समेत यूरोपीय देशों में कुल 209 क्लिनिकल स्टडीज लिस्टेड हैं. इनमें सबसे ज्यादा फ्रांस में 76 हैं. इसके बाद इटली (39), स्पेन (26) और जर्मनी (25) का नंबर आता है. संख्या की बात की जाए तो यूके बहुत पीछे है लेकिन ऑक्सफोर्ड के जेनर इंस्टीट्यूट से “ChAdOx1 nCoV-19” इकलौता कैंडिडेट है, जिसके क्लिनिकल ट्रायल फेज में दाखिल होने के साथ ही बड़े पैमाने पर उत्पादन हो रहा है.