साल 2019 में देश के केंद्रीय विश्वविद्यालय जेएनयू, बीएचयू, डीयू, एएमयू, जामिया से लेकर सभी यूनिवर्सिटी कैंपस में विरोध की आग भड़की. साल के आखिरी महीनों में देश के विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में छात्र किसी न किसी मुद्दे को लेकर सड़कों पर आए. चाहे जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में फीस वृद्धि और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में मुस्लिम प्रोफेसर का मामला हो, पूरे देश में इनकी चर्चा हुई. कैब आने और नागरिकता संशोधन कानून बनने तक देश की सभी यूनिवर्सिटी में विरोध प्रदर्शन की मानो झड़ी लग गई. आइए जानें- विश्वविद्यालयों से इस साल कौन से मुद्दे सशक्त तरीके से उठाए गए, जिनमें सरकार या प्रशासन को भी उनकी सुननी पड़ी.
फोटो: जामिया के बाहर 15 दिसंबर को हुए प्रदर्शन की तस्वीर
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जेएनयू में फीस वृद्धि के मामले में MHRD को संभालना पड़ा रण
इसी साल 28 अक्टूबर को जेएनयू का हॉस्टल मैनुअल को लेकर नए कायदे कानून आने के बाद कैंपस में विरोध की चिंगारी सुलग गई. एक माह बीतते बीतते छात्र सड़क पर आ गए. 11 नवंबर को यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह के दिन ये आंदोलन इतना तेज हो गया कि एमएचआरडी को इसके लिए कमेटी बनानी पड़ी. हालांकि प्रशासन द्वारा कुछ हद तक मांगें मानी गईं फिर भी यूनिवर्सिटी के छात्र फीस वृद्धि पूरी तरह वापस लेने की मांग पर अड़े हैं. बता दें कि यूनिवर्सिटी ने हॉस्टल की फीस में बढ़ोत्तरी करते हुए कमरे के किराए को 10 रुपए महीने से बढ़ाकर 300 रुपए कर दिया गया है, सर्विस चार्ज जो पहले शून्य था, अब 1700 रुपए कर दिया था. बाद में एमएचआरडी के हस्तक्षेप के बाद इसे कम किया गया लेकिन, अभी भी छात्र इसके कंपलीट रोल बैक की मांग पर अड़े हैं.
फोटो: जेएनयू के बाहर 11 नवंबर को हुए प्रदर्शन की तस्वीर
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आईआईटी में भी हुए प्रदर्शन
आईआईटी बॉम्बे में आईआईटी कॉउन्सिल ने 26 सितम्बर को एमटेक एवं पीएचडी की फीस में 300 प्रतिशत बढ़ोतरी की घोषणा की. नए नियमों के अनुसार पहले ट्यूशन फीस जो 30,000 से 50,000 रुपये के बीच थी, अब बढ़कर 2 से 3 लाख रुपए हो जाएगी. एमटेक के छात्रों को मिलने वाला 12,400 रुपये का भत्ता भी नए नियम लागू होने के बाद मिलना बंद हो जायेगा. इसे लेकर वहां प्रदर्शन हुआ. फीस बढ़ोतरी के मामले में आईआईटी बीएचयू ने भी विरोध-प्रदर्शन किया. 7 नवंबर को संस्थान के दीक्षांत समारोह के दौरान छात्रों के एक समूह ने मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के हाथों से डिग्री लेने से इनकार कर दिया. आईआईटी दिल्ली में भी एमटेक की फीस बढ़ने को लेकर विरोध प्रदर्शन हुआ.
फोटो: आईआईटी दिल्ली में फीस वृद्धि को लेकर हुआ प्रदर्शन
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डीयू में 28 अगस्त के पत्र को लेकर बवाल
दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के लगभग 5,000 एडहॉक शिक्षक एक सप्ताह तक हड़ताल पर रहे. वजह डीयू प्रशासन की ओर से 28 अगस्त को जारी किया गया नोटिस जिसमें यूनिवर्सिटी के सभी कॉलेजों को निर्देश दिए गए थे कि वे एडहॉक शिक्षकों की नियुक्तियों पर रोक लगा दें और उनकी जगह गेस्ट टीचर की भर्ती करें.
इन शिक्षकों का नवंबर महीने का वेतन भी रोक दिया गया है. इसी के विरोध में कुछ अन्य मांगों के साथ दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) के आह्वान पर एडहॉक शिक्षक सड़कों पर उतर आए. उनके साथ बड़ी संख्या में छात्र भी सड़कों पर आए.
फोटो: दिल्ली यूनिवर्सिटी शिक्षक संघ और छात्रों ने किया प्रदर्शन
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अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में विरोध जारी
एएमयू में यूं तो पूरे साल कई मामलों को लेकर प्रदर्शन हुए, इसमें फीस वृद्धि से लेकर दूसरे मुद्दे शामिल थे, लेकिन नागरिकता संशोधन कानून (Citizenship Amendment Act) आने के बाद विरोध तेज हो गया. कैंपस के छात्रों पर पुलिस पर पथराव, आगजनी और पुलिस द्वारा लाठीचार्ज जैसी खबरों से एएमयू चर्चा में आ गया. जामिया की घटना के बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) में भी बवाल शुरू हो गया. यूपी पुलिस का आरोप है कि छात्रों ने उनपर पथराव किया, जिसके बाद पुलिस को आंसू गैस का इस्तेमाल करना पड़ा. फिलहाल एहतियातन यूनिवर्सिटी को 5 जनवरी तक के लिए बंद कर दिया गया है.
फोटो: AMU में प्रदर्शन
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जामिया में प्रदर्शन के बाद बदली तस्वीर
दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया में पहले फीस वृद्धि और अन्य मामलों को लेकर प्रोटेस्ट हुआ, लेकिन नागरिकता संशोधन कानून आने के बाद से जामिया पूरे देश में चर्चा में आ गया. यहां के छात्रों ने 13 दिसंबर को मार्च निकालने की कोशिश की थी तो पुलिस ने उन्हें बैरीकेड लगाकर रोक दिया था. तब भी थोड़ी झड़प हुई थी जिसमें कुछ छात्रों को चोट लगी थी. वहीं 15 दिसंबर को जामिया इलाके में प्रोटेस्ट के बाद जिस तरह से यूनिवर्सिटी के भीतर पुलिस घुसी, उसका पूरे देश में विरोध हुआ. देश भर के 22 यूनिवर्सिटी और कॉलेज जामिया के पक्ष में आए और प्रदर्शन किया.
फोटो: जामिया के बाहर हुआ प्रदर्शन
बीएचयू में संस्कृत शिक्षक का मुद्दा
यहां के छात्र 29 वर्षीय असिस्टेंट
प्रोफेसर फिरोज खान की संस्कृत विभाग में नियुक्ति को लेकर नाराज़ हैं
क्योंकि वह मुस्लिम हैं. छात्रों का कहना है कि इस नियुक्ति से संस्थापक
पंडित मदन मोहन मालवीय की भावनाओं को ठेस पहुंची होगी, क्योंकि उन्होंने
साफ़ कहा था कि कोई भी गैर हिन्दू संस्कृत विभाग में न पढ़ सकता है, और न ही
पढ़ा सकता है. प्रशासन का कहना है कि फिरोज खान की नियुक्ति सर्वसम्मति से
की गयी थी लेकिन छात्र मांगों पर अड़े रहे. मामले में अभी कोई फैसला नहीं हो
सका है.
फोटो: बीएचयू प्रदर्शन
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उत्तराखंड के प्राइवेट आयुर्वेदिक कॉलेज
कई दिनों तक हज़ारों छात्र उत्तराखंड के प्राइवेट आयुर्वेदिक कॉलेजों में बढ़ी हुई फीस के खिलाफ देहरादून में प्रदर्शन करते रहे. बता दें, 2015 में हरीश रावत सरकार ने राज्य के कॉलेजों में करीब 170 प्रतिशत की बढ़ोतरी की जिसके बाद से छात्र इसके विरोध में खड़े हो गए. इस निर्णय से पहले 80 हज़ार की फीस बढ़कर 2 लाख 15 हज़ार हो गयी. आखिर में उत्तराखंड में आयुर्वेद विद्यार्थियों (Ayurveda Students) का आंदोलन सफल हुआ. 53 दिन के आंदोलन और अनशनके बाद आयुष विभाग की तरफ से वो आदेश जारी हुआ, जिसको लेकर लगातार आंदोलन चला. सीएम के दखल के बाद आयुष सचिव की तरफ से जारी हुए आदेश से स्टूडेंट्स खुश हैं. स्टूडेंट्स को उम्मीद है कि इस बार कॉलेजों को फीस वापस करनी होगी, क्योंकि सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत खुद मामले को लेकर गंभीर हैं. आयुष सचिव के आदेश में आयुर्वेद यूनिवर्सिटी रजिस्ट्रार को कहा गया है कि एक महीने (22 दिसंबर) में सभी 13 प्राइवेट कॉलेजों पर एक्शन लें और हाईकोर्ट के आदेशों का पालन करवाएं.