
जो लोग कहते हैं कि हिंदी धीरे-धीरे खत्म हो रही है, वो पहले नए हिंदी स्टाइल में लिखने वाले दिव्य प्रकाश दुबे को पढ़ें. उनकी 'टर्म्स एंड कंडीशंस' से लेकर 'मुसाफिर कैफे' का स्वाद आपको उन्हें यह सोचने पर मजबूर कर देगा कि हिंदी कहीं गई नहीं, बल्कि नई वाली हिंदी के रूप में फिर से आ गई है.
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नई हिंदी का मतलब 'बोलचाल की हिंदी' से है. दिव्य के मुताबिक दोस्ती-यारी वाली हिंदी ही नई वाली हिंदी है. दिव्य कहते हैं, 'अच्छी हिंदी वो ही लिख सकता है, जिसने अंग्रेजी भी अच्छी तरह पढ़ा हो. क्योंकि अच्छा लिखने के लिए वर्ल्ड के बेस्ट लिटरेचर का अध्ययन बेहद जरूरी है. इसलिए लोगों का यह कहना कि हिंदी वे ही लिखते हैं, जिन्हें अंग्रेजी नहीं आती, कुछ-कुछ बेमानी सा हो जाता है.'
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दिव्य का मानना है कि हिंदी लोगों के दिलों में एक बार फिर उतर रही है. हिंदी अब कोने में पड़ी रहने वाली भाषा नहीं रह गई है. हिंदी लिखने वाले अब ठीक-ठाक पैसा भी कमा रहे हैं और मैं आशा करता हूं कि आगे चलकर हिंदी लेखक सिर्फ अपनी कमाई के बल पर अपनी जिंदगी काट पाएंगे. मैंने शुरुआत इसी उम्मीद से की है.
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दिव्य को डिजिटल लेखक कहा जाता है. इस बारे में दिव्य कहते हैं, 'मैं जैसा लिख रहा हूं वैसे ही लिखता, बस डिजिटल की टाइमिंग मैच कर गई और मैं डिजिटल लेखक हो गया. मैं मार्केटिंग का आदमी हूं, इसलिए अपने प्रोडक्ट (किताब) के भरोसे को साथ लिए उसका प्रचार-प्रसार करने की कोशिश करता हूं, जिसमें सोशल मीडिया बड़े से मेले में लगी एक छोटी सी दुकान है.'
जिंदगी के आगे के प्लान्स के बारे में दिव्य कहते हैं, 'लाइफ को लेकर योजनाएं बड़ी नहीं, बल्कि सिंपल होनीं चाहिए. योजनाओं के बड़े होने का मतलब है, जिंदगी का छोटा पड़ जाना. इसलिए मेरी जिंदगी की एक ही योजना है, हर साल सिर्फ एक किताब.'
दिव्य का सपना है कि हिन्दी किताबें अंग्रेजी पाठकों के हाथों में हो और वो चाहते हैं कि किसी अंग्रेजी अखबार के फ्रंट पेज पर किसी हिंदी किताब का ऐड लगा हो, फिर वो किताब दिव्य की हो या फिर किसी और हिंदी लेखक की.