भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. इसी वजह से इस पर्व को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाकर हर मनोकामना पूरी की जा सकती है. जन्माष्टमी का व्रत करने से संतान प्राप्ति, दीर्घायु और समृद्धि की प्राप्ति होती है. हालांकि इस साल जन्माष्टमी तिथि को लेकर लोग काफी कन्फ्यूज हैं. कुछ लोग 11 अगस्त तो कुछ 12 अगस्त को जन्माष्टमी मानकर चल रहे हैं.
ज्योतिषाचार्य कमल नंदलाल का कहना है कि 11 और 12 अगस्त, दोनों ही दिन जन्माष्टमी मनाई जाएगी. हालांकि जन्माष्टमी का व्रत रखने वाले लोगों को एक खास बात का ध्यान रखना होगा. ज्योतिषविद का कहना है कि वैष्णव और स्मार्त दो अलग-अलग दिन जन्माष्टमी मनाते हैं.
मंगलवार, 11 अगस्त को स्मार्त समुदाय के लोग जन्माष्टमी मनाएंगे. यानी जो
शादी-शुदा लोग, पारिवारिक या गृहस्थ लोग जन्माष्टमी का व्रत रखेंगे. जबकि
बुधवार, 12 अगस्त को उदया तिथि में वैष्णव जन के लोग जन्माष्टमी मनाएंगे.
मथुरा और काशी में जितने भी मंदिर है, वहां 12 तारीख को ही जन्माष्टमी
होगी.
11 अगस्त को सूर्योदय के बाद ही अष्टमी तिथि शुरू होगी.
अष्टमी तिथि मंगलवार, 11 अगस्त सुबह 9:06 बजे से शुरू हो जाएगी. यह तिथि
बुधवार, 12 अगस्त सुबह 11:16 मिनट तक रहेगी. वैष्णव जन्माष्टमी के लिए 12
अगस्त का शुभ मुहूर्त बताया गया है. बुधवार रात 12.05 बजे से 12.47 बजे तक
बाल-गोपाल की पूजा-अर्चना की जा सकती है.
अब यह बिल्कुल साफ हो चुका है कि सामान्य जन यानी गृहस्थ लोग 11 अगस्त को जन्माष्टमी मनाएंगे. जबकि वैष्णव, संन्यासी या
बैरागी 12 अगस्त को जन्माष्टमी मनाएंगे.
भगवान कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. आमतौर पर ये दोनों संयोगवश एक साथ ही होते हैं, जिनसे मिलकर जयंती योग बनता है. लेकिन कई बार ऐसा नहीं होता है. ज्योतिषविदों का कहना है कि इस बार भी कृष्ण की जन्म तिथि और नक्षत्र मेल नहीं खा रहे हैं.
ज्योतिषविद की मानें तो रोहिणी नक्षत्र का आरंभ 13 अगस्त को सुबह 3 बजकर 27
मिनट से पांच बजकर 22 मिनट तक रहेगा. इस तिथि को केवल वैष्णव जन ही व्रत
करेंगे. इसमें गृहस्थ लोगों की भागीदारी नहीं होगी.
गृहस्थ लोग
मंगलवार, 11 अगस्त को रात में चंद्रमा को अर्घ्य दें. दान और जागरण कीर्तन
करें. 11 अगस्त को ही व्रत करें और भगवान श्रीकृष्ण उनके प्रिय भोग लगाएं.
कैसे मनाएं जन्माष्टमी?
प्रातः
काल स्नान करें और व्रत या पूजा का संकल्प लें. दिन भर जलाहार या फलाहार
ग्रहण करें, सात्विक रहें. मध्यरात्रि को भगवान कृष्ण की धातु की प्रतिमा
को किसी पात्र में रखें. उस प्रतिमा को पहले दूध, दही, शहद, शर्करा और फिर
अंत में घी से स्नान कराएं इसी को पंचामृत स्नान कहते हैं.
इसके बाद
जल से स्नान कराएं. तत्पश्चात पीताम्बर, पुष्प और प्रसाद अर्पित करें.
पूजा करने वाले व्यक्ति काले या सफेद वस्त्र धारण न करें. इसके बाद अपनी
मनोकामना के अनुसार मंत्र का जाप करें. अंत में प्रसाद ग्रहण करें और वितरण
करें.