
लगातार तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने के लिए किस्मत आजमा रहे अरविंद केजरीवाल देश की राजनीति में शुरुआत धमाकेदार रही. भारतीय राजस्व सेवा (IRS) की नौकरी छोड़कर समाज सुधार की राह पर निकले केजरीवाल को शुरुआत में अन्ना हजारे जैसे बड़े समाजसेवियों का साथ मिला, लेकिन सियासी राह पर चलने का फैसला करने के बाद उन्होंने जो कामयाबी हासिल की है वो विरले ही नेताओं को मिलता है.
राजनीतिक महत्वाकांक्षा जागी तो अन्ना से हुए अलग हुए और नई राजनीतिक पार्टी (आम आदमी पार्टी) का गठन करते हुए महज चंद महीनों के अंदर दिल्ली की सत्ता पर काबिज हो गए. हालांकि इसके लिए उन्हें कांग्रेस से समर्थन लेना पड़ा.
अन्ना के साथ आंदोलन
पहले प्रशासनिक अधिकारी फिर बतौर सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल ने ‘सूचना का अधिकार’ के लिए काफी काम किया. जनलोकपाल बिल के लिए केजरीवाल ने समाजसेवी अन्ना हजारे के साथ आंदोलन किया. उनके इस आंदोलन से शांति भूषण, प्रशांत भूषण, संतोष हेगड़े, किरण बेदी जैसे दिग्गज लोग जुड़ते गए.
'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' के बैनर तले एक ऐसा आंदोलन खड़ा हुआ जिसने दिल्ली के हुक्मरानों की सांस फूला कर रख दिया था. इसी आंदोलन के दौरान अरविंद केजरीवाल के मन में राजनीतिक महत्वाकांक्षा की भावनाएं जोर मारने लगी और वह समाजसेवी का चोला उतारकर राजनीति के अखाड़े में कूद गए.
आंदोलन से आगे बढ़े अरविंद
अन्ना हजारे के साथ केजरीवाल का आंदोलन उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ. अन्ना की छत्रछाया में विराट स्वरूप लेते भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन को 'हाईजैक' करने का केजरीवाल पर आरोप लगने लगा.
केजरीवाल के इरादे भांपते हुए अन्ना हजारे ने अपनी राह उनसे अलग कर ली, लेकिन राजनीतिक पारी खेलने की ठान लेने वाले केजरीवाल ने अपने सपने को परवान चढ़ाने के लिए 2 अक्टूबर 2012 को आम आदमी पार्टी का गठन कर लिया.
अरविंद केजरीवाल की नई नवेली पार्टी से कुमार विश्वास, आशुतोष जैसे लोग जुड़ते गए, लेकिन बाद में इनका केजरीवाल से अलग-अलग मसलों पर मोहभंग होता चला गया और उन्होंने अन्ना की तरह ही अपनी राह अलग कर ली.
राजनीति के अखाड़े में केजरीवाल के साथ उनके दोस्त और दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, वर्तमान राज्यसभा सांसद संजय सिंह जैसे कुछ लोग ही बने रहे और आम आदमी पार्टी का कारवां चलता रहा.
जैसे-जैसे वक्त गुजरता रहा राजनीति में वह परिपक्व होते चले गए. राजनीतक करियर की शुरुआत में हर मुद्दे पर सड़क पर उतरने और खुलकर बोलने वाले केजरीवाल अब चुप से हो गए हैं. बेहद जरुरत होने पर ही वह अब बोलते हैं. हालांकि वह कई मौकों पर केंद्र सरकार पर आरोप लगा चुके हैं कि केंद्र उनके कामों में लगाती रही है. लेकिन केजरीवाल अब सुलझे राजनेता की तरह नजर आते हैं.
49 दिन और फिर 5 साल के सीएम
2013 में दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी 28 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. खुद अरविंद केजरीवाल ने 3 बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित को बड़े अंतर से हरा दिया. कांग्रेस के समर्थन से केजरीवाल ने सरकार बनाई लेकिन 49 दिनों की सरकार चलाने के बाद उन्होंने अचानक इस्तीफा दे दिया.
लंबे इंतजार के बाद 2015 में दिल्ली फिर से विधानसभा चुनाव हुए तो अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में आम आदमी पार्टी ने और मजबूती से वापसी की और 70 में से 67 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया. इस प्रचंड जीत के साथ ही केजरीवाल ने 14 फरवरी 2015 को दूसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
केजरीवाल का परिवार
16 अगस्त 1968 को हिसार के सिवानी गांव में जन्मे अरविंद केजरीवाल तीन भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं. उनके पिता का नाम गोविंद और माता का नाम गीता है. केजरीवाल की पत्नी का नाम सुनीता केजरीवाल है. सुनीता भी आईआरएस अधिकारी रह चुकी हैं.
अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने 2016 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति यानी वीआरएस ले लिया. उनके बच्चों का नाम हर्षिता और पुलकित है.
IRS की नौकरी छोड़ी
आईआईटी खड़गपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिग्री लेने वाले अरविंद केजरीवाल ने एक आम हिन्दुस्तानी की तरह नौकरी की. हालांकि 1989 में आईआईटी खड़गपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करते ही केजरीवाल के हाथ में ओएनजीसी से नौकरी का ऑफर लेटर आ चुका था.
लेकिन उन्होंने जिद कर ली थी कि नौकरी तो उन्हें उसी टाटा स्टील में ही करनी है, जिसने इंटरव्यू में रिजेक्ट कर दिया. दरअसल, टाटा स्टील जमशेदपुर के साथ अरविंद केजरीवाल का पहला इंटरव्यू निराशा भरा था, उन्हें तब कंपनी ने नौकरी लायक समझा ही नहीं.
केजरीवाल इतने जिद्दी ठहरे कि उन्होंने दोबारा इंटरव्यू के लिए टाटा स्टील कंपनी मुख्यालय तक गुहार लगाते हुए कहा कि उन्हें इंटरव्यू का बस एक और मौका मिल जाए तो वह अपने आप को साबित कर देंगे.
कंपनी ने उनकी गुहार सुनी और उनका फिर से इंटरव्यू लिया. केजरीवाल ने मिले मौके को भुनाया और खुद को साबित कर दिया. वह टाटा स्टील की नजर में नौकरी के लायक घोषित कर लिए गए.
ट्रेनिंग के बाद जमशेदपुर में केजरीवाल टाटा स्टील में असिस्टेंट मैनेजर बने. टाटा स्टील में नौकरी करने के दौरान ही 1995 में उनका चयन आईआरएस में हो गया.
अंतरराष्ट्रीय सम्मान
केजरीवाल अपनी नौकरी के साथ-साथ मदर टेरेसा की मिशनरीज ऑफ चैरिटी, रामकृष्ण मिशन और नेहरू युवा केंद्र से भी जुड़े रहे. साथ ही केजरीवाल नौकरी छोड़कर पूरी तरह सामाजिक कार्य करने लगे. उन्होंने ‘परिवर्तन’ नाम की संस्था से आंदोलन चलाया.
सरकारी कामों में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए उन्होंने सूचना के अधिकार के लिए जमीनी स्तर पर सराहनीय काम किया जिसके लिए उन्हें साल 2006 में मैग्सायसाय पुरस्कार से भी नवाजा गया.
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पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में उनकी आम आदमी पार्टी दिल्ली में एक भी लोकसभा सीट नहीं जीत सकी, लेकिन इस बार दिल्ली के सातवें विधानसभा चुनाव में उनकी नजर 2015 वाली जीत को दोहराने प लगी है. वह अपने पिछले 5 साल के काम और जनता को दी जा रही मुफ्त की सुविधाओं के सहारे वोट मांग रहे हैं अब देखना है कि दिल्ली की जनता उनके लिए क्या फैसला करती है.