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लोगों ने पाली मोदी सरकार से अव्यावहारिक उम्मीदें: रघुराम राजन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार से सत्ता में आने के बाद 'शायद अव्यावहारिक' उम्मीदें लगाई गईं. यह कहना है केंद्रीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) गवर्नर रघुराम राजन का.

aajtak.in
  • न्यूयॉर्क,
  • 20 मई 2015,
  • अपडेटेड 2:21 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार से सत्ता में आने के बाद 'शायद अव्यावहारिक' उम्मीदें लगाई गईं. यह कहना है केंद्रीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) गवर्नर रघुराम राजन का.

अमेरिका के न्यूयॉर्क में एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि हालांकि यह सरकार निवेशकों की चिंताओं के लिए 'संवेदनशील' है और इसने निवेश का माहौल बनाने के लिए कदम भी उठाए हैं. 'इकोनॉमिक क्लब' को अपने संबोधन में उन्होंने कहा, 'यह सरकार जबरदस्त अपेक्षाओं के साथ आई और मुझे लगता है कि ये उम्मीदें किसी भी सरकार के लिए शायद अव्यावहारिक थीं.'

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रोनाल्ड रीगन से थी मोदी की तुलना
उन्होंने कहा कि लोगों के मन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि 'सफेद घोड़े पर बैठे हुए रोनाल्ड रीगन' की तरह थी, जो बाजार-विरोधी ताकतों का कत्ल करने आए थे. राजन के मुताबिक, 'इस तरह की तुलना शायद उचित नहीं थी.' याद रहे कि रोनाल्ड रीगन 40वें अमेरिकी राष्ट्रपति थे.

हालांकि राजन ने यह भी जोड़ा कि सरकार ने निवेश का माहौल बनाने के लिए कदम उठाए हैं जो अहम बात है. राजन का यह बयान ऐसे समय में आया है जब मोदी सरकार ने हाल ही में अपना एक साल पूरा किया है.

सामूहिक कार्रवाई की जरूरत: राजन
सामूहिक कार्रवाई का आह्वान करते हुए रघुराम राजन ने वैश्विक नरमी से निपटने और टिकाऊ वृद्धि के लिए मजबूत व अच्छी तरह से पूंजी से लैस बहुराष्ट्रीय संस्थानों की वकालत की. राजन ने कहा, 'मेरे विचार से अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक नीति में वर्तमान गैर-प्रणाली, टिकाऊ विकास और वित्तीय क्षेत्र दोनों के लिए ही जोखिम का एक बड़ा स्रोत है. यह एक औद्योगिक देश की समस्या नहीं है न ही यह उभरते बाजार की समस्या है, बल्कि यह सामूहिक कार्रवाई की एक समस्या है.'

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राजन ने कहा कि कम ब्याज दरें एवं कर प्रोत्साहन निवेश को बढ़ावा दे सकते हैं, लेकिन आर्थिक वृद्धि बढ़ाने के लिए उपभोक्ता मांग ज्यादा महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा, हमें मौद्रिक नीति नरम करने की प्रतिस्पर्धा की ओर धकेला जा रहा है. मैं मंदी के युग की शब्दावली का इसलिए इस्तेमाल कर रहा हूं क्योंकि मुझे डर है कि कमजोर मांग वाली दुनिया में हम ज्यादा हिस्सेदारी के लिए एक जोखिम भरी प्रतिस्पर्धा में कूद सकते हैं.

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