
सुप्रीम कोर्ट ने जैन समुदाय को सोमवार को बड़ी राहत देते हुए संथारा प्रथा को बैन करने के राजस्थान हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी. संथारा के बारे में कम लोग जानते हैं. हम आपको बताते हैं कि संथारा है क्या. जानिए जैन धर्म की इस प्रथा की 10 खास बातें.
1. जैन धर्म में दो पंथ हैं, श्वेतांबर और दिगंबर. संथारा श्वेतांबरों में प्रचलित है. दिगंबर इस परंपरा को सल्लेखना कहते हैं.
2. यह बड़ी भ्रांति है कि संथारा लेने वाले व्यक्ति का खाना-पीना जबरदस्ती बंद करा दिया जाता है या वह एकदम खाना-पीना छोड़ देता है. संथारा लेने वाला व्यक्ति स्वयं धीरे-धीरे अपना भोजन कम करता है.
3. जैन ग्रंथों के मुताबिक, संथारा में उस व्यक्ति को नियम के मुताबिक भोजन दिया जाता है. अन्न बंद करने से मतलब उसी स्थिति से होता है, जब अन्न का पाचन संभव न रह जाए.
4. भगवान महावीर के उपदेशानुसार जन्म की तरह मृत्यु को भी उत्सव का रूप दिया जा सकता है. संथारा लेने वाला व्यक्ति भी खुश होकर अपनी अंतिम यात्रा को सफल कर सकेगा, यही सोचकर संथारा लिया जाता है.
5. जैन धर्म में संथारा की गिनती किसी उपवास में नहीं होती.
6. संथारा की शुरुआत सबसे पहले सूर्योदय के बाद 48 मिनट तक उपवास से होती है, जिसमें व्यक्ति कुछ पीता भी नहीं है. इस व्रत को नौकार्थी कहा जाता है.
7. संथारा में उपवास पानी के साथ और बिना पानी पीए, दोनों तरीकों से हो सकता है.
8. संथारा लेने से पहले परिवार और गुरु की आज्ञा लेनी जरूरी होती है.
9. यह स्वेच्छा से देह त्यागने की परंपरा है. जैन धर्म में इसे जीवन की अंतिम साधना माना जाता है.
10. जैन धर्म के मुताबिक, जब तक कोई वास्तविक इलाज संभव हो, तो उस अहिंसक इलाज को कराया जाना चाहिए. संथारा के व्रत के बीच में भी व्यक्ति डॉक्टरी सलाह ले सकते हैं. इससे व्रत नहीं टूटता.